दर्द, दहशत और खूनी खेल की कहानी है ‘बुलबुल’
एक बड़ी हवेली, उसमें रहने वाले लोगों के कई चेहरे और उनके कई राज । बुलबुल सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि त्रासदी है । एक सवाल जो हम सबको अपने आप से पूछना होगा कि हमारे समाज में पुरूष और महिला के लिए दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जाते है । उन दोनों के लिए नियम, कानून अलग क्यों है ? औरत को समाज कुलटा कुलछनी कहता है, लेकिन पुरूष को चरित्रहीन क्यों नहीं कहा जाता । क्यों ये समाज एक मासूम बुलबुल को एक चुड़ैल बना देता है । नेटफ्लिक्स की हाल में रिलीज हुई मूवी बुलबुल पुरूषप्रधान समाज का यही घिनौना चेहरा उजागर करती है कि किस तरह एक पुरूष अपनी झूठी मर्दानगी साबित करने के लिए एक औरत के साथ जानवरों से बदत्तर सलूक करता है । यह फिल्म दर्द, दहशत और खूनी खेल के बीच महिला सशक्तिकरण का संदेश भी देती है ।
बुलबुल फिल्म कास्ट: तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी, राहुल बोस, परमब्रत चट्टोपाध्याय, पाओली डैम, रुचि महाजन, वरुण पारस बुद्धदेव
बुलबुल फिल्म निर्देशक: अन्विता दत्त
बुलबुल फिल्म प्रोडयूसर: अनुष्का शर्मा
बुलबुल फिल्म रेटिंग: 3.5 स्टार
कहानी :
बुलबुल 1880 के भारत की वो
तस्वीर प्रस्तुत करती है, जब बाल विवाह से लेकर सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं प्रचलित
थी । ये कहानी बंगाल की बुलबुल (
तृप्ति डिमरी ) नाम की एक बालिका वधू की है, जिसकी
शादी उसकी उम्र से लगभग चार गुना बड़े इंद्रनील ठाकुर (राहुल बोस) नाम के जमीदार
से होती है । इंद्रनील का एक बुलबुल की उम्र का भाई होता है, जिसका नाम सत्या ( अविनाश तिवारी ) है । इसके अलावा
फिल्म में इंद्रनील का एक जुड़वां मंदबुद्धि भाई महेंद्र है और उनकी पत्नी का नाम बिनोदिनी
( पाओली डैम ) है ।
शादी के बाद बुलबुल और सत्य की दोस्ती
हो जाती है । सत्या बुलबुल को पहली बार एक ऐसी चुड़ैल की कहानी सुनाता है, जिसके
पैर उलटे होते हैं । उन दोनों के बीच दोस्ती धीरे-धीरे बहुत गहरी हो जाती है, वैसे
भी बचपन की दोस्ती बहुत घनिष्ठ और दिल के करीब होती है ।
वो एक ऐसी हवेली में थी, जिसमें पिता की उम्र का पति, एक साजिश रचने वाली भाभी
और एक मनबुद्धि देवर जो उसके साथ अजीब-अजीब हरकतें करता है और उसे गलत तरीके से
छूने की कोशिश करता है। ऐसे में सत्य उसके लिए बहुत बड़ा सहारा था । यह कहानी है
तो सिर्फ डेढ़ घंटे की, लेकिन ये आपको कई ऐसे सवालों के साथ छोड़ जाएगी, जिन्हे हमने
कभी किसी से न तो पूछा और ना ही पूछने का प्रयास किया कि बड़ी-बड़ी हवेलियों में
रहने वाले लोगों के दिल भी बड़े होते हैं क्या ?
गांव का ही एक डॉक्टर सुदीप ( परमब्रत चट्टोपाध्याय ) बुलबुलका इलाज कर रहा होता है, उसके शरीर पर घाव के निशान देखकर, वो उससे पूछता है कि उसकी ये हालत किसने की है, लेकिन वो कुछ नहीं बोलती है । खैर डॉक्टर सुदीप एक भले इंसान होते है और वो उसकी बहुत मदद करते है । बुलबुल ठीक होने के बाद बड़ी बहू होने के नाते घर की मुखिया बन जाती है। इसी बीच महेंद्र की संदिग्ध हालात में मौत हो जाती है। बिनोदिनी के मुताबिक, उसे चुड़ैल ने मारा है, क्योंकि उसने कमरे में उलटे पैरों के निशान देखे होते है । वर्षों बाद जब सत्या अपने गाँव में
लौटता है, तो बुलबुल को एकदम अलग रूप में पाता है । उसको शक होता है कि बुलबुल और डॉक्टर सुदीप के बीच कोई रिश्ता है । सत्या अपने शक को बुलबुल के सामने जाहिर करता है और उसके चरित्र पर उगली उठाता है, जिससे वो बहुत आहत होती है । कहानी आगे बढ़ती है और सत्या महसूस करता है कि उसका घर ही नहीं, बल्कि गाँव भी बदल चुका है । वह गाँव के आसपास होने वाली कई रहस्यमय हत्याओं की जांच शुरू करता है, लेकिन कुछ भी स्पष्ट रूप से समझ नहीं आता है। सत्या के शक की सुई डॉक्टर सुदीप की ओर होती है, जो बाद में बेकसूर निकलते है । साथ ही सबसे बड़े राज से पर्दा उठता है, कि आखिर कौन है ये पेड़ो वाली चुड़ैल ।
एक्टिंग -
मूवी में बंगाली
कलचर को बखूबी से प्रदर्शित किया गया है । सभी कलाकारों ने अपने किरदार को बखूबी
निभाया है, लेकिन तृप्ति की एक्टिंग सच में सराहनीय है । जहां अवनीश ने लैला मजनू
में सबका ध्यान आकर्षित किया था, वहीं इस बार बाजी तृप्ति ने मारी है । सत्या के
रोल में वैसे अविनाश खूब जचे है ।
वहीं फिल्म में राहुल बोस ने इतनी उम्दा एक्टिंग की है कि आपको उनसे नफरत सी होने
लगेगी । पाओली ने भी अपने छोटे से किरदार में जान डाल दी है । इसके अलावा डॉक्टर
के किरदार में परमब्रत चट्टोपाध्याय है, जो एक सकारात्मक रोल में नजर आते है । डायरेक्शन -
अगर डायरेक्शन
की बात करें, तो डायरेक्शन बहुत ही उम्दा है । एक्टर का चुनाव बहुत अच्छे से किया
गया है, सभी ने अपना रोल बखूबी निभाया । मूवी में अगर कमी की बात की जाए, तो इसमें
बंगाली कलचर सिर्फ देखने को मिलता है, लेकिन कोई भी किरदार आपको बंगाली बोलते नहीं
दिखेगा । वहीं स्टोरी की बात करें तो फस्ट हॉफ में थोड़ी स्लो है, लेकिन बाद में
स्टोरी थोड़ी रफ्तार पकड़ती है । मूवी अच्छी है, लेकिन आप इसे यह सोचकर देख रहे
हैं कि कोई डरावना दृश्य आने वाले हैं, तो यह आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरेगी ।
बुलबुल में डर कम और प्यार ज्यादा नजर आएगा । खासकर बुलबुल की आंखों में आपको कई
सारे सवाल दिखेंगे और स्टोरी में बहुत सारा सस्पेंस नज़र आएगा ।
अगर ओवरऑल
मूवी की बात की जाए तो हर किरदार ने अपना रोल के साथ न्याय किया और यह अच्छा मैसेज
देती है, हर एक घटना एक दूसरे से जुड़ी हुई है और एक फिल्म को बेस्ट बनाने के लिए जो
भी एलिमेंट चाहिए, वो सब इसमें मौजूद है ।



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