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समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीना, सबका मौलिक अधिकार

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*रीतिका शुक्ला  सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 6 सितम्बर 2018 को एकमत से 158 साल पुरानी IPC की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया , जो सहमति से बनाए गए अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखता था|  इस धारा के इस हिस्से के हटने के बाद समलैंगिक समुदाय के लोग और जो उनके इस लड़ाई के दौरान समर्थक रहे है , उन्होंने इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत जोश के साथ किया | मै और मेरी ही तरह कई और समर्थक भी उनकी इस जीत के जश्न में शामिल हुए , लेकिन वहां पर आई मीडिया ने इस पूरी तस्वीर को ही बदल डाला | हमको समर्थक से समलैंगिक बना दिया गया, यह मुझे सुबह का अखबार देखकर पता चला | हम जिस क़ानून की बात कर रहे है वो अंग्रेजो के जमाने का है और तब यह अपराध माना जाता था | आजादी के बाद हमारा संविधान बना, जिसमे हम सभी भारतवासियों को मौलिक अधिकार प्राप्त हुए | इन अधिकारों में समानता का अधिकार और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है | हर बार हम जब समानता की बात करते है तो बस स्त्री या पुरुष की समानता की बात होती है और हम सब समलैंगिक और सेक्स माइनॉरिटीज को भूल ज...