इम्तियाज़ अली के अंदर एक बंजारा रहता है



पिछले कई दिनों से इम्तियाज़ अली की नई फिल्म " जब हैरी  मेट सेजल "के प्रोमोज टी वी पर छाए  हुए हैं।  फिल्म का शीर्षक थोड़ा अलग  तो है ही साथ ही ये इम्तियाज़ अली की जब वी मेट की याद दिलाती है। सुना है फिल्म में शाहरुख़ एक टूरिस्ट  गाइड की भूमिका में हैं। देखना ये है  कि इम्तियाज़ इस फिल्म में  अपनी यायावरी और बंजारेपन  का कौन सा रंग दिखाते हैं।  इम्तियाज़ की फिल्म से  ऐसी अपेक्षा लाज़िमी है क्योंकि  इसके पहले इम्तियाज़ की सारी  फिल्मों में हमें एक ख़ास तरह का दर्शन देखने को मिलता रहा है।


एक ख़ास तरह की सोच इनकी  फिल्मों के मूल में काम करती रही है।  इसमें तो कोई दो राय नहीं कि इम्तियाज़ की फिल्में लीक से हट कर होती है। ये बने बनाये फॉर्मूले पर कभी कभी काम नहीं करते। जब वी मेट से लेकर तमाशा तक हमें उनका ये अंदाज़ साफ़ तौर पर दिखाई देता है। मूलत:  इनकी फ़िल्में चरित्र प्रधान होती हैं। इन चरित्रों के ज़रिये कई बार  वो बहुत बड़ी बड़ी बातें कह जाते हैं।
                                         




फिल्म जब वी  मेट की गीत एक खुशमिजाज़ और पोज़िटिव एनर्जी से भरी लड़की है। बेवजह खुश रहना जिसकी आदत है जबकि आदित्य जीवन के छोटे छोटे दुखों से हारा हुआ एक युवा है।  एक सफर के दौरान दोनों की मुलाक़ात होती है और इंटरैक्शन होता है। गीत के साथ बिताया थोड़ा सा वक़्त आदित्य को पूरी तरह से बदल देता है। वो प्यार करना , मुस्कुराना और जीवन जीना सीख जाता है।


ऐसे ही इम्तियाज़  की दूसरी फिल्म लव आज कल में मीरा और जय खिलंदड़े टाइप के  युवा हैं जो प्रेम की गंभीरता और उसकी चुनातियों से भागते हैं। लेकिन एक वक़्त ऐसा आता है जब लम्बा अंतराल और मीलों की दूरी उनके प्रेम की अनुभूति को और गाढ़ा करती है और वो अपना सब कुछ जिसे वो अभी तक सबसे ज़्यादा ज़रूरी समझते रहे छोड़ के अपने प्रेम की ओर भागते हैं।


  इन दोनों फिल्मों को खूब पसंद किया गया  हालाँकि उसके बाद आई रॉकस्टार कोई ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ पाई।  उसके बाद आई इम्तियाज़ अली की हाईवे। ये अपने आप में बिलकुल अलग तरह की फिल्म थी। पारम्परिक नायक नायिका की कहानी से इतर ये फिल्म जीवन के वास्तविक मर्म को बिलकुल अलग अंदाज़ में प्रस्तुत करती है । फिल्म ये साबित करती है की जीवन में हम सब हमेशा एक सुरक्षा की तलाश में रहते हैं।


ये सुरक्षा हम अपने रिश्तों में ,अपने परिवार में और अपने करियर में ढूँढ़ते हैं। लेकिन तमाम सुविधाओं से लैस होकर भी क्या हम पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं ? शायद नहीं। फिल्म में इम्तियाज़ ये साबित कर देते हैं की मनुष्य की सुरक्षा की खोज निपट मूर्खता है। स्वयं को जीवन के बहाव के हवाले कर देना और उसके साथ बहना ही वास्तविक रूप से जीना है।


 
     कुछ ऐसी ही बात वो अपनी अगली फिल्म तमाशा में करते हैं। इस फिल्म में वो व्यक्ति की आइडेंटिटी को बचाये रखने की  बात करते हुए दिखाई देते हैं। हम सब जानते हैं कि  हमारे देश में बच्चों को उनके करियर के लिए बनी बनाई परिपाटी पर चलने के लिए बाध्य किया जाता है और समाज के खांचे में ढलने के लिए कई बार  उनकी क्रिएटिविटी और जीवन रस को भी  कुचल दिया  जाता है। हम अक्सर संसार और उसकी हमारे प्रति अपेक्षाओं को अपनी इच्छा समझ उसी के अनुसार जीवन जीने लगते हैं। भले ही हम उससे बिलकुल अलग तरह के व्यक्ति क्यों न हों।  फिल्म चली नहीं लेकिन ये फिल्म एक व्यापक दृष्टिकोण की कहानी कहती है।



   इम्तियाज़ की  कहानियां यायावरी की कहानियां बंजारेपन की कहानियां हैं , इनकी फिल्मों के पात्र  एक साथ दो स्तरों  पर यात्रा करते हुए दिखाई देते हैं एक तो वाह्य और दूसरा आंतरिक तौर पर । अगर यह  कहा जाए कि  इनकी ये ये वाह्य स्तर  पर की जा रही यात्रायें ही इनके अंतर्मन के द्वार खोलती हैं और सच से इनका साक्षात्कार  कराती हैं तो गलत नहीं होगा। इन फिल्मों में यात्रायें और  प्रकृति भी एक चरित्र के रूप में उपस्थित है। देखना दिलचस्प होगा कि अपनी आगामी फिल्म में इम्तियाज़ दर्शकों को किस दुनिया की सैर कराते हैं।                                                                                                              

                                                                                                    पूजा 

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