शक्ति की आराधना का उत्सव और शक्ति का उपहास : पूजा श्रीवास्तव
नवरात्रि का आरम्भ हो चुका है। नवरात्रि यानि भक्ति का उत्सव , शक्ति की आराधना का उत्सव। भक्तिमय माहौल में घरों और मंदिरों में देवी की आराधना हो रही है। शक्ति पूजन के इस उत्सव में ये देखना बेहद प्रासंगिक है कि हमारी अपनी मानसिकता स्त्रियों को लेकर किस तरह की है ? विशेषकर यदि उस स्त्री से हमारा किसी भी प्रकार का वैचारिक मतभेद है। आइये देखते हैं डिजिटल इंडिया के इस दौर में महिलाओं खासकर उन तीन महिलाओं के बारे में किस प्रकार की टिप्पणी की जाती रही है जो राजनीति के क्षेत्र में अपना एक ख़ास मुकाम रखती हैं।
सबसे पहले बात सोनिया गाँधी की। भारत के सबसे मज़बूत और ख़ास राजनैतिक घराने की बहू के रूप में सोनिया गाँधी तब तक सेफ़ थीं जब तक वो राजनीति के मैदान में नहीं कूदी थीं। राजनीति में उतरते ही उनके भूत ,वर्तमान और भविष्य की जड़ें खोदी जाने लगीं। उनके हिंदी उच्चारण, उनकी बीमारी का मज़ाक़ उड़ाया गया , उन्हें वापस इटली लौट जाने की हिदायतें दी गई। उनका चरित्र हनन करने के लिए अजीबोगरीब तथ्य जुटाए गए। ये कहा गया कि राजीव गाँधी से विवाह करने के पूर्व वो बॉर गर्ल का काम करती थीं।
इस संदर्भ में अगर हम सोनिया गाँधी के व्यक्तित्व को देखें तो हम पाते हैं क़ि उन्होंने अपने बारे में तमाम अनाप शनाप बातें सुनने के बाद भी अपना आपा कभी नहीं खोया। राजनीति में उनकी रूचि कभी नहीं रही। राजीव गाँधी की मौत के बाद उन्होंने राजनीति में न उतरने की ठान रखी थी और बहुत प्रयासों के बाद वे राजनीति में आईं। राजनीति में आने के बाद भी उन्होंने सादगी, सौम्यता और गरिमा का दामन कभी नहीं छोड़ा। सार्वजनिक जीवन में उनका पहनावा हमेशा वैसा ही रहा जैसा एक आम भारतीय महिला से अपेक्षित है। आम जनता से संवाद स्थापित करने के लिए उन्होंने हिंदी सीखी। उनकी भाषा हमेशा बहुत संतुलित रही है। अपने प्रचंड विरोधियों के प्रति भी कभी भी उन्होंने अभद्र शब्दों या विशेषणों का इस्तेमाल नहीं किया। सास और पति के न होते हुए भी उन्होंने उस परिवार की परम्परा को कायम रखा जिसमे वो विवाह करके आईं और उसकी विरासत को न केवल संभाला बल्कि उसे आगे बढ़ाने के लिए भी प्रयासरत रही । उन्होंने अपनी परम्परा अपनी प्रतिबद्धता से कभी मुंह नहीं मोड़ा। वो एक मज़बूत और संवेदनशील भारतीय नारी की जीवंत प्रतीक हैं जो बेहद शान्ति और सौम्यता से अपने विरोधियों का सामना करती है लेकिन अपने पथ से डिगती नहीं हैं ।
इसी तरह एक दूसरी महिला मायावती हैं जो दलित समाज की बेहद ताक़तवर नेता बन कर उभरीं। उन्होंने न केवल मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश पर शासन किया बल्कि भारतीय राजनीति में भी यदा कदा अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराती रही हैं। मायावती के रूप रंग की खिल्ली उड़ाने वाले तमामों वीडियो सोशल मीडिया पर खूब धड़ल्ले से फॉरवर्ड किये जाते रहे हैं। पिछले दिनों एक छोटी बच्ची का वीडियो खूब वायरल किया गया। ये छोटी सी बच्ची दिखने में मोटी और काली है। घिसट घिसट कर अजीब सा डांस करती इस बच्ची को मायावती के बचपन का वीडियो बताया गया। इतना ही नहीं हाल में प्रियंका गाँधी की एक फोटो खूब शेयर की गई जिसमे वो बहुत सांवली सी दिख रही हैं। इस फोटो में कैप्शन था कि मोदी ने प्रियंका को दौड़ा दौड़ा कर मायावती बना दिया है। इस तरह के मेसेज फॉरवर्ड करते समय हम ये भूल जाते हैं कि हमारे आसपास तमामों ऐसी लड़कियां हैं जो इस तरह की 'बॉडी शेमिंग' का शिकार होती हैं। उनके विवाह में ,नौकरी में उनके रूप रंग के चलते बहुत बाधा आती है। कई बार उन्हें परिवार में ही उपहास और तिरस्कार का पात्र भी बनाया जाता है।
यहाँ एक और महिला की बात करना बेहद प्रासंगिक है और वो हैं ममता बनर्जी। ममता बनर्जी भारतीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में बेहद जुझारू और आक्रामक नेता के रूप में दिखाई देती हैं। उनकी नीतियों की आलोचना करने के बजाय उनके विरोधी उनके समय पर विवाह न होने और इसकी वजह से उनके बदसूरत दिखने की बात करते हुए दिखाई देते हैं। एक मेसेज सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड होता रहा है जिसमे युवा ममता बनर्जी की तस्वीर के साथ आज की ममता बनर्जी की फोटो लगा कर ये लिखा गया है कि 'समय पर विवाह न हो पाने के कारण यही होता है।' इस पोस्ट से जो संदेश निकल कर आता है वो यही है कि जिन लड़कियों का विवाह सही समय पर नहीं हो पाता वो आगे चल कर ऐसी ही बदसूरत और चिड़चिड़ी हो जाती हैं।
इस तरह का मेसेज फॉरवर्ड करने से पहले कभी हमने सोचा है कि भारतीय समाज में एक लड़की के विवाह की अनिवार्य शर्तें क्या क्या हैं। सबसे पहली शर्त है कि लड़की के पिता के पास दहेज देने के लिए एक मोटी रक़म हो। दूसरी शर्त कि लड़की गोरी हो, पतली हो ,सुंदर हो। पढ़ी लिखी ही नहीं कमाऊ हो तो और भी अच्छा। जब इतनी सारी शर्तें पूरी होती हैं तब किसी लड़की का विवाह हो पाता है। इतना ही नहीं कई बार ऐसा भी होता है कि घर वालों को लड़की की योग्यता के अनुरूप " वेल इस्टैब्लिश " लड़का नहीं मिल पाता और क्योंकि इस देश में युवाओं को सही उम्र में उनके अनुरूप नौकरी मिल पाना भी एक चुनौती है।
सवाल ये है कि हममें से कितने लोग दहेज़ बेरोज़गारी या महिलाओं के प्रति समाज के दोहरे मानदंडों से लड़ते हैं , उसका विरोध करते हैं या कम से कम अपने जीवन में कोई ऐसा उदाहरण स्थापित करते हैं जिससे प्रेरणा ली जा सके। विवाह करना या न करना किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है। एक महिला के संदर्भ में इस बात को समझना बेहद ज़रूरी है कि हमारा समाज किसी पुरुष की महत्वाकांक्षाओं को जिस तरह से स्वीकार कर लेता है , उसे उन्हें पूरा करने का अवसर और समर्थन देता है ,क्या वैसे ही एक स्त्री को देता है ? विशेषकर एक विवाहित महिला को ? वैसे भी विवाह न करना ज़्यादा बेहतर है ,बजाय विवाह करके अपने जीवनसाथी और ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर भाग जाने के।
अंत में एक बेहद ज़रूरी सवाल , हम जिस भी देश, धर्म ,समाज ,वर्ग और परिवार में जिस रंग रूप के साथ जन्म लेते हैं , उसमे हमारा रत्ती भर योगदान होता है क्या ? सोचिये , और भविष्य में किसी भी स्त्री के रंग रूप या उसके व्यक्तिगत जीवन पर कोई भी अभद्र टिप्पणी करने से पूर्व भी सोचियेगा , भले ही उस महिला से आपका कितना भी वैचारिक मतभेद क्यों न हो। साथ ही ये भी सोचियेगा कि जब आप इतनी ताक़तवर महिलाओं के बारे में ऐसी टिप्पणियां कर सकते हैं तो आपके परिवार और समाज की अन्य महिलाओं के प्रति आपकी सोच क्या होगी जिनके पास आपके आरोपों का जवाब दे सकने की न तो समझ होगी और न ही सुविधा।
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