ये कोई कविता नहीं है। कविता के मानकों पर कहीं खरी नहीं उतरेगी। इसे उस तराजू में तौलियेगा भी नहीं। ये एक नन्ही बच्ची की करुण पुकार है। एक बच्ची जो प्रदेश की राजधानी के एक पॉश इलाके से एकदम से गायब हो जाती है। और फिर अगले दिन उसकी लाश एक कार में मिलती है , खून से लथपथ। माँ को पूरी आशंका है कि उसकी बेटी के साथ कुछ गलत हुआ है। उसे किसी पर शक भी है लेकिन पुलिस की अपनी कहानी है। उसके अनुसार बच्ची की मौत कार में दम घुटने से हुई है। बच्ची मर चुकी है। माँ न्याय के लिए भटक रही है। इस बीच रीटा शर्मा ने हमें ये कविता भेजी है। रीटा इस केस से बहुत गहरे से जुडी हुई हैं और जो अपने एन जी ओ के माध्यम से बच्ची की मौत की पूर्ण छानबीन कराने की कोशिशों में लगी हैं। ये कविता हमारे समय और समाज का एक भयानक और क्रूर चेहरा सामने लाती है। जिस देश में बचपन सुरक्षित नहीं उस देश का भविष्य क्या होगा ? कभी सोचियेगा
माँ देखो न वो अंकल मुझे तंग करते है,
टॉफी के बहाने पास बुलाते है।
मैं बार बार कहती हूँ कि मुझे नहीं चाहिए कुछ भी,
तब भी वो जबरन मुँह में ठूस दिया करते है,
ये कहकर कि सभी बच्चे टॉफी खाते है,
सुनों माँ वो मुझे छूते भी सब जगह जाने क्यों,
अपने से चिपकाते भी है बार बार ,
कुछ अजीब सा मुझे पकड़ा भी देते हैं,
माँ मुझे ये बहुत गन्दा लगता है,
माँ वो ऐसा क्यों करते हैं,
मैं अब तक कह न पायी,
तुमने तो कई बार पूछा भी था,
पर मैं बता न पायी क्योंकि उन अंकल ने कहा था कि,
मत बताना वरना माँ बहुत मारेगी और तुम्हे गन्दा कहेगी,
पर माँ मैंने कुछ गन्दा नहीं किया,
जब तक थी तुम्हारे साथ न कह पायी कभी,
पर अब मैं दूर हूँ तुम से भी और उन अंकल से भी,
अब मुझे कोई न मार पायेगा,
पर सुनो माँ उस दिन मैं खुद न गयी थी वहां,
वो बुलाने आये थे मुझे और ले कर गए थे,
उन्होंने मुझे कुछ खाने को दिया था,
फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ,
जब आँख खुली तो मैं एक कार में थी,
उन्होंने न जाने क्या क्या किया था कैसे बताऊ मुझे तो पता भी नहीं ये क्या होता है?
मैंने कहा अब मैं माँ को बता दूंगी घर जाकर इस बार,
इस पर उन्होंने पहले मुझे डाटा, फिर सिगरेट से हाथ जलाया,
माँ उस वक्त मैं बहुत रोई और कहा कि नहीं बताउंगी,
फिर वो हँसते रहे, सिगरेट पीते और फिर उसी से जलाते मेरे हाथ बार बार,
फिर उन्होंने कार से एक रॉड निकाला और पीछे से मेरे सर पर मारा,
माँ मेरे फ्राक पर खून ही खून और मुँह से भी,
और अब मैं तड़फ तड़फ आज़ाद हो गयी अंकल से,
अब देख सकती थी खुद को,
अपना बहता हुआ खून और अंकल की दानवो वाली हंसी,
और तब तुम भी पागलों की तरह सड़को पर दौड़ती हुई,
मुझे गली गली ढूढ़ती,
लेकिन माँ तुम उधर क्यों नहीं आई,
जिधर थी मैं पड़ी खून से लथपथ,
अब सुनों वो अंकल अब भी घूमते है,
हमारे घर के पास,तुम बात मत करना उनसे कभी भी,और छोटी को भी दूर रखना
सुनो माँ बस इतना बता दो ये अंकल क्यों होते हैं?
ये कहा से आते है?
क्या ये हम बच्चों को नोच कर खाने को ही रहते हैं?
माँ तुमसे एक विनती कि तुम सबसे कहकर इन अंकल को खत्म कर दो
ताकि फिर कोई न तड़फे मेरी तरह ??
प्रस्तुति : पूजा
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