उत्सव नहीं सहजता है जरूरी : पूजा श्रीवास्तव
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर फिल्म सौदागर को याद करना बहुत जरूरी है । हमारे समाज की आज भी यह विडंबना है कि एक स्त्री को अपना सोशल स्टेटस पाने के लिए किसी ना किसी रिश्ते से
जोड़ना जरूरी होता है । कभी किसी की बेटी बनकर कभी किसी की पत्नी बनकर कभी किसी की
मां बन कर । एक अकेली, अविवाहित या तलाकशुदा स्त्री को समाज अभी भी वो सोशल स्टेटस नहीं देता, जो एक स्त्री को विवाह करते ही प्राप्त हो जाता है।
जोड़ना जरूरी होता है । कभी किसी की बेटी बनकर कभी किसी की पत्नी बनकर कभी किसी की
मां बन कर । एक अकेली, अविवाहित या तलाकशुदा स्त्री को समाज अभी भी वो सोशल स्टेटस नहीं देता, जो एक स्त्री को विवाह करते ही प्राप्त हो जाता है।
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक फिल्म सौदागर को याद करना बहुत जरूरी है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, नूतन और पदमा खन्ना ने प्रमुख भूमिका निभाई है| फिल्म में अमिताभ बच्चन ताड़ के पेड़ से रस निकालकर उसका गुड़ बनवाते हैं और उसको बेचते हैं। गुड़ बनाती है नूतन, जिनका बनाया हुआ गुड़ पूरे इलाके में मशहूर है|
अमिताभ बच्चन पद्मा खन्ना को पसंद करते हैं उनसे शादी करना चाहते हैं लेकिन उसके लिए उन्हें बहुत सारे पैसों की जरूरत है इन पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए वो नूतन से शादी कर लेते हैं जो कि एक विधवा हैं। उनके बनाए गुड़ को बेचकर धीरे धीरे अमिताभ बच्चन के पास इतने पैसे इकट्ठे हो जाते हैं कि वह पद्मा खन्ना से शादी कर सकें|
पदमा खन्ना से शादी करने के लिए अमिताभ बच्चन नूतन के चरित्र पर कीचड उछालते हैं कि उनका उनके जेठ के साथ अवैध संबंध है और इस आधार पर उन्हें तलाक दे देते हैं| बिना शारीरिक हिंसा किए किसी भी स्त्री को नीचा दिखाने या उससे छुटकारा पाने का इससे अच्छा तरीका तो और कोई हो भी नहीं सकता।
तलाक के बाद नूतन अकेली रह जाती हैं और गांव की बुजुर्ग औरते, जिनकी जिम्मेदारी होनी चाहिए थी कि अकेली पड़ गई औरत की हिम्मत बढ़ाती उसे उसका अधिकार दिलातीं, बजाय इसके वो नूतन को उल्टी सीधी बातों से परेशान करना शुरू कर देती हैं।
इस मानसिक यंत्रणा से बचने के लिए नूतन एक ऐसे उम्र दराज आदमी से शादी कर लेती हैं जिनके ऑलरेडी तीन बच्चे हैं और जिनकी बीवी मर चुकी है| अपने इस तीसरे विवाह के बाद नूतन काफी खुश और संतुष्ट दिखाई देती हैं।
फिल्म में अमिताभ बच्चन एक ऐसे सौदागर के रोल में नजर आते हैं जो अपने फायदे के लिए एक विधवा औरत से शादी करते हैं, उसके श्रम का उपभोग करते हैं, उसकी देह का उपभोग करते हैं और अपना फायदा निकल जाने के बाद उसे छोड़ देते हैं| और नूतन दोबारा शादी करने के लिए इसलिए मजबूर होती है, क्योंकि उन्हें समाज में अपना एक सोशल स्टेटस चाहिए होता है जो किसी की पत्नी बनकर ही उन्हें हासिल हो सकता था।
गौर से देखिए तो हमारे समाज की आज भी यह विडंबना है कि एक स्त्री को अपना सोशल स्टेटस पाने के लिए किसी ना किसी रिश्ते से जोड़ना जरूरी होता है कभी किसी की बेटी बनकर कभी किसी की पत्नी बनकर कभी किसी की मां बन कर । एक अकेली , अविवाहित या तलाकशुदा स्त्री को समाज अभी भी वो सोशल स्टेटस नहीं देता जो एक स्त्री को विवाह करते ही प्राप्त हो जाता है । आज भी ऐसी स्त्रियों को सोशल एक्सेप्टेंस मिलती ही नही । तमाम स्त्रियां आज भी बहुत से यंत्रणापूर्ण रिश्तो को बोझ की तरह इसलिए ढोती हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि एक बार वो इस रिश्ते से बाहर निकल गई तो उनका अपना कोई वजूद नहीं होगा, उनकी अपनी कोई पहचान नहीं होगी ।
स्त्री के वजूद को लेकर , उसकी ख्वाहिशों , उसकी इच्छाओं को लेकर हमारा समाज सहज हो जाए यही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी स्त्री सशक्तिकरण की दिशा में और इस बात पर पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों को गौर करने की जरूरत है।
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