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Showing posts from July, 2017

इम्तियाज़ अली के अंदर एक बंजारा रहता है

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पिछले कई दिनों से इम्तियाज़ अली की नई फिल्म " जब हैरी  मेट सेजल "के प्रोमोज टी वी पर छाए  हुए हैं।  फिल्म का शीर्षक थोड़ा अलग  तो है ही साथ ही ये इम्तियाज़ अली की जब वी मेट की याद दिलाती है। सुना है फिल्म में शाहरुख़ एक टूरिस्ट  गाइड की भूमिका में हैं। देखना ये है  कि इम्तियाज़ इस फिल्म में  अपनी यायावरी और बंजारेपन  का कौन सा रंग दिखाते हैं।  इम्तियाज़ की फिल्म से  ऐसी अपेक्षा लाज़िमी है क्योंकि  इसके पहले इम्तियाज़ की सारी  फिल्मों में हमें एक ख़ास तरह का दर्शन देखने को मिलता रहा है। एक ख़ास तरह की सोच इनकी  फिल्मों के मूल में काम करती रही है।  इसमें तो कोई दो राय नहीं कि इम्तियाज़ की फिल्में लीक से हट कर होती है। ये बने बनाये फॉर्मूले पर कभी कभी काम नहीं करते। जब वी मेट से लेकर तमाशा तक हमें उनका ये अंदाज़ साफ़ तौर पर दिखाई देता है। मूलत:  इनकी फ़िल्में चरित्र प्रधान होती हैं। इन चरित्रों के ज़रिये कई बार  वो बहुत बड़ी बड़ी बातें कह जाते हैं। ...

आम्रपाली के नगरवधू से एक बौद्ध भिक्षुणी बनने तक का सफर ....

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 सदियों से महिलाओं को नीची दृस्टि से देखा जाता रहा है। उसकी आजादी का पुरुष प्रधान समाज में हनन होता रहा है . इस बात को स्पष्ट करने का ऐसा तो कोर्इ प्रमाण नहीं है कि समाज में महिलाओं की स्थिति गौण क्यों बनी हुर्इ है। महिलाओ के जीवन का फैसला आज भी कोई पुरुष ही लेता है . वह पुरुष कभी उसका पिता होता है या पति . यह महिलाओ के साथ आज से नहीं , बल्कि सदियों से हो रहा है। आज मै आप सबको ऐसी महिला की कहानी बताऊगी  जिसको इस पुरुष प्रधान समाज ने एक वेश्या बना दिया।  यह कहानी है भारतीय इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला के नाम से विख्यात ‘ आम्रपाली ’ की , जिसे अपनी खूबसूरती की कीमत वेश्या बनकर चुकानी पड़ी। वह किसी की पत्नी तो नहीं बन सकी लेकिन संपूर्ण नगर की नगरवधू जरूर बन गई। खूबसूरती वो भी ऐसी जिसको देखने वाला उसको पाने के लिए कुछ भी कर गुज़रे लेकिन क्या कभी किसी ने आम्रपाली को जानने की कोशिश नहीं की कि वो क्या चाहती है।  आज मै ये प्रयास करुँगी की उसके मन के विचारो को आपके सामने रख सकू।   रीतिका शुक्ला आम्रपाली जिसकी ख़ूबसू...

भीड़तंत्र या न्यायतंत्र ??

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रीतिका  / पूजा  पिछले दिनों मैंने एक फिल्म देखी , ट्यूबलाइट। फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसका ज़िक्र किया जा सके सिवा एक चीज़ के। और वो एक चीज़ है गाँधी जी के कुछ विचार, कुछ संदेश जो उन्होंने हमारे लिए रख छोड़े हैं। मुझे इनमे से  एक सन्देश कुछ ज़्यादा ही भा गया और वो था " आंख के बदले आँख पूरे विश्व को अँधा कर देगी।" इस सन्देश के निहितार्थ को समझना क्या बहुत मुश्किल है? बिलकुल नहीं। हम सब जानते हैं कि बदले की भावना हमें उग्रता और हिंसा की ओर धकेलती है। और हिंसा का प्रत्युत्तर हिंसा से देने का मतलब है और अधिक हिंसा को बढ़ावा देना।  हम सब इस सच को जानते हैं समझते हैं लेकिन फिर भी गाँधी को उनके इन विचारों के लिए कभी कायर तो कभी मजबूरी का नाम दे कर पल्ला झाड़ लेते हैं।                                इस बात से शायद ही किसी को इंकार हो कि पिछले कुछ समय से हम एक उग्र हिंसक और असहिष्णु देश के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं। ये उग्रता , बदला लेने की ये भावना पहले एक ख़ास  देश के प्र...