सुनिए मिस्टर बिखरे हुए......
पूजा श्रीवास्तव
बिलकुल इसी तरह सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही नहीं , कुछ हद तक प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया ने भी राष्ट्रवाद के नाम पर जाने कितना कचरा लोगों के दिलो दिमाग में भर देने का अभियान चलाया , और बेचारी जनता { जो वास्तव में इतनी भी बेचारी नहीं } मौन हो कर इस पूरे खेल को देखती रही और कब वह खुद इस खेल का हिस्सा बन गई , उसे पता भी नहीं चला। ज़ाहिर है राष्ट्रवाद की ये आड़ इतनी मज़बूत, इतनी सुरक्षित है कि इसके पीछे छिप कर कुछ भी किया जा सकता है। किसी को अपशब्द कहे जा सकते हैं किसी को भी देशद्रोही साबित किया जा सकता है, और तो और किसी के मौलिक कर्म को अपना कह कर दौलत और शोहरत कमाई जा सकती है।
राष्ट्रवाद का ये फर्जी चोला पहन कर बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना राणावत ने बहुत ज़हर उगला है। कुछ ऐसी ही छिछोरी हरकतें पायल रोहतगी ने भी की हैं। ये वो लोग हैं जो किसी भी ऐतिहासिक या सामयिक घटना को अपने एजेंडे में लपेट कर उस पर राष्ट्रवाद का मुलम्मा चढ़ा कर ऐसी उत्तेजक भाषा और भावुकतापूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें देखने सुनने वाले एकबारगी धोखा खा ही जाते हैं और अगर व्यक्ति में कॉमन सेन्स और जागरूकता का अभाव है तो वह उन्हें ही सच मान बैठता है। हममें से कौन भूला होगा सुशांत सिंह राजपूत केस जिसमें रिया चक्रवर्ती को महीनों मानसिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ा था । पुलिस , कोर्ट कचहरी सबका ज़िम्मा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और कंगना जैसे लोगों ने उठा लिया था और बिना किसी व्यवस्थित और निष्पक्ष जांच के रिया चक्रवर्ती को अपराधी घोषित कर दिया था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लगाई इस आग में कंगना जैसे लोग बीच बीच में घी डालते रहे। आज भी कंगना और पायल रोहतगी जैसे लोग इतिहास से लेकर अंतरार्ष्ट्रीय राजनीति तक , हर बात पर अपने उथले ज्ञान की उलटी करने रहते हैं ।
मुन्तशिर जी का ये बयान यह सोचने पर मजबूर करता है कि कितनी आसानी से राष्ट्रवाद को अपने अपराध छिपाने के लिए एक आड़ की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। मुन्तशिर भी जानते हैं कि दूसरों की मौलिक रचना को चुराने के बावजूद बहुत से ऐसे लोग होंगे जो उनका ही पक्ष लेंगे , उनका ही बचाव करेंगे और वह इसलिए नहीं कि वे कोई बहुत अच्छे गीतकार हैं बल्कि इसलिए करेंगे क्योंकि अभी कुछ समय पहले उन्होंने कुछ विवादित बयान दिए हैं , जिसमें उन्होंने मुगलों को ग्लोरिफाइड डकैत कहा और ये भी कहा कि पहले हमें स्कूलों में ग से गणेश पढ़ाया जाता था और फिर ग से गधा पढ़ाया जाने लगा। मुन्तशिर की ये बात कितनी हास्यापद और आधारहीन है ये कोई भी पढ़ने लिखने वाला व्यक्ति आसानी से समझ सकता है लेकिन बावजूद इसके बहुत सारे लोगों ने या तो मुन्तशिर मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है या तर्क वितर्क करके उनका समर्थन किया है।
हम सब जानते हैं कि इस तरह के शॉर्टकट लेने वाले बहुत लम्बी दूरी नहीं तय कर पाते , ऐसे लोग जितनी तेजी से उभरते हैं उतनी ही ज़ोर से नीचे भी गिरते हैं। लेकिन समस्या सिर्फ इतनी है कि जितने भी दिन ये लोग अपने उफान पर होते हैं अपने आसपास के माहौल को दूषित ही करते हैं। धर्म की आड़ में , मज़हब की आड़ में राष्ट्रवाद की आड़ में देश ही क्या पूरी दुनिया में कितने अत्याचार , अनाचार और कितने कुकर्म होते आए हैं और हो रहे हैं , वह किसी से छिपा नहीं है। इसका ताज़ातरीन उदाहरण अफगानिस्तान है जहाँ मजहब के नाम पर तालिबानी आतंकियों और गुंडों ने मानवता को तार तार कर दिया है।
सच तो ये है कि जब मनोज मुन्तशिर यह कहते हैं कि मैं राष्ट्रवादी हूँ तो दरअसल वह यह कह रहे होते हैं कि मैं एक खास विचारधारा का प्रवक्ता हूँ , मैं उसी परम्परा का वाहक हूँ जिसमे पिछले कई सालों से आधे अधूरे और उथले इतिहास बोध को जनता पर थोपा जाता रहा है, जिस परम्परा में सत्ता की गुड बुक में आने के लिए , लोगों की निगाह में चढ़ने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं करना होता , बस उत्तेजक भाषा और ज़हरीली टोन में इतिहास की जड़ें खोदनी होती हैं।
यह एक ऐसी परम्परा है जिसमें बेशर्मी की कोई सीमा नहीं, किसी भी हद तक जा कर किसी का भी चरित्र हनन किया जा सकता है। तो मनोज मुन्तशिर भले ही खुले शब्दों में अपनी पहचान ज़ाहिर करने से कतरा कर राष्ट्रवादी होने का दावा कर रहे हों लेकिन उनकी असली पहचान वही है। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक खोल है जिसकी आड़ में वह अपना खेल खेल रहे हैं। मुझे मुन्तशिर साहब से सिर्फ इतना ही कहना है कि , " सुनिए मिस्टर बिखरे हुए , छितराए हुए { मुन्तशिर का यही मतलब होता है न } , चोरी कीजिए , डकैती कीजिए तो खुल के कीजिये , राष्ट्रवाद के खोल में छिप कर नहीं। एक बार खुल कर बाहर आइये , स्वीकार कीजिए अपनी पहचान। अपने आपको बेचारा और सताया हुआ साबित करने के लिए भारी भरकम शब्दों का इस्तेमाल मत कीजिए। चोरी तो आपने की है ये तो पूरी दुनिया जान गई है लेकिन अपने अपराध को राष्ट्रवाद के आवरण में छिपा कर मत पेश कीजिए , इससे बहुत से राष्ट्रवादियों की भावनाएं आहत होती हैं। "
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