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Showing posts from March, 2021

रिप्ड जींस या रिप्ड सोच : रीतिका शुक्ला

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  ये देश अब इस स्थिति में पहुंच गया है जहां लोगों के संस्कार उनके विचार , व्यवहार या जीवनशैली में नहीं बल्कि उनके कपड़ों में ढूंढा जाने लगा है। खासकर महिलाओं के पहनावे को लेकर लोग जरूरत से ज्यादा जजमेंटल हो रहे हैं। उनके हिसाब से ऐसी महिलाएं देश की संस्कृति के लिए खतरा हैं जो जींस पहनती हैं खास कर रिप्ड जींस । वैसे जब हमारे देश में संस्कारी जींस आ सकती है , तो कुछ भी होना मुमकिन है ।      मजेदार बात यह है कि दुनिया अभी जीन के मुद्दे से उबर भी नहीं पाई थी कि अब भारत में  जींस  को लेकर बवाल मचा गया । हमने जींस को अब तक एक परिधान के रूप में देखा , लेकिन अब इसे उनके संस्कारों से जोड़ा जा रहा है । हालांकि जींस का कोई जेडर नहीं है , इसे कोई भी पहन सकता है , तो फिर एक महिला के जींस पहनने में क्या खराबी है ।   किसी के संस्कार उसके कपड़ो में कैसे हो सकते है , यह समझना थोड़ा मुश्किल है । रिप्पड जींस तो चलो फिर भी चल जाएगी , लेकिन लोगों की रिप्पड सोच का क्या किया जाए । देश में कोई भी नेता महंगाई बढ़ने पर कुछ नहीं बोल रहा , न ही किसी का ध्यान बढ़ती बेरोजगारी प...

क्या हो श्रेष्ठता का मापदंड ?

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  “ मैं जिंदा नहीं रहना चाहती थी ” , यह बात कुछ दिन पहले दुनिया के सबसे शक्तिशाली ब्रिटिश शाही परिवार की बहू मेगन मार्कल ने अपने साथ हुए भेदभाव के बाद कही । अब सोचिए कि इतने शक्तिशाली परिवार की बहू का ये हाल है, तो एक मिडल क्लास परिवार की बहू का क्या हाल होगा । पहली नजर में ये आपको छोटा सा मसला लग सकता है, लेकिन इसकी जड़े हमारी सोच से भी ज्यादा गहरी है । कहीं न कहीं यह मामला नस्लभेद से जुड़ा हुआ है, जो किसी भी देश या समाज के लिए अच्छा नहीं है । यह किसी इंसान को कमतर दिखाता है, जैसे उसका कोई वजूद ही न हो । हम किसी को देख कर यह अनुमान भी नहीं लगा सकते कि उस पर क्या गुजर रही होगी । कहने को तो हर कोई कहता है कि हम नस्लभेद के खिलाफ है, लेकिन सच क्या है हम सब जानते है । नस्लभेद को अगर हम परिभाषित करे, तो यह ऐसी धारणा है कि हर नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियां होती हैं , जो उसे दूसरी नस्लों से कमतर या बेहतर बनाती हैं।" नस्लवाद लोगों के बीच जैविक अंतर की सामाजिक धारणाओं में आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रह दोनों होते हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मार्कल नस्लभेद पर आज ...

उत्सव नहीं सहजता है जरूरी : पूजा श्रीवास्तव

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर फिल्म सौदागर को याद करना बहुत जरूरी है । हमारे समाज की आज भी यह विडंबना है कि एक स्त्री को अपना सोशल स्टेटस पाने के लिए किसी ना किसी रिश्ते से जोड़ना जरूरी होता है । कभी किसी की बेटी बनकर कभी किसी की पत्नी बनकर कभी किसी की मां बन कर । एक अकेली , अविवाहित या तलाकशुदा स्त्री को समाज अभी भी वो सोशल स्टेटस नहीं देता, जो एक स्त्री को विवाह करते ही प्राप्त हो जाता है। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक फिल्म सौदागर को याद करना बहुत जरूरी है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, नूतन और पदमा खन्ना ने प्रमुख भूमिका निभाई है| फिल्म में अमिताभ बच्चन ताड़ के पेड़ से रस निकालकर उसका गुड़ बनवाते हैं और उसको बेचते हैं। गुड़ बनाती है नूतन, जिनका बनाया हुआ गुड़ पूरे इलाके में मशहूर है| अमिताभ बच्चन पद्मा खन्ना को पसंद करते हैं उनसे शादी करना चाहते हैं लेकिन उसके लिए उन्हें बहुत सारे पैसों की जरूरत है इन पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए वो नूतन से शादी कर लेते हैं जो कि एक विधवा हैं। उनके बनाए गुड़ को बेचकर धीरे धीरे अमिताभ बच्चन के पास इतने पैसे इकट्ठे हो जाते हैं कि वह पद्म...