शो मस्ट गो ऑन : हबीब तनवीर
हबीब तनवीर जिनका एक ही धर्म था
शो मस्ट गो ऑन
हबीब तनवीर साहब , हमने जिनसे रंगमंच सीखा अभिनय सीखा अपनी बात कहनी सीखी,लिखना सीखा पढना सीखा, विरोध करना सीखा, समर्थन करना सीखा, बड़ी से बड़ी बात को सहजता से कहना सीखा, परिस्थितियों से लड़ना सीखा, सहना सीखा । या यूँ कहूँ की हबीब साहब ने ज़िन्दगी जीने का एक नया नज़रिया दिया।
#नया थिएटर मंडली सन 1982 में इंग्लैंड में हुए एडिनबरा इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल में पूरे विश्व के नाटकों को पीछे छोड़ते हुए हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित नाटक चरणदास चोर के लिए प्रथम पुरस्कार जीत चुकी है।
#आयोजकों ने जहां नया थिएटर के नाटकों को बड़े से बड़े मंच दिए, कलाकारों को बड़े से बड़े होटलों में ठहराया बड़ी सुविधाएं दी वही दूसरी तरफ ऐसा भी हुआ है कि इस नाटक मंडली ने कई बार रातें रेलवे स्टेशन पर बिताई, गॉवों में जाके नाटक किये, जहां ज़मीन पर सोना पड़ा जो खाने को मिला वो खाना पड़ा, खुद ही स्टेज बनाना पड़ा । कई बार सब कलाकारों को अपने बैग, समान, नाटक के ट्रंक, सेट आदि खुद अपने कंधों पर ढोने पड़े।। लेकिन इन सब परिस्थितियों के बीच नाटक की प्रस्तुति के स्तर में कभी कमी नहीं आयी।
#नया थिएटर के कलाकार जब मंच पर उतरते हैं अपने साज बाज रंग आवाज़ गीत संगीत अभिनय के साथ तो ये समझिए कि कोई जादू जैसा कर देते हैं आप के दिलों दिमाग पर। आप के दिल पर बहुत गहरा असर छोड़ कर आप को हंसा कर गुदगुदा कर और आप के दिल में एक बहुत बड़ा सवाल छोड़ कर ये कलाकार अगले शहर के लिए कूच कर जाते हैं।
#हबीब साहब का लिखा हर नाटक किसी सामाजिक मुद्दे की बात करता है, इंसानियत की बात करता है, कुप्रथाओं का विरोध करता है। सब धर्म जाति से ऊपर उठ कर सोचने की बात करता है।

#हबीब तनवीर विदेश से रंगमंच की शिक्षा लेके भारत आये थे लेकिन विदेशी रंग अपने नाटकों पर उन्होंने नहीं चढ़ने दिया। बेशक नया थिएटर के पुराने सभी कलाकार लोक कलाकार थे लेकिन उन लोक कलाकारों के हुनर को हबीब साहब ने कितनी बखूबी पॉलिश किया और अपने नया थिएटर की अवधारणा के अनुसार ढाला बिना उन कलाकारों के मूल स्वभाव को बदले हुए।
#संस्कृत के क्लासिकल नाटकों को पढ़ने पर उन्हें मंच पर उतारने की प्रक्रिया जहां बहुत जटिल लगती है, वही हबीब तनवीर उन क्लासिकल नाटकों की अवधारणा परिकल्पना अभिनय गीत संगीत व निर्देशन के माध्यम से सहजता से मंच पर ले आते हैं।
#लोक -हबीब तनवीर के नाटकों में लोक तत्वों की प्रधानता प्रमुख रही है। हबीब तनवीर अपने नाटकों के ज़रिए दर्शकों को उनकी मूल जड़ की तरफ ले जाते हैं, बचपन में या बुजुर्गों से सुने गीत कहावत कहानी किस्से लोकोक्ति मुहावरे के ज़रिए हबीब तनवीर आप को बड़ा सुखद सफर कराते हैं। लुप्त हो चुकी कला, नृत्य गीत संस्कार गीत पारंपरिक गीत ये सब समाहित हैं हबीब तनवीर के नाटकों में, अगर कहा जाए कि नया थिएटर मंडली एक नाटक कंपनी नहीं बल्कि एक दस्तावेज़ है जहाँ बहुत से इतिहास लिखे हैं तो अतिश्योक्ति न होगी।
#निर्देशन थोपते नहीं थे हबीब तनवीर -
हबीब तनवीर कभी भी अपने कलाकारों पर निर्देशन थोपते नहीं थे, यद्यपि हबीब साहब ने खुद ही स्वीकार किया था कि विदेश से लौटने के बाद नाचा के कलाकारों को लेकर शुरू शुरू में मैंने विदेशों तकनीक धारणा अवधारणा या जो वहां से सीखा था उसको इन नाचा कलाकारों पर प्रयोग करना शुरू किया था लेकिन मैंने पाया कि कलाकार उसमें बहुत दबाव महसूस करते थे और उनकी सहजता खत्म हो जाती थी, लिहाज़ा हबीब साहब ने निर्देशन थोपना छोड़ दिया था। हबीब तनवीर बेशक कलाकारों को दिशा निर्देश देते थे लेकिन कलाकार की अपनी बात जो उसने चरित्र गढ़ने को लेके सोची है उसको सुनते थे उसको देखते थे और उसे शामिल भी करते थे, यही वजह है कि उनके कलाकार मंच पर बहुत ही सहज रहते हैं।
हबीब तनवीर कभी भी अपने कलाकारों पर निर्देशन थोपते नहीं थे, यद्यपि हबीब साहब ने खुद ही स्वीकार किया था कि विदेश से लौटने के बाद नाचा के कलाकारों को लेकर शुरू शुरू में मैंने विदेशों तकनीक धारणा अवधारणा या जो वहां से सीखा था उसको इन नाचा कलाकारों पर प्रयोग करना शुरू किया था लेकिन मैंने पाया कि कलाकार उसमें बहुत दबाव महसूस करते थे और उनकी सहजता खत्म हो जाती थी, लिहाज़ा हबीब साहब ने निर्देशन थोपना छोड़ दिया था। हबीब तनवीर बेशक कलाकारों को दिशा निर्देश देते थे लेकिन कलाकार की अपनी बात जो उसने चरित्र गढ़ने को लेके सोची है उसको सुनते थे उसको देखते थे और उसे शामिल भी करते थे, यही वजह है कि उनके कलाकार मंच पर बहुत ही सहज रहते हैं।
#आयोजक पर कभी दबाव नहीं डालते थे-
मेरे सामने का एक वाकया था राम भाई ने हबीब साहब से कहा कि साहब वो फला फला व्यक्ति से फोन पर बात हुई वो कह रहे थे कि आप के नाटकों की फीस देने के लिए हमारे पास बजट नहीं है लेकिन हमारा मन बहुत है कि हम आपके नाटक करवाएं, हबीब साहब बोले कि बात करवाओ तुम मेरी उनसे।
राम भाई ने आयोजक साहब को फोन लगाया और उनसे कहा कि हबीब साहब बात करेंगे। हबीब साहब ने फ़ोन पर बात की की उनकी समस्या सुनी फिर अंत में बोले कि "आप कलाकारों के आने जाने का किराया, उनके रुकने और 'खाने और पीने' का इंतज़ाम कर दीजिए फीस के तौर पर जो आपकी मर्जी हो जो आपसे हो सके वो कर दीजियेगा, इतना तो हो जाएगा न आपसे?
ज़रुर उधर से आवाज़ हां में रही होगी।
मेरे सामने का एक वाकया था राम भाई ने हबीब साहब से कहा कि साहब वो फला फला व्यक्ति से फोन पर बात हुई वो कह रहे थे कि आप के नाटकों की फीस देने के लिए हमारे पास बजट नहीं है लेकिन हमारा मन बहुत है कि हम आपके नाटक करवाएं, हबीब साहब बोले कि बात करवाओ तुम मेरी उनसे।
राम भाई ने आयोजक साहब को फोन लगाया और उनसे कहा कि हबीब साहब बात करेंगे। हबीब साहब ने फ़ोन पर बात की की उनकी समस्या सुनी फिर अंत में बोले कि "आप कलाकारों के आने जाने का किराया, उनके रुकने और 'खाने और पीने' का इंतज़ाम कर दीजिए फीस के तौर पर जो आपकी मर्जी हो जो आपसे हो सके वो कर दीजियेगा, इतना तो हो जाएगा न आपसे?
ज़रुर उधर से आवाज़ हां में रही होगी।
फोन रखते ही हबीब साहब राम भाई से बोले कि घर पर पड़े रहने से अच्छा है नाटक के बहाने सब कलाकार घूम घाम आएंगे थोड़ा मन भी बहल जाएगा। इसके बाद राम भाई के चेहरे पे एक सुखद सी मुस्कान मैंने देखी। तो ऐसे थे हबीब तनवीर जिनके लिए
'शो मस्ट गो ऑन' ही सबसे बड़ा धर्म था।
'शो मस्ट गो ऑन' ही सबसे बड़ा धर्म था।
#नया थिएटर में काम करने वाले सभी कलाकार जहां भी जैसे भी हैं जिस भी स्तर का काम कर रहे हैं उन सभी में हबीब तत्व मौजूद है इसलिए हबीब साहब को हम सभी लोग ये नहीं मानते की वो नहीं है, हम सब कलाकार जब भी बात करते हैं तो हमेशा यही सोचकर की हबीब साहब यहीं हैं।
#यक़ीन मानिए अगर आपको एक भी बार हबीब तनवीर से जुड़ने का मौका मिला है चाहे उनका नाटक देखने का मौका मिला है या उन्हें सुनने का मौका मिला है या उन्हें पढ़ने का मौका मिला है तो आप नया थिएटर के सदस्य हैं, आप नया थिएटर परिवार का हिस्सा हैं। आप सभी नया थिएटर और उसके कलाकरों के प्रति अपना प्यार सहयोग अपनी तालियाँ अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखें।
हबीब तनवीर हम सबमें ज़िंदा हैं और हमेशा रहेंगे।
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संदीप कुमार यादव प्रस्तुति : पूजा |
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