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सबसे ख़तरनाक- पाश

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  जिसका विज़न, जिसका चिंतन  अपने देश काल का जितनी दूर तक अतिक्रमण कर सकने में सक्षम होता है वो कवि , वो विचारक उतनी ही सदियो तक लोगों के दिलों, उनकी स्मृतियों में  ज़िंदा रहता है।  पाश भी एक ऐसे ही कवि हैं। उनकी कवितायेँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि उस वक़्त रही होंगी जब लिखी गई होंगी। आज पाश के जन्मदिन पर उनकी एक कविता, जिसे खूब पढ़ा और गाया जाता  रहा है, लेकिन फिर भी जिसे अपने ब्लॉग के ज़रिये शेयर करने का मोह मैं नहीं छोड़ पाई।  इस कविता की एक एक पंक्ति मूलयवान और प्रासंगिक है। पढ़ें  मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है जुगनुओं की लौ में पढ़ना मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना तड़प का न ह...