बलिया से बॉलीवुड (फ़िल्म गीतकार --- डॉ सागर )
डाॅ. सागर का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के ककरी गाँव में हुआ ।प्रारंभिक शिक्षा बलिया से पूरी
करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए बी. एच. यू. और जे. एन. यू. गए। जे. एन. यू. से एम. ए., एम.
फिल. और पीएच. डी. की पढ़ाई पूरी की । इन्होंने त्रिलोचन शास्त्री के काव्य संग्रह ताप के ताए हुए
दिन पर एम.फिल एवं पीएच.डी डिग्री समकालीन हिंदी कविता में प्रतिरोध : स्त्री काव्य लेखन के विशेष
संदर्भ में , टॉपिक पर प्राप्त की ।
इन्होंने अपनी पीएच.डी साहिर लुधियानवी को समर्पित की है । 2011 में इन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री
में बतौर गीतकार के रूप में काम करने के लिए मुंबई की तरफ रुख किया। परिवार की आर्थिक स्थिति
ख़राब होने की वजह से इन्हें बचपन से ही तोड़ देने वाले संघर्षों का सामना क़दम दर क़दम करना पड़ा
है।
दरअसल डाॅ. सागर अपने जन्म स्थान बलिया में बचपन के दिनों में ही बहुत मशहूर थे। लोकजीवन के
छोट-छोटे प्रतीकों और बिंबों को इतनी ख़ूबसूरती से गीतों में ढालते हैं कि इनकी बात सबके दिलों में
उतर जाती है। भोजपुरी की समूची विधाओं में इन्होंने ख़ूब मन लगाकर काम किया है। बिरहा, कजरी,
सोहर, झूमर, चैता, फाग, जँतसार जैसी विधाओं पर अच्छी समझ और अच्छा लेखन है। इन्होंने खुद
खेतों में कृषक जीवन के सारे कार्य किए हैं। खेतों में मज़दूरी भी की है । डाॅ. सागर खुद औरतों के समूह
में धान रोपते समय गीत गाए हैं।
व्यावहारिकता और अध्ययन दोनों ने मिलकर डाॅ. सागर को मुकम्मल गीतकार बनाया है। ये बचपन से
ही फिल्म इंडस्ट्री में गीतकार बनना चाहते थे लेकिन साथ ही घर की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने की वजह
से 'करियर ओरियेंटेड' भी थे । बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढाई का खर्च निकालते रहे ।पूरे घर को
इनसे उम्मीदें थीं कि पढ़ाई करके घर के ख़राब हालात को सुधारेंगे । इसलिए चैलेंजेज़ बहुत ज़्यादा थे ।
इसलिएख़ूब मन लगाकर पढ़ाई की ताकि भविष्य में किसी तरह की असुरक्षा का भाव न हो।
ग़ौरतलब है कि देश में जे. एन. यू. एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां पहुंचने पर आत्मविश्वास कई गुना बढ़
जाता है। डाॅ. सागर कीबी ज़िंदगी में बस यहीं से एक नया मोड़ आया। अपनी रचनात्मकता से जे. एन. यू.
के तमाम स्टूडेंट्स और प्रोफेसरों के दिलों में इन्होंने भरपूर जगह बनाई। अपने दौर में इन्होंने पूरे कैंपस को
भोजपुरी के रंग में रंग डाला था। जे एन यू के ट्रिपल एस ऑडिटोरियम के एक नेशनल स्तर के कवि
सम्मलेन में इन्होंने एक भोजपुरी कविता पढ़ी जिसका असर यह था कि केदारनाथ सिंह जैस बड़े कवि ने
हिंदी अख़बार हिंदुस्तान में अनाम रूप से ही सही इनकी कविता की प्रस्तुति पर एक लेख लिख दिया जो
लेख उनकी किताब कब्रिस्तान में पंचायत में शहरों में जीवन की लय नाम से है । इनकी प्रसिद्धि का अंदाज़ा
इसी बात से लगाया जा सकता है कि नागालैंड और तमिलनाडु के हिंदी भी न समझने वाले स्टूडेंट्स इनके
लिखे भोजपुरी गाने गाते थे। इनके वक्त के वाइस चांसलर जी. के. चड्ढा भी इनकी भोजपुरी कविताओं के
दीवाने थे जो अपने चैंबर में बुलाकर इनसे भोजपुरी कविताएं सुनते थे और कभी-कभी आर्थिक मदद भी
करते थे।
फिल्म इंडस्ट्री में डाॅ. सागर की शुरुआत भोजपुरी फिल्मों से ही हुई। इनकी पहली फिल्म 'गंगा किनारे प्यार पुकारे' है जिसके ऐक्टर और निर्देशक शाहिद शम्स हैं ।इस फ़िल्म के गाने उदित नारायण, कुमार शानू,
साधना सरगम और सुरेश वाडेकर ने गाए। इस फ़िल्म के संगीतकार अखिलेश कुमार थे ।
राकेश जैन के निर्देशन में इनकी पहली हिंदी फिल्म 'ये स्टुपिड प्यार ' है जिसका टाइटल साॅग उन्होंने लिखा
था और आवाज़ दी थी श्रेया घोषाल ने, संगीत विपिन पटवा का था और यहीं से गीतकार डाॅ. सागर और
संगीतकार विपिन पटवा की जोड़ी बनी जो अब तक क़ायम है।
दूसरी हिंदी फिल्म थी लव यू सोनियो '' जिसके डाइरेक्टर जो राजन हैं । इसमें विपिन पटवा की धुनों पर गीत लिखे और आवाज़ दी के. के., शान और श्रेया घोषाल ने। के के का गाया गाना था - तुमसा नहीं है कोई । और दूसरे गाने का मुखड़ा था
पलकों पे फूल खिले .इसी दरम्यान एक और भोजपुरी फिल्म के गाने लिखे। फिल्म का नाम 'लक्ष्मण रेखा' था जिसे 'बेस्ट फिल्म'
का अवार्ड भी मिला था।इसके निर्देशक मनोज गिरी थे और इस फ़िल्म के संगीतकार सतीश अजय थे ।
पांचवीं फिल्म रंदीप हुड्डा और ऋचा चड्ढा की 'मैं और चार्ल्स' थी जिसके डाइरेक्टर प्रवाल रमन हैं। इसके
गीत की एक लाइन को बहुत सराहा गया था जिसके लिए आवाज़ दी थी जोनिता गांधी ने -
'काले फ़साने लिखता काजल चुरा के वो ।पंखों को काटे पहले फिर वो आज़ाद करे नींदों में घुसके मेरे सपने बर्बाद करे ।।
( मैं और चार्ल्स )
डाॅ. सागर की छठीं फिल्म 'रणवीर द मार्शल' है जिसके डायरेक्टर मिलिंद उके हैं । गाना के. के. ने गाया था
और संगीत रिक्की मिश्रा का था । डाॅ. सागर की सातवीं फिल्म 'बाॅलीवुड डायरीज़' है। इसके डायरेक्टर के. डी. सत्यम हैं। आशीष विद्यार्थी, राइमा सेन, सलीम दीवान और विनीत सिंह मुख्य भूमिका में हैं। इस फिल्म के सारे गाने डाॅ. सागर ने विपिन पटवा की धुनों पर लिखे थे जिसमें इस वक्त के सबसे मशहूर सिंगर अरिजीत सिंह, जावेद बशीर, पपोन, प्रतिभा सिंह बघेल और नूरां सिस्टर्स ने आवाज़ दी है। । अरिजीत की आवाज़ में मनवा बहरूपिया गाने को 20 लाख लोगों ने यूट्यूब पे सुना है । एक डोर कोई खींचे ख़्वाबों के पीछे पीछे कहना किसी का माने ना ऐ मनवा बहरूपिया तू न जाने ये क्या कर दिया ।।
जावेद बशीर ने मन का मिरगा गाना गाया था -
हर सुबह की हर शाम भी सिन्दूरी कहाँ है । मन का मिरगा ढूंढ़ रहा कस्तूरी कहाँ है ।।
इस फिल्म का पपोन का गाया हुआ 'तितली' साॅग पहली बार फ़िल्म समीक्षकों की नज़र में आया ।इस गाने
की वजह से डॉ सागर को एक नयी पहचान मिली और इनकी गिनती बॉलीवुड के स्थापित गीतकारों में होने लगी । तितली गाने का बोल है -- कैसा ये कारवां कैसे हैं रास्ते 'ख्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए'
श्रेयस तलपड़े और मंजरी फड़नीस की 'वाह ताज' इनकी आठवीं फिल्म जिसके डाइरेक्टर अजित सिन्हा हैं ।
अविनाश दास की महत्वाकांक्षी फिल्म 'अनारकली ऑफ आरा' है जिसकी मुख्य भूमिका में स्वरा भास्कर हैं। इनके लिखे गाने का बोल है-
हमरा के कन्फ्यूज़िया के गया
खिड़की से पटना दिखा के गया हमरा त चौखट के भितरी जुलम है सैंया घुमक्कड़ को धरती भी कम है देखा सूट बूट जुल्मी तैयार मोरा पिया मतलब का यार ।।
जिसकी धुन बनायी थी रोहित शर्मा ने ।
अभी जल्द ही रिलीज हुई इनकी फिल्म 'लाली की शादी में लड्डू दीवाना ' है जिसके डायरेक्टर मनीष हरिशंकर हैं और कलाकार अक्षरा हासन , विवान शाह और गुरमीत चौधरी हैं। आवाज़ दी है राहत फ़तेह अली ख़ान, पलक मुच्छाल, मोहम्मद इरफ़ान और जुबिन नौटियाल ने। राहत फ़तेह अली ख़ान का गाया हुआ गाना -- 'रोग जाने कैसा ये अनोखा दे गया मुझमे ही रहके दिल ये धोखा दे गया।। लाख मैं मनाऊँ लेकिन मेरी कहाँ सुनता है दिन में ही बैठे बैठे ख़्वाब कोई बुनता है
झूठा दिलासा देके जान ले गया ।
मुझमे ही रह के दिल ये धोखा दे गया । आजकल हिट चल रहा है।
रोग जाने ' गाने को दस दिनों के भीतर ही 40 लाख लोग सुन चुके हैं ।
इस फ़िल्म का दूसरा गाना विपिन पटवा और मोहम्मद इरफ़ान ने गाय है। गाने का बोल है नैनों के पोखर
पलकों से झरने क्यूँ फूटते हैं
नैनों के पोखर क्यूँ सूखते हैं अश्कों में सपने बाह जाते हैं क्यूँ वादे अधूरे रह जाते है क्यूँ क्यूं होता है एहसास खोने का क्यूं होता है मैं जानूं ना । ।
डाॅ. सागर की आगामी आठ फिल्में रिलीज पर हैं जिसमें सुधीर मिश्रा की 'और देवदास', राखी शाण्डिल्य
निर्देशित कल्कि कोचलिन की 'रिबन', रजत चतुर्वेदी की 'अवसान', रोहित पाठक की 'पिच्चर', पुनीत प्रकाश की 'दिलफिरे' और संजय झा मस्तान निर्देशित फिल्म एवं आलोक कुशवाहा के निर्देशन में पूरा राम के प्रोडक्शन की फ़िल्में आने वाली हैं।
डॉ सागर बताते हैं कि कविता लेखन और गीत लेखन में बहुत फ़र्क़ है । कविता लेखन में कवि की मनमर्ज़ियाँ
चलती हैं लेकिन फ़िल्मी गीतों के साथ ऐसा नहीं है । फ़िल्म की स्क्रिप्ट पढ़कर और उसके सिचुएशन को समझते हुए एक ख़ास दायरे के अंदर सोचना होता है और साथ ही प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के मिज़ाज को समझते हुए आगे बढ़ना होता है । और इसके अलावा म्यूजिक डायरेक्टर की धुनों की बंदिशों1 के हिसाब से चलना होता है यानि कि एक साथ प्रोड्यूसर डायरेक्टर स्क्रिप्ट और म्यूजिक डायरेक्टर की बंदिशों के तहत रहते हुए एक गीत को कम्प्लीट करना होता है । अक्सर यह सवाल चलता रहता है कि पहले गीत लिखा जाता है या पहले संगीत बनता है एक गाने को बनाने में । एक छोटे से उदाहरण से इस मुद्दे को हल किया जा सकता है । लोक जीवन में आटा चक्की चलाती हुई औरतें जो उसकी घरर घरर की लय पर गाना गाती हैं वो दर असल पहले वह घरर घरर की धुन ही आई होगी वजूद में और वह धुन इतनी अपील की होगी कि उसकी लय पर गीत गाया गया होगा । इंडस्ट्री में वैसे गाने बनाने के दोनों तरीके अपनाये जाते हैं । कभी तो गीतकार गाना लिख देता है जिसपर म्यूजिक डायरेक्टर धुन बनाता है और कभी म्यूजिक डायरेक्टर धुन बना देता है जिसपर गीत लिखा जाता है । हर गीतकार और संगीतकार को इस प्रक्रिया से गुज़रना होता है ।
डा सागर के तितली गीत को 2016 में टॉप टेन में रखा गया है । बी बी सी , द लल्लन टॉप , एन डी टी वी ,
वार्षिक संगीत माला , ने ख़्वाबों को सच करने के लिए , तितली ने सारे रंग बेच दिए ' को बेस्ट लिरिक्स की केटेगरी में रखा । इस लिरिक्स को द टाइम्स ऑफ़ इंडिया , इंडियन एक्सप्रेस , हिंदुस्तान टाइम्स और राजस्थान पत्रिका जैसे अखबारों में भरपूर तवज्जो मिली ।
इस तरह से डॉ सागर ने बॉलीवुड में अपनी एक प्रतिष्ठित जगह बनायी है । बॉलीवुड के सारे बड़े सिंगर
इनके गीत गा चुके हैं । सुरेश वाडेकर , उदित नारायण , कुमार शानू , साधना सरगम , अलका याज्ञनिक , कविता कृष्णमूर्ति , अनुराधा पौडवाल , श्रेया घोषाल , सुनिधि चौहान , शान , सोनू निगम , के के , सुखविंदर सिंह , कैलाश खेर , जावेद बशीर , उस्ताद राशिद खान , मोहम्मद इरफ़ान , कल्पना पटवारी , देवी , पलक मुछाल , जुबिन नौटियाल , राहत फ़तेह अली खान , अरिजीत सिंह , जोनिता गांधी , तोची रैना, विपिन पटवा एवम् नूरां सिस्टर्स जैसे गायकों ने इनके लिखे गीतों को आवाज़ दी है ।
डाॅ. सागर अपनी सफलता का सारा श्रेय जे. एन. यू. के दोस्तों और प्रोफेसर्स को देते हैं। उनका मानना है कि
उनकी मदद के बग़ैर मुंबई में टिकना असंभव था। जे. एन. यू. के उन सभी साथियों का एहसान वो अच्छे गीत लिखकर चुकाने में लगे हुए हैं। |
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