आह से वाह तक का सफर : अर्चना सतीश


आँखों में आत्मविश्वास की चमक , होठों पर आत्मीयता भरी मुस्कान और वाणी में किसी के भी  मन को छू जाने वाले  ज्ञान और अनुभूतियों  का सहज प्रवाह।   ये पहचान है उनकी जिन्हे लगभग पूरा लखनऊ अर्चना सतीश के नाम से जाता है। प्रोफेशनली वो एक न्यूज़ रीडर हैं , एंकर हैं लेकिन उनकी पहचान इतनी ही नहीं इससे बहुत ज़्यादा है। वो एक प्रतिभाशाली एंकर और न्यूज़ रीडर होने के साथ साथ एक आध्यात्मिक व्यक्ति भी है।अपने आस पास के लोगों के लिए  वो प्रेम , करुणा और सकारात्मक ऊर्जा से भरी हुई उनकी दीदी हैं जिनकी प्रार्थनाओं में एक आध्यात्मिक बल है।  जिनसे लोग अपने सुख दुःख बांटने में बिलकुल नहीं हिचकिचाते। यश भारती सम्मान से सम्मानित अर्चना जी अपने आत्मबल से कैंसर जैसे रोग को भी मात दे चुकी हैं।

दीदी , आमतौर पर लखनऊ में रहने वाले लोग और खासकर दूरदर्शन आकाशवाणी से जुड़े लोग आपको न्यूज़ रीडर और एंकर के रूप में ही जानते हैं। मैंने भी सबसे पहले आपको इसी रूप में जाना था।  यानी एक तरह से ये आपकी प्राथमिक पहचान है। तो सबसे पहले हम आपके इसी रूप की बात करते हैं। कैसे और कब आना हुआ आपका दूरदर्शन में ?

तुमने ठीक कहा पूजा , ज़्यादातर लोग वास्तविक अर्चना सतीश को नहीं जानते। जहाँ तक न्यूज़ रीडिंग या एंकरिंग की बात है तो शौक तो बचपन से था। जब टी वी पर दिल्ली दूरदर्शन पर साधना श्रीवास्तव , सलमा सुलतान को देखती थी समाचार पढ़ते हुए तो अक्सर मैं कहती थी कि एक दिन मैं भी ऐसे ही टी वी पर आऊँगी। लेकिन तब मालूम नहीं था कि मेरी यूं ही मज़ाक में कही बात एक दिन सच हो जायेगी।
मेरा जन्म बनारस में हुआ।  मेरे पिता जी का देहांत मैं बहुत छोटी थी तभी हो गया था। तो मैं अपने भाई के साथ रहती थी देहरादून में। मेरी रूचि हमेशा से एक्टिंग , सिंगिंग आदि में थी। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मैं नाटक आदि में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेती थी। भाई का ट्रांसफर बनारस हुआ और मैं भी बनारस आ गई। यहीं पर मेरी मुलाक़ात सतीश जी से हुई। हमने एक दूसरे को पसंद किया और दोनों परिवारों के सहयोग और आशीर्वाद के साथ  हम विवाह बंधन में बंध गए। हालांकि  हमारी इंटरकास्ट मैरिज है लेकिन दोनों ही परिवारों ने इस सम्बंध को खुले मन से स्वीकार किया।


                                     शादी के बाद आमतौर पर लड़कियों का करिअर खत्म हो जाता है। लेकिन मेरा करिअर शादी के बाद ही और अधिक विकसित हुआ। दरअसल मेरे ससुर जी बहुत प्रोग्रेसिव माइंड सेट के थे।  उन्होंने मेरी सास को भी काफी प्रमोट किया था अपना करिअर बनाने में। जिसका परिणाम  ये हुआ कि मेरी सास ने न केवल अपनी पढाई पूरी की बल्कि वो एक कॉलेज की प्रिंसिपल पद तक पहुंची। इतना ही नहीं तत्कालीन सरकार की ओर से  उन्हें पुरस्कार भी मिला। मेरे ससुर जी को लगता था कि मैं बहुत टैलेंटेड हूँ। वो चाहते थे कि मैं अपने टैलेंट को एक दिशा दूं। उसी समय दूरदर्शन की ओर से एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ एनाउंसर के लिए। ससुर जी के कहने पर मैंने फॉर्म भर दिया। और मैं सेलेक्ट भी हो गई। यहाँ मैंने ३ साल एनाउंसर के तौर पर काम किया और फिर मैं न्यूज़ रीडिंग में आ गई। तो संक्षेप में इस तरह  टी वी पर  मेरा करिअर ऐसे शुरू हुआ।
 
और फिर एंकरिंग ?

दूरदर्शन में काम करने के दौरान ही मुझे कई सरकारी आयोजनों में एंकरिंग के प्रस्ताव मिलने लगे थे। मुझे भी लगा कि ये अपनी प्रतिभा को विस्तार देने और अपनी क्षमता को परखने का एक अच्छा माध्यम है। मैंने कल्याण सिंह से ले कर अभी योगी जी तक सभी मुख्यमंत्रियों के आयोजनों में संचालन का काम किया है। मैंने अटल जी और सुषमा स्वराज जी के सामने भी मंच संचालन भी किया है। और मेरे लिए ये बड़े गर्व की बात है कि दोनों ने ही मुझे नोटिस किया। मेरे शब्दों के चयन मेरे उच्चारण और मेरी प्रस्तुति को सराहा है।दोनों ही बहुत प्रभावशाली वक्ता रहे हैं। उनके शब्दों का  चयन और दोषरहित उच्चारण किसी को भी प्रभावित कर सकता है। जब ऐसे लोग आपकी प्रशंसा करें तो गर्व होना स्वाभाविक है।




प्रोफेशनली आप काफी सक्सेसफुल रही हैं। आपने काफी नाम कमाया , बड़े बड़े लोगों से प्रंशसा पाई , पुरस्कार भी मिले आपको। पारिवारिक जीवन भी अच्छा रहा फिर ये अध्यात्म में कैसे आ गई क्योंकि आमतौर पर ये समझा जाता है कि अक्सर दुखी और परेशान लोग ही ईश्वर या अध्यत्म की ओर भागते हैं। 

शुरु से ही सूर्य मुझे आकर्षित करता रहा है। सूर्य और तुलसी को जल चढाना ये सब पहले से ही करती थी। ओशो को काफी पढा है। बिना किसी ट्रैनिंग के ध्यान किया करती थी। तो शुरु से ही अध्यात्म की और लगाव रहा है। घर में कल्याण पत्रिका आती थी। ओशो का साहित्य भी आता था। मेरी माँ ध्यान इत्यादि किया करती थी। उनकी पूजा पद्धति धार्मिक नहीं आध्यात्मिक ही थी। बचपन में रामकिंकर जी को खूब सुना, माँ आनंदमयी को सुना। तो वो बीज था भीतर शुरू से। फिर मैंने  श्री श्री रविशंकर जी की सुदर्शन क्रिया सीखी। तबसे जीवन में सक्रिय रूप से दर्शन और आध्यात्म का पदार्पण हुआ। अब मैं स्वयं लोगों को ध्यान साधना  सिखाती हूँ। मेरी प्रोफेशनल लाइफ से अलग भी मेरा एक रूप है जहाँ किसी के लिए मैं गुरु हूँ , किसी के लिए उनकी गाइड हूँ तो किसी के लिए ऐसी दोस्त  हूँ जिससे वो कभी भी अपने मन की जीवन की कोई भी उलझन कोई भी बात शेयर कर सकते हैं।


आप एक कैंसर सर्वाइवर हैं। ये एक ऐसा मर्ज़ है जिसके नाम से लोग डर जाते हैं। आप कैसे लड़ी इस मर्ज़ से ?

साल २०१० में मेरे जन्मदिन के दिन ही ये पता चला कि मुझे कैंसर है। मैंने अपनी इस बीमारी को एक चुनौती के रूप में लिया। सबसे पहले तो मैंने उसको पूरे मन से स्वीकार किया कि मुझे ये बीमारी है और मुझे इससे बाहर  निकलना है स्वस्थ होना है। अक्सर हम अपने जीवन में आये दुखों को चुनौतियों को पूरे मन से नहीं स्वीकार करते और इसीलिए उनसे बाहर भी नहीं निकल पाते। बीमारी के दौरान एक अंतर्यात्रा सी चलती रही मेरे भीतर। बहुत कुछ सोचने समझने का मौका मिला।





                                              ये भी सोचा कि  डर किस बात का ? मरना तो सबको है न। जिन्हे कैंसर है वो भी मरेंगे , जिन्हे नहीं है वो भी मरेंगे। मरना तो सबका तय है। अब कहाँ कैसे क्यों ये अलग अलग हो सकता है। तो जब मरना है ही तो डरना कैसा। हम सबका लास्ट सीन तो लिखा जा चुका  है न। तो इसमें डरने की क्या बात। जो बेस्ट पॉसिबल हो , बस वो करना चाहिए। अगर कहूँ कि इस बीमारी ने भीतर से बहुत बदला भी है तो गलत नहीं होगा। । इसके पहले मन में  बहुत सारे रेगरेट्स थे ,बहुत मांग थी कि ये हो जाए , वो हो जाए , लेकिन जब कैंसर की वजह से बिस्तर पर लेटे तो ज़िंदगी की फिल्म कई बार चली आँखों के आगे से। तब महसूस हुआ कि जीवन में जिन चीज़ों ने मुझे हर्ट किया उसमे पूरा पूरा दोष दूसरों का ही नहीं था , कुछ दोष मेरा भी था। जीवन में बदलाव तभी आता है जब हमारा नज़रिया बदलता है। बहुत बार जीवन में आए  संकट हमारे भीतर कोई सकारात्मक बदलाव लाने के लिए भी आते हैं।
ईश्वर के प्रति मन में आभार का एक धन्यवाद का भाव आया। ये लगा  कि उसकी नज़र अभी भी मुझ पर है। तभी तो वो मुझे नई नई चुनौतियां देता है। जब मैं एक बाधा पार कर लेती हूँ तो वो कोई दूसरी बाधा मेरे सामने ले आता है। वो मुझे भूला नहीं। उसने अच्छे बुरे सभी अनुभव प्रचुर मात्रा में दिए हैं। इसी से तो बनता है न जीवन। हम हमेशा अच्छा ही क्यों मांगते हैं।  मैंने  इस बीमारी को बहुत सहजता से लिया। न मैं डरी न मेरा परिवार डरा , न मैं रोई  न मेरे घर पर कोई रोया। आपरेशन के बाद जब मैं घर आई तो उसी दिन सोचा कि  मेरी अब नई जिंदगी शुरू होती है।


हमने सुना है कि आप बहुत सारे लोगों के लिए एक ऐसी करुणामयी दीदी हैं जो न केवल उन्हें गाइड करती हैं बल्कि उनके संकट के समय में उनके लिए प्रार्थना भी करती हैं। 

हां ऐसा अक्सर होता है कि वो लोग जो मुझसे आध्यात्मिक  रूप से जुड़े हुए हैं वो अपने संकट में मुझे याद करते हैं। कई बार जब मैं बेहद व्यस्त होती हूँ या देर रात जब मैं गहरी नींद में होती हूँ तब भी ऐसी किसी भी कॉल को इग्नोर नहीं करती हूँ। अगर कोई दो बजे रात को मुझे फोन करके कहता है की उसका कोई अपना अस्पताल में है और उसे मेरी प्रार्थना मेरे आशीर्वाद की ज़रूरत है तो ज़ाहिर सी बात है कि  वो व्यक्ति वास्तव में मुसीबत में होगा और उसे मेरी प्रार्थनाओं पर बहुत विश्वास होगा वरना  इतनी रात कोई यूं ही तो किसी को नहीं डिस्टर्ब करता। और अगर मेरी प्रार्थना किसी के जीवन में थोड़ा सा भी परिवर्तन ला पाती  है तो मेरे लिए तो ये बड़े सौभाग्य की बात है।




आपने जैसा बताया कि आप दूरदर्शन के साथ साथ तमाम सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रमों में व्यस्त रहती हैं। साथ ही आप ध्यान शिविर और सतसंग भी कंडक्ट कराती रहती हैं। कई बार आपको इन सबके के लिए शहर से बाहर भी जाना पड़ता है। ऐसे में आपके परिवार पर इसका क्या असर पड़ता है विशेषकर आपके पति का क्या रवैया रहा है ?

अगर मैं ये कहूं कि मेरी सफलता में आधे से ज़्यादा रोल मेरे पति का रहा है तो गलत नहीं होगा। मुझे आगे बढ़ाने  में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। इसीलिए मैंने अपने नाम के आगे उनका नाम लगाया। क्योंकि आज मैं जो हूँ वो कभी नहीं हो पाती अगर सतीश जी मेरे साथ न होते। कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां आईं जब मुझे लगा कि मुझे लगा कि अब मैं अपना करिअर नहीं कंटिन्यू कर पाऊँगी। जैसे जब मैं लखनऊ में एक न्यूज़  रीडर के तौर पर अपनी पहचान बना रही थी तभी मेरे पति का ट्रांसफर हो गया। आमतौर पर ऐसी परिस्थति में पत्नी को ही कम्प्रोमाइज़ करना पड़ता है। लेकिन सतीश जी ने ऐसा कुछ भी नहीं होने दिया। वो अकेले ही उस  शहर में शिफ्ट हो गए सिर्फ इसलिए कि मेरा करिअर चलता रहे। आज भी उनके सहयोग के बिना मैं कुछ भी नहीं कर सकती। सिर्फ इतना ही नहीं मैं अपने घर में काम करने वाले सभी लोगों की भी बहुत शुक्रगुज़ार हूँ जिनके सहयोग के बिना मैं कभी भी वो सब नहीं कर पाती जो मैं आज कर पा रही हूँ। चाहे वो घर की साफ़ सफाई करने वाले हो या खाना बनाने वाले। सच तो ये है कि हम इनका क़र्ज़ कभी नहीं चुका सकते। जो सैलरी हम इन्हे देते हैं वो इनकी सेवा के बदले कुछ भी नहीं है।





एक न्यूज़  रीडर और एंकर को बहुत धैर्यवान और भीतर से बहुत शांत रहने की ज़रूरत होती है। क्योंकि आपका काम परफॉर्मेंस बेस्ड होता है। आप खुद को कैसे शांत रखती हैं। 

ध्यान, योग प्राणायम तो है ही लेकिन सबसे ज़्यादा बदलाव अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने से होता है। आपने एक फिल्म ज़रूर देखी होगी ओम शान्ति ओम। उसमे शाहरुख़ खान का एक डायलॉग था कि हिंदी फिल्मों की तरह हमारी ज़िंदगी में अंत में सब अच्छा होता है । और अगर अच्छा नहीं होता तो  पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। मेरा यही मानना है कि जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं होता, न सुख न दुःख। होता क्या कि हम लोग बहुत छोटी छोटी बातों में छोटे छोटे इगोज़ में छोटी छोटी नाराज़गियों में फंसे रहते हैं और इसलिए बड़े उद्देश्यों से चूक जाते हैं। मुझे भी अपने जीवन में बहुत सारी  आलोचनाओं शिकवा शिकायतों का सामना करना पड़ा और आज भी करना पड़ता है। लेकिन जो लोग मेरी आलोचना करते हैं या मुझे पीछे खींचने की कोशिश करते हैं मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। क्योंकि वो लोग भी मेरी उन्नति का ही मार्ग प्रशस्त करते हैं। वो लोग अप्रत्यक्ष रूप से मुझे और अच्छा करने के लिए प्रेरित करते हैं।

आपने कुछ फिल्मों में भी काम किया है। उनके विषय में कुछ बताइये। 

हाँ , दो फ़िल्में हैं। नवाब बूटा और थकन।  इसमें से थकन रिलीज़ नहीं हो पाई थी किन्ही कारणों से। एक शार्ट फिल्म में भी काम किया था एक क़दम और। इसके अलावा लखनऊ दूरदर्शन के रास्ते बदलते हैं , कसाईबाड़ा आदि  धारावाहिकों में भी काम किया था। उस समय मुझे कुछ अच्छे ऑफर भी मिले थे यहाँ तक कि मुंबई से भी कुछ अच्छे प्रस्ताव मिले थे लेकिन मैं लखनऊ में अच्छा कर रही थी फिर मैं बहुत  महत्वाकांक्षी नहीं रही हूँ इसलिए कभी ये ख्याल नहीं आया की मुंबई जाऊं।  

फिल्म नवाब बूटा के एक भावपूर्ण दृश्य में

आपने अब तक सैकड़ों कार्यक्रमों का संचालन किया है लेकिन सबसे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण या यादगार कार्यक्रम कौन सा रहा है आपके लिए ?
मेरे लिए सबसे यादगार अनुभव था विश्व सांस्कृतिक महोत्सव जिसमे पैंतीस लाख लोग आये थे। सात एकड़ में स्टेज बना था। हज़ारों कलाकारों ने प्रस्तुति दी। हमारे प्रधानमंत्री और पूरा मंत्रिमंडल और कितने ही देशों के राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री आये थे। ये प्रोग्राम तीन दिन का था और उन तीनो दिन हिंदी में एंकरिंग मैंने की थी। इस आयोजन में पूरी इंडिया से एंकर लिए गए थे और विदेश से भी आये थे एंकर। उसमे उत्तर प्रदेश से मुझे चुना गया था। मैं आर्ट ऑफ़ लिविंग से जुडी हूँ ये एक अलग बात है।


लेकिन उन तीनो दिनों में मैंने कंटीन्यू मंच संचालन किया। मेरे लिए ये चुनौती भी थी और गर्व की बात भी थी कि मुझे इतना बड़ा मंच मिला था। और मेरी इसी उपलब्धि के कारण तत्कालीन प्रदेश सरकार ने मुझे यश भारती सम्मान के योग्य समझा और अखिलेश यादव जी ने मुझे ये पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा हाल ही में लखनऊ में हुए इन्वेस्टर समिट में भी मुझे संचालन की जो ज़िम्मेदारी दी गई वो मेरे लिए गर्व की बात है।



आप से अगर पुछा जाए कि आपकी नज़र में अर्चना सतीश क्या हैं तो आप खुद को या यूं कहूँ कि अपने पूरे सफर को  कैसे परिभाषित करेंगी ?

देखिये सबसे पहले तो मैं खुद से बहुत प्यार करती हूँ। जहाँ तक मेरे सफर की बात है तो मैं यही कहूँगी कि ये आह से वाह तक का सफर है। सच तो ये है कि अब मेरा मन ईश्वर के प्रति आभार से भरा रहता है। मन के भीतर ये भाव आ गया है।  उसने मुझे प्रतिकूल परिस्थितियों में डाला भी तो मुझे और सँवारने और निखारने के लिए। इसलिए अब कोई शिकायत नहीं। अब मन में यही भाव है कि मैंने अपने अनुभवों से जो कुछ सुंदर पाया है उसकी सुवास दूसरों में भी बाँट सकूं। किसी के जीवन में मेरी बातों से या मेरी प्रार्थनाओं से थोड़ा सा भी परिवर्तन आता है  तो मेरा तो जीवन को सार्थक है। 






आप जैसी बहुमुखी प्रतिभा और प्रेरक व्यक्तित्व से मिलना हमारे लिए भी एक उपलब्धि है। हमारी पूरी टीम की तरफ से बहुत बहुत शुभकामनायें।
                                                  प्रस्तुति : पूजा श्रीवास्तव , सुप्रिया श्रीवास्तव 

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