today its me tomorrow it will be you": भारती गौड़

भारती गौड़ 
11 साल की मासूम बच्ची नैंसी कह रही है "today its me tomorrow it will be you"
ये तो मरने के लिए भी सबसे बुरा दौर है और आपको लगता है कि आप जी रहे हैं आप खुद से झूठ क्यों बोलते हैं?
हमें ऐसा भी क्या हो गया है हम मरने के लिए जी रहे हैं।
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा, इंसानियत एक कोरी अफवाह, हर मुद्दे पर राजनीति राजनीति ही एकमात्र मुद्दा, दोगलापन, बिना बात के हंगामे और जरूरी बातों पर खामोशी, हर बात पर बवाल, आतंकवाद, धर्म और जाति का आतंकवाद, बलात्कार का स्वर्ण युग, अंतहीन बहस यानी कि सब कुछ तहस-नहस, उस पर तथाकथित लेखकों का फ़िल्टर किया हुआ चयनित लेखन, सत्यानाश और सत्यानाश का सवा सत्यानाश। इन सबसे ऊपर हमारी अंतहीन मतलब परस्त बेहूदी खामोशी।
होती क्या है बहुत ज्यादा सकारात्मकता!
क्या यही कि आपके साथ हादसा नहीं हुआ तो मतलब आप सुरक्षित हैं?
आपके घर में किसी का रेप नहीं हुआ तो वह महिला सुरक्षित है?
आप अमीर हैं इसका मतलब आप गरीब नहीं है और आप इसी में खुश हैं?
आपको किसी ने गाय काटते नहीं देखा या आपने किसी को गाय काटते नहीं देखा तो आप दोनों ही अपराधी नहीं हैं, आप की चोरी पकड़ी नहीं गई सिर्फ इसलिए आप शरीफ हैं?
और क्या यही सारी बातें आपको, वो क्या कहते हैं 'सकारात्मक' बने रहने की प्रेरणा देती हैं वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि आप मरे नहीं हैं और आप को मरने तक जीना ही है हर हाल में? अच्छा!
हमारी संवेदनाओं की जड़ पर प्रहार तब तक नहीं होता जब तक कि वह जड़ें हमारे अपने पैरों के नीचे से ना हिला दी गई हो।
किसी के पास दर्शन है किसी के पास मनोविज्ञान बहुतों के पास राजनीति और बाकियों के पास खामोशी, तटस्थता।
मुझे शिकायत उनसे है जो स्वयं को विचारवान, ज़िंदा, बुद्धिजीवी या कि लेखक मानते हैं जिनकी उंगलियाँ चौबीस घंटे टाइपिंग मोड में रहती हैं बावजूद इसके वह गैरज़रूरी और चयनित मुद्दों पर लिखकर संतुष्ट होते रहते हैं और आने वाले लाइक्स और कमेंट को पढ़ पढ़ कर देख कर आनंद की अनुभूति लेते हैं। कैसे?
इस बात पर वह लोग मुझे यह कह सकते हैं कि मैं भी तो विज्ञान पर, राजनीति पर,आर्थिक नीति पर, पाकशास्त्र पर या वगैरह वगैरह पर नहीं लिखतीे। हाँ मैं नहीं लिखती क्योंकि इन सब पर लिखने या नहीं लिखने से मेरे और मेरे परिवार या कि मेरे समाज मेरे समुदाय मेरे आस-पास मेरे गली मोहल्ले की दैनिक जीवन की गतिविधियों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और अगर कोई फर्क पड़े भी तब भी वो फर्क ऐसा तो नहीं ही होगा जिसे कि बर्दाश्त ना किया जा सकता हो और ऐसे फर्क की वजह से मरने वरने की नौबत तो नहीं ही आती है।
हाँ मैं यह मानती हूँ कि हर लेखक हर बात पर हर मुद्दे पर नहीं लिख सकता। हर मुद्दा सबके बस की बात भी नहीं लेकिन संवेदनशील मुद्दों पर नहीं लिखना मेरे समझ के बस में नहीं। आप जब स्वयं को लेखक कह ही रहे हैं या आप नहीं भी कह रहे हैं तो लोग आपको मान रहे हैं और आप उन्हें नकार भी नहीं रहे, इस सूरत में आपका लेखन दो पंक्तियों या सौ पचास शब्दों की बेवजह की बहर से खारिज़ शायरी, कविता कहानी वगैरह तक सीमित होकर बहुत बकवास स्तर तक पहुंच गया है।
वर्तमान के घृणास्पद दौर से भी अगर आपका कोई वास्ता नहीं तो इसका मतलब आपका स्वयं से भी कोई वास्ता नहीं क्योंकि इन सब से विमुख होकर लिखी गई कविता शायरियाँ कहानियाँ भी वास्तव में कोई मायने नहीं रखेंगी।
कहानियाँ कविताएँ ये समीक्षा वो आलोचना। बस यहीं तक का सफर है आपका। इतना तटस्थ और रुखा कोई कैसे रह सकता है ऊपर से वह जो लेखक होने का शॉल ओढ़े घूमता हो!
हमारे साथ कुछ नहीं हुआ मतलब हम खुश हैं। हम सकारात्मक सोच के मालिक हैं। हम सुरक्षित हैं। हम कुछ तस्वीरें इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि वो हमें विचलित करती हैं और इसलिए हम आँख बंद कर लेते हैं और क्या आँख बंद कर लेने से खतरे टल जाया करते हैं!
यूरोप या कोई और भी जगह जहाँ हम कभी गए नहीं जिससे हमारा कोई वास्ता नहीं वहाँ की किसी भी कॉफी हाउस की टेबल, फूल पत्ती, किसी नदी, पहाड़, खिड़की का फोटो चेप कर उस पर बकवास चार पंक्तियां लिखकर और फर्ज़ी के लाइक कमेंट ऑसम वॉसम टाइप पाकर आप किस तरह की संतुष्टि के स्तर पर जा टिकते हैं! यह बात मेरी समझ के बाहर है मेरी बुद्धि के हर पैमाने पर से खारिज।
मुद्दे की कोई भी बात लोगों की वॉल पर जाती ही नहीं या उसे देखते ही हाइड फ्रॉम टाइमलाइन कर दिया जाता है!
हर संवेदनशील जायज़,निहायती ज़रूरी ध्यान देने योग्य बात करने लायक मुद्दे को अनदेखा कर देना!
अब आप कहेंगे हमारे देेखने ध्यान देने लिखने या बोलने से क्या हो जाएगा ! सही बात है कुछ नहीं होगा। ठीक वैसे ही जैसे सेल्फी, फीलिंग ये फीलिंग वो टैग विद दस-बीस कर देने से कुछ नहीं होगा। ठीक वैसे ही जैसे वह कॉफी का टेबल जो यूरोप में किसी रेस्टोरेंट की शोभा बढ़ा रहा है उसे इमेजिन करके कविता लिखने से कुछ नहीं होगा या वह सिगरेट का धुआँ जो आपकी सिगरेट से नहीं निकल रहा उस के छल्ले बनाने से कुछ नहीं होगा।
अब यह मत कहिएगा जहाँ न पहुँचे रवि वहां पहुँचे कवि, बकवास बात है कुतर्क एकदम। पहले तो रवि ही पहुँचेगा आप नहीं। कल्पना के उन स्तरों तक बाद में पहुँचिएगा पहले अपने आस-पास घट रही घृणास्पद घटनाओं पर मनन कीजिए उन पर ध्यान दीजिए।
नीतियां तो सरकार की भी रंग नहीं लाती आपकी हमारी तो बिसात ही क्या है लेकिन संवेदनहीनता की चादर तानकर जो अत्याचार आप स्वयं के भी साथ कर रहे हैं वो आपकी ही चिता सजाने की तैयारी है और यह आप स्वयं कर रहे हैं।
कुछ लोग हैं जो विचलित होते हैं और विचलित होने के बाद अभिव्यक्त भी होते हैं ज़िंदा तो वही हैं बाकी लोग तो सिर्फ इसलिए जिंदा हैं क्योंकि वो मरे नहीं है अभी तक।
सोनू निगम कुछ कहता है तो उस बात पर दोनों तरफ के लोग इतना शोर मचाते हैं कि वह शोर उस तथाकथित लाउडस्पीकर से भी ज़्यादा चीखने लगता है। मोदी,योगी, केजरीवाल, कपिल मिश्रा,बरखा दत्ता, अर्नब गोस्वामी, रविश कुमार आदि आदि मुद्दे हैं क्या सोचने और बोलने के लिए! धर्म और जाति ने तो हमें वहां पहुँचा दिया है जहाँ से हमको अपनी भी अब कुछ खबर नहीं।
यह सोच कर स्वयं को सुरक्षित मान लेना कि फलाना हादसा हमारे यहाँ हमारे किसी परिवारजन के साथ नहीं हुआ है, हमारे मरे होने की पुष्टि करता है।
मेरा यह लेख लिखना ज़रूरी इसलिए था क्योंकि मैं बहुत ज़्यादा विचलित हूँ। पिछले कुछ दिनों में घटित एक के बाद एक की घटनाओं
ने बहुत ज़्यादा हिलाकर रख दिया है। उससे ज्यादा दुख इस बात का है कि हर घटना का अब एक टाइम पीरियड सेट हो गया है कोई दो दिन खबरों में रहती है तो कोई 2 घंटे।
कुछ महिलाओं ने तो वैसे भी खुद की प्रोफाइल सेल्फी,कविताएं और बेमतलब की बातों तक सीमित कर रखी है। पुरुषों को यहां धन्यवाद देना चाहूँगी वो लोग फिर भी कुछ लिख रहे हैं कुछ बोल रहे हैं कुछ काम की बातें शेयर कर रहे हैं।
कुछ लोग सिर्फ पैदा हुए हैं और बस एक दिन वह मर जाएँगे।जिंदा लाशें हैं जिन्हें गिद्ध भी नहीं खाते।
क्या ऐसे असहनीय बर्दाश्त के बाहर हो चुके दौऱ से बचने के लिए कोई तपस्या करनी होगी!
भूलिएगा नहीं। सेल्फ ऑब्सेशन से निकलिए। संवेदना के धरातल पर गिरने वाले सभी आँसू एक ही नमक के बने होते हैं उन्हें मत सूखने दीजिए। इंसानियत के अकाल और सूखे से खुद को बचाइए।
बुराई के जघन्य विकास के लिए ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ अच्छाई की बेहूदी खामोशी है उसे तोड़िए। आत्ममुग्धता के ज़हर से मुक्त होइए। पहले अपने आस-पास को संवारिए आत्ममुग्धता भी तभी अच्छी लगेगी। टूटे हुए आईने में खुद को कोई कैसे संवार सकता है।
स्वयं को पीड़ित बनने से बचाइए आपकी खामोशी किसी और के लिए नहीं आपके स्वयं के लिए ज़हर है।
आप किन मुद्दों को ज्वलनशील मानते हैं, सोचिए। मीडिया मैनेज किया हुआ है यह कहना आसान है लेकिन आपको और हमको किसने मैनेज किया है हम यह क्यों नहीं सोचते। हम क्यों नहीं कुछ बोलते।
हम यूपी, बिहार, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा या कहीं भी जाकर कैसे किसी को न्याय दिलवा सकते हैं तो हम बोले भी क्यों! सोनू निगम, अरुंधति रॉय परेश रावल, मोदी, योगी ये सब क्या हमारे घर में रहते हैं जिन पर हम दस दस दिन तक हैशटैग हैशटैग खेलते रहते हैं!
पतंजलि के घी में कितनी फफूंद मिली उससे हम विचलित हो जाते हैं लेकिन हमारे आस-पास और घर की हमारे दिमाग की फफूंद का क्या! उससे विचलन क्यों नहीं?
किसी की पोस्ट सिर्फ इसलिए मत पढ़िए और लाइक कीजिए कि आप उसे पसंद करते हैं या आप उनके फैन हैं आप की उपस्थिति के दर्ज होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। मेरी गुजारिश सिर्फ इतनी है, अपने अंदर विचलन पैदा कीजिए संवेदनशीलता को बचाइए जगाइए।
11 साल की मासूम बच्ची नैंसी कह रही है "today its me tomorrow it will be you"

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