सिंगल महिलाओं का सोशल स्टेटस : रीतिका शुक्ला

हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जो पितृसत्तात्मक सोच की विचारधारा से प्रभावित है । आसान शब्दों में कहे तो, पुरुष को हमेशा से महिलाओं से श्रेष्ठ समझा जाता है और महिलाओं के जीवन पर पुरुषों का नियंत्रण होता है । हमने उन्हे हमेशा से सिर्फ एक आदर्श के रूप में देखना चाहा । यही वजह है कि सिंगल महिला को लेकर हमारा समाज अभी भी सहज नहीं हो पाया है । वैसे तो भारत में सिंगल लेडी या अकेले रहने वाली महिलाओं की अवधारणा अपेक्षाकृत नई है, और समाज अभी भी इसे समझ नही पाया है । अभी भी समझा जाता है कि महिला को किसी न किसी पुरुष के साथ की आवश्यकता होती है, फिर चाहे वो पिता, पति हो या बेटा के रूप में हो । 

एक महिला के अकेले रहने से उससे ज्यादा परेशानी दूसरे लोगों को होती है । अगर आप भी एक सिंगल लेडी है, तो आपने भी इन सवालों का सामना जरूर किया होगा कि बेटा अब शादी की उम्र हो गई है, शादी कब करोगी या हम जब तुम्हारी ऐज के थे, तब तक तो हमारे दो बच्चे भी हो चुके थे । ऐसे कई डॉयलाग आपने भी जरूर सुने होगे । वैसे तो शादी करना या नहीं करना एक महिला का निजी फैसला है । एक महिला अपनी जिंदगी के सभी फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है, जिसमें उसकी एज या शादी भी रोड़ा नहीं बन सकते है । 

पीकू मूवी में सिंगल  इंडीपेंडेंट लेडी के रोल निभाती दीपिका
सिंगल महिलाओं की बात करें, तो यह जान लेना बहुत जरूरी हो जाता है कि आखिर इसमें कौन-कौन सी महिलाएं आती है । आसान शब्दों में कहे तो एकल महिला वो होती है, जो किसी ना किसी वजह से शादी न करना चाहती हो या उनका डाइवोर्स हो गया होता है या किसी के पति की डेथ हो गई हो । इन सभी महिलाओं को हम सिंगल लेडी की श्रेणी में रखते हैं । इसके अलावा इसमें सिंगल मदर्स भी शामिल है । अगर अविवाहित या तलाकशुदा के आंकड़ों पर गौर करें तो अंतिम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार एकल महिलाओं की संख्या में 39 प्रतिशत वृद्धि हुई । अविवाहित, विधवा, तलाकशुदा और परित्यक्त महिलाओं का आकड़ा 2001 में 51.2 मिलियन से 2011 में 71.4 मिलियन हो गया है । वक्त के साथ महिलाओं की सोच में आया अंतर साफ है और यह बदलाव अब अगली जनगणना में और ज्यादा दिखाई देगा ।  

एकल महिलाओं का जीवन आसान नहीं होता है । उन्हें रोज सामाज की निष्ठुरता का सामना करना पड़ता है । एक महिला को आत्मनिर्भर होने या अपनी मर्जी का जीवन जीने के लिए कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि समाज अभी भी उनको एक इंसान के तौर पर नहीं देखता है । आपने "जब वी मेट" का वो डायलॉग तो सुना ही होगा कि अकेली लड़की खुली तिजोरी की तरह होती है । खैर यह मानसिकता अब काफी हद तक बदल गई है और सिंगल लड़कियों की तादात भी बढ़ रही है, जो अपने जीवन को अपने हिसाब से जीना चाहती है ।
 दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली 40 वर्षीय प्रीति (बदला हुआ नाम) एक सिंगल मदर है और तलाक के बाद से इंडिपेन्डेट लाइफ जी रही है । अकेले रहने के दौरान उन्हे कई समस्याओँ का सामना करना पड़ता है । लॉकडाउन के दौरान उनकी मकान मालिक ने उनको सिर्फ इसलिए घर से निकल जाने को कहा, क्योंकि उन्होंने नानवेज घर पर आर्डर करके खाया । साथ ही उनको बोला गया कि नानवेज खाती हो, तो शराब और सिगरेट भी पीती होगी । एक छोटी सी बात इतनी बढ़ गई कि उन्हे एक दिन में ही दूसरा घर ढूढ़ के खुद ही से सारा सामान शिफ्ट करना पड़ा । अहम बात यह है कि मकान मालिक खुद एक महिला थी । इस घटना से साफ है कि महिलाएं भी पितृसत्तात्मक सोच की शिकार है,  जो औरतों पर नियंत्रण को रखने को सही मानती है और आजाद महिलाओं को स्वच्छंद स्वभाव की समझती है ।    

ऐसा ही कुछ 34 साल की रिचा (बदला हुआ नाम) के साथ हुआ, जो खुद एक एनजीओ चलाती है । वो अकेले लखनऊ जैसे शहर में रहती है। वो अब तक सिंगल है, क्योंकि उनको जैसा जीवन साथी चाहिए, वो अब तक उनको नहीं मिला । उन्हें खुली सोच वाला इंसान चाहिए, जो उन्हे एक इंडीवीजुअल की तरह देखे । रिचा जैसी सोच वाली महिलाओं की तादात दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, जो पितृसत्तात्मक सोच वाले पुरुष के साथ नहीं रहना चाहती । आसान शब्दों में कहे तो वो शादी के बाद बराबरी का रिश्ता चाहती है, जिसमें कुछ भी गलत नहीं है ।

वहीं 31 वर्षीय मीरा एक तलाकशुदा महिला है, जो अपनी जिंदगी में एक खास मुकाम हासिल करना चाहती है । वो एक ट्रेवल ब्लागर है और इसी क्षेत्र में अपना नाम बनाना चाहती है । हांलाकि परिवार वाले अब उन्हें दोबारा शादी करने के लिए मना रहे है, लेकिन अब वो शादी के बंधन में नहीं बंधना नहीं चाहती । वो खुद की जिंदगी खुद के हिसाब से जीना चाहती है और नई जगह एक्पलोर चाहती है । उनका मानना है कि शादी के नाम पर किए जाने वाले एडजेस्टमेंट अब वो नहीं कर सकती है, क्योंकि लाइफ एडजेस्टमेंट के लिए नहीं बनी है । 

  मीना सिंह जो एक 23 वर्षीय बेटी की मां है । उनका कहना हैं कि “मुझे लगता है कि लड़कियों के लिए यह सीखना बेहद ज़रूरी है कि कैसे अपने दम जीना चाहिए, लेकिन समाज अभी इसके लिए तैयार नहीं है। जब मेरी बेटी बाहर गई, तो ज्यादातर मकान मालिक उसे अपनी जगह किराए पर देने से हिचकिचा रहे थे । उन्होंने बस यह मान लिया कि वह जरूर अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ स्वतंत्र जीना चाहती है। "          

वक्त के साथ महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही है, अब वो खुद की एक पहचान बनाना चाहती है, लेकिन समाज अभी भी उन्हे एक इंसान (individual) के तौर पर स्वीकार नहीं कर पा रहा है । एक महिला अकेले रहना चाहे या किसी के साथ यह उसका निजी फैसला है और अपनी पसंद की जिंदगी जीने के लिए उसे किसी की भी इजाजत लेने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे देश का संविधान भी हर किसी को स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने का हक देता हैं, जिनका वर्णन संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में किया गया हैं। भारतीय संविधान महिलाओं को इस अधिकार की न सिर्फ़ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत कड़ी सजा भी देती है। इसके साथ ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (2005) सभी हिंदू महिलाओं को पितृ संपत्ति पर पूर्ण नियंत्रण और शक्ति देने का अधिकार देता है । लिव-इन रिलेशनशिप में भी महिलाओं को शादीशुदा महिलाओं की तरह ही गुजारा भत्ते का अधिकार और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एकल महिलाओं को सुरक्षा प्रदान की गई है, जो शादी जैसे रिश्तों में है । इसके साथ ही कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए भी अधिनियम है, जो कामकाजी महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है । इसके साथ ही वर्किंग लेड़ीज के लिए हर शहर में सरकारी हॉस्टल है, जहां वो रह सकती है । कई हेल्पलाइन नंबर भी है, जो महिलाओं को मदद हेतु बनाए गए है । महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार का एक कारगर कदम है । एकल महिलाएं इन कानून व अधिकारों का प्रयोग करके अपने जीवन को सुरक्षित और गौरवपूर्ण तरह से यापन कर सकती है । कोई भी उनसे आजादी से जीने का हक नहीं छींन सकता है । समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने और उनका सामाजिक स्तर बढ़ाने की आवश्यकता है । 

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