रिप्ड जींस या रिप्ड सोच : रीतिका शुक्ला

 

ये देश अब इस स्थिति में पहुंच गया है जहां लोगों के संस्कार उनके विचार , व्यवहार या जीवनशैली में नहीं बल्कि उनके कपड़ों में ढूंढा जाने लगा है। खासकर महिलाओं के पहनावे को लेकर लोग जरूरत से ज्यादा जजमेंटल हो रहे हैं। उनके हिसाब से ऐसी महिलाएं देश की संस्कृति के लिए खतरा हैं जो जींस पहनती हैं खास कर रिप्ड जींस । वैसे जब हमारे देश में संस्कारी जींस आ सकती है, तो कुछ भी होना मुमकिन है । 
 

 मजेदार बात यह है कि दुनिया अभी जीन के मुद्दे से उबर भी नहीं पाई थी कि अब भारत में जींस को लेकर बवाल मचा गया । हमने जींस को अब तक एक परिधान के रूप में देखा, लेकिन अब इसे उनके संस्कारों से जोड़ा जा रहा है । हालांकि जींस का कोई जेडर नहीं है, इसे कोई भी पहन सकता है, तो फिर एक महिला के जींस पहनने में क्या खराबी है ।

  किसी के संस्कार उसके कपड़ो में कैसे हो सकते है, यह समझना थोड़ा मुश्किल है । रिप्पड जींस तो चलो फिर भी चल जाएगी, लेकिन लोगों की रिप्पड सोच का क्या किया जाए । देश में कोई भी नेता महंगाई बढ़ने पर कुछ नहीं बोल रहा, न ही किसी का ध्यान बढ़ती बेरोजगारी पर गया, क्योंकि हमारे देश का सबसे चिंतनीय विषय तो महिलाओं की रिप्पड जींस है ।

हमारे देश में अभी भी एक महिला को एक इंडिविजुअल के रुप में नहीं देखा जाता है । यह समझना बेहद जरुरी है कि वो एक इंसान है औऱ उसकी अपनी पसंद औऱ नापसंद है । लड़कियां क्या पहनती हैं और उनको क्या पहनना चाहिए, यह उनकी अपनी निजी पसंद है ।

         हम एक महिला को कभी मां के तौर पर देखते है, तो कभी एक बेटी या बहू के तौर पर, लेकिन एक इंसान के तौर पर देखना भूल जाते है । अगर जितना ध्यान लोग लड़कियां क्या पहन रही हैं इंसान के कपड़े छोटे हो, तो चल जाएगा, लेकिन सोच छोटी नहीं होनी चाहिए । ये संस्कार तब कहां चले जाते है, जब लड़कियों को घूरा जाता हैं । उनकी फटी जींस से उनका घुटना देखा जाता है। वही शॉर्टस अगर कोई लड़का पहने, तो कोई आपत्ति नहीं होती।

      अगर कुछ सिखाना ही है, तो आदमियों को यह सिखाया जाए कि औरतों को कैसे देखें और उसकी इज्जत कैसे करें । शायद इससे हमारी संस्कृति बच जाए, लेकिन यह काम कोई नहीं कर रहा है, बल्कि महिलाओं को ही दबाया जा रहा है ।

     औरतों के पहनावे पर टिप्पणी की जाती है, लड़कों से बोला जाता है कि तुम्हारी कोई गलती नहीं है, वो कपड़े ही ऐसे पहनी थी, तुम्हारी आंखें तो उसके कपड़ों पर जाएंगी ही । कितना आसान है कि किसी औरत को ही गलत बता देना । अब इसी तरह के सोच के लोग बोलते है कि जींस वाली महिला बच्चों को क्या संस्कार देगी । यह समाज में क्या मिसाल देंगी, इन औरतों की वजह से लड़के बिगड़ रहे हैं । इन औरतों के पहनावे की वजह से रेप केस बढ़ रहे हैं ।

         जींस महज एक परिधान है और इसे संस्कार का सिंबल न बनाया जाए । हमारी संस्कृति दूसरों की इज्जत करना सिखाती है । औरतों के प्रति इस तरह की मानसिकता जरूर हमारे समाज के लिए अभिश्राप है, जो हमें बहुत पीछे ले जा रहा है । आज महिलाएं आत्मनिर्भर है, वे खुद अपने जीवन के सभी फैसले कर रही है । उन्हें पता है कि क्या उनके लिए अच्छा है और क्या बुरा । तो यह फैसला भी उन पर छोड़ दिया जाए कि उन्हें क्या पहनना है । हम उन पर संस्कार के नाम पर अपनी सोच नहीं थोप सकते । साथ ही हमें अपनी सोच में थोड़ी सहजता लाने की आवश्यकता है ।

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