क्या हो श्रेष्ठता का मापदंड ?

 


मैं जिंदा नहीं रहना चाहती थी, यह बात कुछ दिन पहले दुनिया के सबसे शक्तिशाली ब्रिटिश शाही परिवार की बहू मेगन मार्कल ने अपने साथ हुए भेदभाव के बाद कही । अब सोचिए कि इतने शक्तिशाली परिवार की बहू का ये हाल है, तो एक मिडल क्लास परिवार की बहू का क्या हाल होगा । पहली नजर में ये आपको छोटा सा मसला लग सकता है, लेकिन इसकी जड़े हमारी सोच से भी ज्यादा गहरी है । कहीं न कहीं यह मामला नस्लभेद से जुड़ा हुआ है, जो किसी भी देश या समाज के लिए अच्छा नहीं है । यह किसी इंसान को कमतर दिखाता है, जैसे उसका कोई वजूद ही न हो । हम किसी को देख कर यह अनुमान भी नहीं लगा सकते कि उस पर क्या गुजर रही होगी । कहने को तो हर कोई कहता है कि हम नस्लभेद के खिलाफ है, लेकिन सच क्या है हम सब जानते है । नस्लभेद को अगर हम परिभाषित करे, तो यह ऐसी धारणा है कि हर नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियां होती हैं, जो उसे दूसरी नस्लों से कमतर या बेहतर बनाती हैं।" नस्लवाद लोगों के बीच जैविक अंतर की सामाजिक धारणाओं में आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रह दोनों होते हैं।

ब्रिटेन के पूर्व प्रिंस हैरी और उनकी
पत्नी मेगन मार्कल
नस्लभेद पर आज बात करना इसलिए भी जरुरी हो गया है, क्योंकि दुनिया का सबसे शक्तिशाली ब्रिटिश शाही परिवार, जिसने लगभग आधी दुनिया पर हुकूमत की है, आज नस्लभेद के आरोप से घिरा हुआ है और यह आरोप खुद उस परिवार की बहु ने लगाया है । दरअसल ब्रिटेन के पूर्व प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मार्कल ने हाल ही में मशहूर टेलीविजन होस्ट ओपरा विनफ्रे के साथ एक इंटरव्यू में किया, जिसमें उन्होंने बताया कि जब मेगन पहली बार मां बनने वाली थीं । तब उनके अजन्मे बच्चे को राजपरिवार में रंगभेद का सामना करना पड़ा था, उस वक्त उन्हें अपने बच्चे के रंग को लेकर डरावने ख्याल आते थे । उन्हें कई बार आत्महत्या करने का भी मन हुआ, क्योंकि उन्हें बताया गया कि उनकी संतान का रंग कितना काला हो सकता है । एक बच्चा जो दुनिया में आया ही नहीं है, उसके रंग के बारे में चर्चा हो रही थी कि वह कैसा होगा । सिर्फ गोरा रंग न होने के कारण आर्ची (मेगन का बेटा) से राजकुमार की उपाधि छिन सकती थी । साथ ही एक अजन्मे बच्चे को कोई सुरक्षा और कोई उपाधि भी न दी जाती । सिर्फ डार्क कलर होना, आखिर इतना बड़ा गुनाह कैसे हो सकता है । बड़ी बात यह भी है कि ब्रिटिश शाही परिवार में मेगन मिक्सड रेस की पहली सदस्य हैं, उनके पिता श्वेत है, जबकि मां अफ्रीकी अमेरिकी है । साथ ही मेगन एक तलाकशुदा महिला भी थी । ऐसे ही कई कारण थे मेगन को नापसंद करने के । यहीं कारण था कि बहुत समय तक कोई भी प्रिंस हैरी और मेगन मार्कल की शादी के लिए तैयार नहीं था । 

ब्रिटिश शाही परिवार के सदस्य

यह वही राजघराना है, जहां कभी 19 वर्षीय प्रिंसेस डायना की शादी 32 वर्षीय प्रिंस चार्ल्स से कराई गई थी, जो उनकी उम्र 12-13 साल बड़े थे । यह शादी इसलिए भी कराई गई, क्योंकि राजपरिवार एक ऐसी बहू को लाना चाहता था, जो पूरी तरह से प्योर हो यानी वर्जिन हो । एक तरह से वो अपने परिवार में बेस्ट जींस चाहते थे, जो एक कामन सोच है । शादी के वक्त महिलाओं का कुल, रंग और प्योरिटी जरूर देखी जाती है । पुरुष के चाहे कितनी भी महिलाओं के साथ संबंध हो, मगर उसे पत्नी कुलीन, प्योर औऱ सुंदर चाहिए होती है । खैर भारतीय होने के नाते आपको यह बात छोटी लग सकती है, क्योंकि भारत में तो लड़के की शादी के वक्त ही ये डार्क कलर के बच्चे होने के रिस्क को कम करने के लिए गोरी लड़की का ही चयन किया जाता है, चाहे लड़का कितना ही काला क्यों ही न हो । शादी के विज्ञापन में भी साफ लिखा होता है कि गोरी और सुशील बहू चाहिए या दूसरे शब्दों में कहे तो शुद्ध या वरजिन । हर किसी को गोरी और अपने से कम उम्र की पत्नी चाहिए । 

यह एक आम धारणा है, जो कि भारतीय लोगों की ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश शाही परिवार की भी थी । आज भी लोग गोरे रंग को लेकर बहुत आबसेस्ड है, ये पागलपन इस हद तक है कि लड़कियां गोरे होने के लिए क्या-क्या नहीं करती है । ये एक अलग तरह का प्रेशर है, जो वही इंसान महसूस कर सकता है, जो डार्क कामपलेक्सन का हो । उस इंसान को हर पल यह महसूस कराया जाता है कि वो कैसी दिखती है । अब बहुत से लोग बोलेगे कि ये सब तो पुरानी बातें है, अब लोग ऐसी सोच नहीं रखते है । अगर ऐसा है, तो आज दुनियाभर के लोग उन फिल्टर्स का प्रयोग क्यों कर रहे है, जो आपको चुटकियों में गोरा बना देता है । ये कैसी सोच है, जो गोरे इंसान को डार्क इंसान से अधिक श्रेष्ठ समझती है । ये कैसी गहरी खाई है, जो भरने का नाम ही नहीं ले रही है । चाहे कोई बड़े महल में रहता हो या एक छोटे से घर में गोरे रंग को लेकर सबकी मानसिकता एक समान है । सबको सुंदर और सुशील बहु चाहिए । इस तरह से तो जो लड़की सावले रंग की हो, वो क्या करेगी । खुद को गोरा करने के तरीके ही सोचेगी न । कोई फेयरनेस क्रीम यूज करेगी या कोई फिल्टर लगाएगी । कितना बुरा है ये रंगभेद या नस्लभेद आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते है । इसको समझने के लिए आपको खुद को उस जगह पर रखना पड़ेगा, तभी आप उस पीड़ा को समझ सकेगे ।

साफ है कि हर देश रंगभेद या नस्लभेद की समस्या से जूझ रहा है । इसको खत्म करने के लिए पहले तो अपने अंदर श्रेष्ठ होने की भावना कम करनी होगी, क्योंकि कोई किस नस्ल, जाति या धर्म या रंग का हो, यह उसका निजी फैसला नहीं होता है । इंसान अपनी पहचान खुद से बनाता है और किसी को भी उसकी नस्ल या रंग के आधार पर छोटा दिखाने का हक नहीं है । सभी के पास आगे बढ़ने के समान अवसर है । हां एक समय था, जब नस्ल के आधार पर भेदभाव होता था, लेकिन अब हर कोई आजाद है । कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है ।­­­ बस थोड़ा सा हौसला चाहिए, मेगन की तरह सच बोलने का और गलत के खिलाफ आवाज उठाने का, फिर वो चाहे दुनिया का सबसे शक्तिशाली ब्रिटिश शाही परिवार क्यों न हो ।


P.C- Google                                                                                       :   रीतिका  शुक्ला 

                                                          

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