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कुछ अलग है ये दंगल

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फ़िल्म दंगल किसी परिचय की मोहताज नहीं है। यह फ़िल्म भारतीय सिनमा में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्मों में से एक है। फ़िल्म में क्या था जो लोगों को इतना पसंद आया। इस फ़िल्म में अन्य फ़िल्मों की तरह हिट होने के जो बेसिक फ़ॉर्म्युले होते है- दो चार आकर्षित दृश्य, विदेशी लोकेशन, द्वीअर्थी संवाद और सबसे ज़रूरी एक मस्त आइटम सॉंग। ऐसा तो कुछ भी नहीं था। मगर फिर भी फ़िल्म ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। आश्चर्य की बात है ना!       फ़िल्म निर्माता, निर्देशक फ़िल्म लोगों के लिए बनाते है। वो कहते है लोग यह देखना चाहते है इसलिए हम दिखाते है। आज कल की ज़्यादा तर फ़िल्में अश्लीलता, भोड़ेपन, निम्न स्तरीय संवाद को परोसती है। तो क्या हम ऐसा सिनमा देखना चाहते है? 'दंगल' में तो यह सब नहीं था फिर भी उसको दर्शक मिले। एक बार नहीं बल्कि दो- तीन बार पैसे ख़र्च करके लोगों ने यह फ़िल्म देखी। शायद इसलिए क्यूँकि फ़िल की आत्मा उसकी कहानी, फ़िल्म को वास्तविक ढंग से पेश करते किरदार जिसने चार लड़कियाँ नवोदित थी। जिसने दर्शकों को कुर्सी पर जमे रहने पर मजबूर किया। कुश्ती जैसे खेल में शायद ही किसी का ...
खिड़कियां ज़रूरी हैं हर घर के लिए खिड़कियां खोलती हैं सारा आकाश हमारे लिए लाती हैं साफ़ सुथरी ताज़ी हवा हमारे लिए खिड़कियां परवाज़ देती हैं सपनो को अरमानो को उड़ना सीखती हैं आँखों को साफ़ करती रहती हैं दिमाग में लगे जाले गाहे बगाहे खिड़कियां ज़रूरी हैं।