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Showing posts from June, 2017

बलिया से बॉलीवुड (फ़िल्म गीतकार --- डॉ सागर )

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डाॅ. सागर का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के ककरी गाँव में हुआ ।प्रारंभिक शिक्षा बलिया से पूरी  करने   के बाद वे  उच्च शिक्षा के लिए बी. एच. यू. और जे. एन. यू. गए। जे. एन. यू. से एम. ए., एम.  फिल. और  पीएच. डी. की  पढ़ाई पूरी की । इन्होंने त्रिलोचन शास्त्री के काव्य संग्रह ताप के ताए हुए  दिन पर एम.फिल  एवं पीएच.डी  डिग्री समकालीन हिंदी कविता में प्रतिरोध : स्त्री काव्य लेखन के विशेष  संदर्भ में , टॉपिक पर प्राप्त की ।  इन्होंने अपनी पीएच.डी साहिर लुधियानवी को समर्पित की है । 2011 में  इन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री  में  बतौर गीतकार के रूप में काम करने के लिए मुंबई की तरफ रुख किया। परिवार की आर्थिक स्थिति  ख़राब  होने की वजह से इन्हें बचपन से ही तोड़ देने वाले संघर्षों का सामना क़दम दर क़दम करना पड़ा  है। दरअसल  डाॅ. सागर अपने जन्म स्थान बलिया में बचपन के दिनों में ही बहुत मशहूर थे।  लोकजीवन के  छोट -छोटे प्रतीकों और बिंबों को इतनी ख़ूबसू...

"माँ सभी अंकल को खत्म कर दो": रीटा शर्मा

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ये कोई कविता नहीं है। कविता के मानकों पर कहीं खरी नहीं उतरेगी। इसे उस तराजू में तौलियेगा भी नहीं। ये एक नन्ही बच्ची की करुण  पुकार है। एक बच्ची जो प्रदेश की राजधानी के एक पॉश इलाके से एकदम से गायब हो जाती है। और फिर अगले दिन उसकी लाश एक कार में मिलती है , खून से लथपथ। माँ को पूरी आशंका है कि उसकी बेटी के साथ कुछ गलत हुआ है। उसे किसी पर शक भी है लेकिन पुलिस की अपनी कहानी है। उसके अनुसार बच्ची की मौत कार में दम घुटने से हुई है। बच्ची मर चुकी है। माँ न्याय के लिए भटक रही है। इस बीच रीटा शर्मा  ने हमें ये कविता भेजी है। रीटा इस केस से बहुत गहरे से जुडी हुई हैं और जो अपने एन जी ओ के माध्यम से बच्ची की मौत की पूर्ण छानबीन कराने की कोशिशों में लगी हैं।  ये  कविता  हमारे  समय और समाज का  एक भयानक  और  क्रूर चेहरा सामने लाती है।  जिस देश में बचपन सुरक्षित नहीं उस देश का भविष्य क्या होगा ? कभी सोचियेगा माँ देखो न वो अंकल मुझे तंग करते है, टॉफी के बहाने पास बुलाते है। मैं बार बार कहती हूँ कि मुझे नहीं चाहिए कुछ भी, ...

बच्चे है, इन्हें बच्चा ही रहने दो.....

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सुप्रिया श्रीवास्तव           हम अक्सर अपने आस-पास ऐसे तमाम बच्चों को खेलते मुस्कुराते देखते है , जो अपना बचपन उन सारी खुशियों से भरकर जी रहे है , जिनके वो हकदार है। हंसी , ठहाके , मौज मस्ती से बचपन की नाज़ुक दहलीज़ को पार कर जीवन के कई ऐसे पहलुओं से अंजान रहते है। क्योंकि उनका परिवार , समाज और दोस्त उनके साथ खड़े रहते है। लेकिन... क्या ये सारी खुशियां हर बच्चे को नसीब हो रही है! ये एक गम्भीर प्रश्न है। शायद इसका जवाब हमारे पास नहीं है। या यूं कहे कि हम जानते हुये भी अंजान बने है।  12 जून जिसे पूरे विश्व में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। कई जगहों पर सेमिनार , चर्चा परिचर्चा और अनेक समारोह का आयोजन किया जा रहा होगा। लेकिन वास्तविकता इन सब बातों से कोसों दूर है।   हाथों से मिटती लकीरें        सुबह घर से निकलते हुये नज़र उन नन्हें हाथों पर जा पड़ी जो हमारे घरों से निकलने वाला कूड़ा बीन रहे थे। ये दृश्य लगभग रोज़ ही देखने को मिल जाता है। एक दिन उससे पूछा कि तुम स्कूल नह...

आधुनिकता के साथ पारम्परिक चित्रकला पट्टचित्र का समन्वय

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* रीतिका शुक्ला  आज मैं आप सबको एक ऐसी कला के बारे में बताऊगी जिससे आप  पट्टचित्र इस प्रकार  की कैनवास  चित्रकला है, जिसमे रंगीन चित्रों के माध्यम से पौराणिक कथाओं दर्शाते  है।   आज मै आप सबको  पट्टचित्र  नाम की कला से अवगत कराऊंगी।  पट्टचित्र ओड़िशा की पारम्परिक चित्रकला है। इन चित्रों में हिन्दू देवीदेवताओं को दर्शाया जाता है। 'पट्ट' का अर्थ 'कपड़ा' होता है।पट्टाचिट्रा शैली की पेंटिंग ओडिशा के सबसे पुराना और सबसे लोकप्रिय कला रूपों में से एक है। पट्टचिट्रा नाम संस्कृत शब्द पट्ट से विकसित हुआ है, जिसका अर्थ कैनवास और चित्रा का तात्पर्य है चित्र। पट्टचिट्रा इस प्रकार  की कैनवास  चित्रकला है, जिसमे रंगीन चित्रों के माध्यम से पौराणिक कथाओं दर्शाते  है। और  पट्टचित्र का उपयोग फैशन के तौर पर किया जाता है।  हाँ  यह सच है ऐसी ही कला को आज के फैशन में लाया गया है। हाल में मै एक डिज़ाइनर  मिली जो इस  अपने डिज़ाइन में यूज़ करती है।  इस कला को बनाया अपने ब्रांड की ...

शो मस्ट गो ऑन : हबीब तनवीर

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हबीब तनवीर भारत के प्रख्यात पटकथा लेखक , नाट्य निर्देशक और अभिनेता थे। नाटक और थिएटर की दुनिया में वो एक जाना माना नाम थे। हालाँकि आज के दौड़ते भागते और कोलाहल से भरे समय में हमारे पास वो अवकाश ही नहीं बचा कि हम इन शख्सियतों के बारे में कुछ जान सकें , कुछ पढ़ सकें। कल यानी 8 जून को उनकी पुण्यतिथि थी और इस अवसर पर उनके शागिर्द और उनके साथ रंगमंच कर चुके संदीप कुमार यादव ने  अपनी फेसबुक वाल पर ये पोस्ट लगाई थी। संदीप लखनऊ के ही हैं और फिलहाल मुंबई में रह कर अभिनय और लेखन में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन्हे आप सबने कभी न  कभी एंड टी वी के शो भाभी जी  घर पर हैं में ज़रूर देखा होगा। तो लीजिये पढ़िए अपने गुरु को समर्पित  एक शिष्य का ये छोटा सा आलेख।  हबीब  तनवीर जिनका एक ही धर्म था शो  मस्ट गो ऑन हबीब तनवीर साहब , हमने जिनसे रंगमंच सीखा अभिनय सीखा अपनी बात कहनी सीखी,लिखना सीखा पढना सीखा, विरोध करना सीखा, समर्थन करना सीखा, बड़ी से बड़ी बात को सहजता से कहना सीखा, परिस्थितियों से लड़ना सीखा, सहना सीखा । या यूँ कहूँ की हबीब ...

औरत के दर्द को औरत की ज़ुबानी सुना जाये : डॉ सागर

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उत्तर प्रदेश के बलिया शहर के एक छोटे से गाँव ककरी में जन्म लेने वाले डॉ सागर आज अपने गीतों से बॉलीवुड में एक ख़ास जगह बना चुके हैं। समकालीन गीतकारों से इतर इनके गीतों में लोकजीवन के तमाम रंग अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ नज़र  आते हैं। इनके बिम्बों में मौलिकता है और प्रतीकों में नयापन । हाल ही में आई फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा के एक गीत "मोरा पिया मतलब का यार " से चर्चा में आये डॉ सागर ने बी एच यू और जे एन यू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा प्राप्त की है। इन्होने त्रिलोचन शास्त्री के काव्य संग्रह "ताप के ताए हुए दिन " पर एम् फिल और "समकालीन हिंदी कविता में प्रतिरोध : स्त्री लेखन के विशेष सन्दर्भ में" पर अपनी पीएच डी की है। प्रस्तुत है डॉ सागर से हुई हमारी बातचीत के कुछ अंश : सागर साहब जैसा कि आपने बताया कि आपने समकालीन  हिंदी कविता में स्त्री प्रतिरोध के स्वर पर अपनी रिसर्च की है। तो कुछ उस विषय में बताएं कि ये विषय आपने कैसे और क्यों चुना ?   जब मैंने एम् फिल पास कर लिया और पीएच डी में एडमिशन लिया तो मेरे दिमाग में ये बात घूम रही थी ...