रिप्ड जींस या रिप्ड सोच : रीतिका शुक्ला

ये देश अब इस स्थिति में पहुंच गया है जहां लोगों के संस्कार उनके विचार , व्यवहार या जीवनशैली में नहीं बल्कि उनके कपड़ों में ढूंढा जाने लगा है। खासकर महिलाओं के पहनावे को लेकर लोग जरूरत से ज्यादा जजमेंटल हो रहे हैं। उनके हिसाब से ऐसी महिलाएं देश की संस्कृति के लिए खतरा हैं जो जींस पहनती हैं खास कर रिप्ड जींस । वैसे जब हमारे देश में संस्कारी जींस आ सकती है , तो कुछ भी होना मुमकिन है । मजेदार बात यह है कि दुनिया अभी जीन के मुद्दे से उबर भी नहीं पाई थी कि अब भारत में जींस को लेकर बवाल मचा गया । हमने जींस को अब तक एक परिधान के रूप में देखा , लेकिन अब इसे उनके संस्कारों से जोड़ा जा रहा है । हालांकि जींस का कोई जेडर नहीं है , इसे कोई भी पहन सकता है , तो फिर एक महिला के जींस पहनने में क्या खराबी है । किसी के संस्कार उसके कपड़ो में कैसे हो सकते है , यह समझना थोड़ा मुश्किल है । रिप्पड जींस तो चलो फिर भी चल जाएगी , लेकिन लोगों की रिप्पड सोच का क्या किया जाए । देश में कोई भी नेता महंगाई बढ़ने पर कुछ नहीं बोल रहा , न ही किसी का ध्यान बढ़ती बेरोजगारी प...