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Showing posts from April, 2017

तख्ती पर लटका हिंदी का 'एक शब्द' : नृपेन्द्र बाल्मीकि

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देव संस्कृति विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढाई पूरी कर नृपेन्द्र बाल्मीकि आज हैदराबाद में वेब पोर्टल इंडी लिंक्स डाट कॉम मे मुख्य कॉपी एडिटर के पद पर कार्यरत है। शुरु से ही वह सामाजिक मुद्दो और वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर अपनी बातो को लोगो के सामने पहुंचाने का काम करते आये है। दैनिक जागरण और ईटीवी उत्तराखंड मे इंटर्नशिप से प्राप्त अनुभवो को पत्रकारिता के क्षेत्र मे लगा रहे है। वह नयी पीढी के लेखक के साथ ही अच्छे कवि भी है। आइये जानते है उनके अपने विचार भाषा के द्वंद पर हमारे ब्लॉग़ के माध्यम से‌‌ भाषा इंसान की सबसे बड़ी खोज है। जिसने इंसान को उसके विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान की है। मानव के छोटे से मस्तिष्क ने अपनी उत्पत्ति के समय से ही अभिव्यक्ति के माध्यमों की खोज शुरू कर दी थी, जिनमें भाषा सबसे खूबसूरत माध्यम मानी गई। इस छोटे मानवीय मस्तिष्क ने भाषा में भी खोज की प्रक्रिया निरंतर जारी रखी। वर्तमान में देखा जाए तो पूरे विश्व में 6909 जीवन्त भाषाएं हैं। जिनमें से 6 प्रतिशत कुछ ऐसी भाषाएं हैं जिन्हें बोलने वाले प्रत्येक के 1 मिलियन से ...

मेहनत और लगन से बनाई पहचान :साहेब दास मानिकपुरी

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मेहनत लगन और समर्पण कुछ लोगों के लिए सिर्फ शब्द नहीं होते उनके जीवन जीने का तरीका होते हैं। दिखावे और जोड़ तोड़ की जीवन शैली से इतर कुछ लोग अपनी प्रतिभा और मेहनत से अपनी जगह बनाते हैं और लोगों के दिलों पर राज करते हैं। हम् बात कर रहे हैं साहेब दास मानिकपुरी जी की जो फिलहाल लाइफ ओके सीरियल  में  खिलौनी  नाम का  मज़ेदार किरदार निभा  रहे  हैं। रायपुर छत्तीसगढ़ के छोटे से गाँव भैंसा सकरी के साहेब ने अपने खास अंदाज़ और अभिनय शैली से टी वी और फ़िल्मी परदे पर अपनी खास पहचान बनाई है। साहेब दास विज्ञापनों धारावहिकों और कई फिल्मों में काम कर चुके हैं। फिलहाल वो खिलौनी के किरदार में लोगों  का मनोरंजन कर रहे हैं। ये एक ऐसा कॉमिक करैक्टर   है जो अनजाने में ही अपने दोस्त साजन को किसी न किसी मुसीबत में फंसा देता है। हमारी साहेब दास जी कई महीने पहले बात हुई थी उनके अभिनय के इस पूरे सफर को लेकर। तब हमारे पास हमारा ब्लॉग नहीं था। इसलिए इस इंटरव्यू को एक मैगज़ीन में भेजा। लेकिन दुर्भाग्य से वो मैगज़ीन किसी तकनीकी कारणों से वो अपने तयशुदा समय से बहुत ...

धर्म सबसे बड़ा हथियार है :सर्वप्रिया सांगवान

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पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान एन डी टी वी के प्रखर पत्रकार रवीश  अपनी रिपोर्ट के दौरान  में जब देश के छोटे बड़े शहरो की यात्रा करके वहां की वास्तविक समस्याओं को समझने और दर्शकों तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे तब उनकी इस कोशिश में उनका साथ दे रही थी एक छोटी सी लड़की जिनका नाम है सर्वप्रिया सांगवान। रवीश अपनी रिपोर्टिंग के दौरान कुछ गंभीर मसलों पर सर्वप्रिया से मशविरा भी करते थे। सर्वप्रिया इन मसलों पर बहुत गंभीरता और परिपक्वता से अपनी राय देती थीं। उनकी ये परिपक्वता हैरान करती थी। सर्वप्रिया तबसे हमें हैरान करती ही आ रही हैं। फेसबुक पर उनकी पोस्ट पढ़ने और मनन करने वाली होती हैं। हमारे आग्रह पर उन्होंने अपनी ये पोस्ट ब्लॉग पर पब्लिश करने की अनुमति दे दी।इसके लिए हम  सर्वप्रिया के आभारी हैं और हमारी तरफ से उन्हें बहुत बहुत शुभ कामनाएं। आप ऐसे ही लिखती रहें और हमें हैरान करती रहें।  बात हिन्दू या मुसलमान की नहीं होती, ना ईसाईयों और यहूदियों की होती। बात होती है बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों की। बहुसंख्यक किसी भी धर्म का हो, उसकी एक साइकोलॉजी होती है। वो अल्प...

मेरे धर्म में शोर नहीं है:डॉ जय नारायण

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 धर्म के बढ़ते  शोर और धार्मिकता के  उन्माद के बीच पढ़िए  , डॉ जय नारायण बुधवार की ये  कविता। वरिष्ठ पत्रकार, आलोचक, लेखक और कल के लिए पत्रिका के संपादक डॉ जय नारायण समय समय पर अपनी प्रखर  टिप्पणियों से समाज और राजनीती के विभिन्न मुद्दों पर सवाल उठाते रहे हैं। प्रस्तुत है उनकी कविता मेरे धर्म में शोर नहीं है   मेरे धर्म में शोर नहीं है मेरी पूजा में शब्द नहीं हैं मेरी अर्चना में अक्षत नहीं है मेरी प्रार्थना में आरती नहीं है मेरे यज्ञ में मंत्र नहीं है मेरी आस्था में मूर्ति नहीं है मेरे मार्ग में मंदिर नहीं है मेरे ध्यान में गुरु नहीं है मेरे विश्वास में देवता नहीं हैं अकेला हूँ अपनी आत्मा के साथ अपने एकांत में अपने साथ होना मेरा धर्म है जो अपने साथ है वह सबके साथ है।                           प्रस्तुति :पूजा 

सविता वर्मा ग़ज़ल की दो ग़ज़लें

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सविता वर्मा "ग़ज़ल" क्षेत्रीय ,अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित। प्रसारण- आकाशवाणी के अनेक केन्द्रों से रचनाएँ प्रसारित । लेखन विधा-कविता,कहानी,गीत,बाल साहित्य,नाटक,लघु कथा, ग़ज़ल,वार्ता, हाइकु,आदि ।। विभिन्न पुरुस्कारों से सम्मानित।साहित्य लेखन के साथ साथ फिल्मों के लिए लेखन और अभिनय में सक्रिय। छोडो भी अब कल की बातें....    छोडो भी अब कल की बातें....  आज करें हम अब की बातें...॥  *  कल बीता कल किसने देखा...  देखें है सब अब की बातें ॥ *  कल जख्मों में टीस भरी थी  आज खुशी दें अब की बातें ॥  * कल खाया जो धोखा वो था...  आज वफा है अब की बातें ॥ *  कल पायल भी बेडी थी जैसे  आज हवा में अब की बातें ॥  *  उसने ऐसे मुँह फेरा था .. सुने ध्यान से अब की बातें ॥  * रिश्तों से कंगाल था कल जो  खूब करे है अब की बातें ॥  * हमने हमको लिया समझाय..  ग़ज़ल सुनो अब,अब की बातें ॥  चाँद का रूप आँखों में  था रात भर   चाँद का रूप आँखों में  था रात भर  चाँद...

समर सीजन का कूल ट्रेंड

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रीतिका शुक्ला  उफ़ ये चिलचिलाती गर्मी शुरू हो गयी है...ऐसे में मन करता है कि कुछ ठंडा - 2 पिए और पहने भी वही वो आखो को ठंढक दे। यही तो है समर सीजन की विशेषता है। समर सीजन में मन करता है कि कुछ नया ट्राई किया जाये| कुछ ऐसा जो हम पर जचे भी और ट्रेंड से बिलकुल अलग लगे, समर सीजन में  बहुत सारे नए- नए  फैशन देखने को मिलते है, हर कोई अपनी वार्डरॉब को स्टाइलिश कपड़ो से सजाना चाहता है, सब चाहते की वे ऐसे कपडे पहने जो स्टाइलिश होने के साथ कम्फर्टेबले  भी हो और सबको आकर्षित भी करे। चटकीले और डार्क कलर्स गर्मियों में किसी को भी नहीं पसंद आते है। गर्मियों में लाइट और कूल कलर ठन्डक का एहसास कराते है। ऐसे में गर्मियों में शॉपिंग पर जाने से पहले इन बातो को ध्यान में जरूर रखे। गर्मियों में किसी भी ड्रेस के सिलेक्शन में सबसे जरुरी होता है रंगो का चुनाव, गर्मियो में लाइट शेड्स का चुनाव करना चाहिए जो आँखों को शीतलता दे। अगर फैब्रिक की बात करे तो कॉटन मिक्स सिल्क, शिफॉन, लिनन, जॉरजट व हैंडलूम और खादी से बने कपडे पहने जो आपको गर...

अनारकली के हीरामन भैया : इश्तेयाक खान

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छम्मक छोरियाँ  से नयनवा लड़ावत वत वत वत  है  ... क्या आपको ये गाना याद है ? क्या आपको याद है फिल्म तमाशा का ये गीत किस एक्टर पर फिल्माया गया है ? नहीं पता ? चलिए कोई बात नहीं। अच्छा आपने वर्ष 2014 में सोनी टीवी पर युद्ध सीरियल तो देखा होगा ? उसमे अमिताभ बच्चन जी की अंतरात्मा का किरदार तो याद ही होगा न ? अच्छा वो भी नहीं याद। तो वो याद है आपको फिल्म फंस गए रे ओबामा ? उसमे एक इंग्लिश ट्यूटर था कॉमिक सा। याद आया ? क्या कहा नहीं... कोई बात नहीं। दरअसल हमारी प्रकृति  ऐसी है की अक्सर हम बड़े बड़े नामो को तो याद रखते हैं लेकिन  छोटे छोटे किरदारों को भुला देते हैं। पर मेरा दावा है कि  जिन्होंने हाल ही में प्रदर्शित हुई फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा देखी होगी वो चाह  कर भी इस एक्टर को भुला नहीं पाएंगे। गेस कीजिये कौन है वो? चलिए अच्छा छोड़िये हम ही बता देते हैं उनका नाम।  उनका नाम है इश्तेयाक खान । जी हाँ अनारकली ऑफ़ आरा के हीरामन भैया जिनकी सादगी और सज्जनता पर सिर्फ अनारकली ही नहीं पूरे हिंदुस्तान के दर्शक फ़िदा हैं। संयोग से हमारी भी बात हो गई हीरामन ...

वो सर्द रात पार्ट -2

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  रीटा शर्मा की पहचान यूं तो एक तेज़ तर्रार सामाजिक कार्यकत्री की है लेकिन उनके व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू भी है। वो बहुत अच्छी लेखिका भी हैं। हाल ही में उन्होंने एक हॉरर स्टोरी हमें भेजी है जिसका पहला भाग आप  पढ़ चुके हैं। आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं इसी  कहानी का दूसरा और  अंतिम भाग।  अब तक आपने पढ़ा -एक लड़की जो अपने घर में अपनी माँ के साथ अकेली रहती है , उसे रात में कुछ रहस्यमय साये दिखाए देते हैं। वो उनकी गतिविधि को अपने कैमरे में क़ैद करने की कोशिश करती है , तो होता है उसके साथ कुछ अजीब। अब आगे की कहानी - रिवर्स मोड में कैमरा लिए बहुत देर तक सोचती फिर सोचा कि आज तुरंत ही रिकॉर्ड करके लैपटॉप में सेव कर लूंगी और कैमरा ऑफ करके रख दिया।  सारा दिन काम करने के बाद मैं बहुत थक चुकी थी और बिस्तर पर लेटते ही मैं गहरी नींद में सो गयी...अचानक मुझे लगा कि मुझे कोई जोरो से हिला रहा है...आँखे खोली तो देखा कि उनमें से एक साया मेरी आँखों के सामने खड़ा था और मुझे जगाने की कोशिश कर रहा था, इससे पहले की मैं चिल्ला पाती उसने अपना विशालकाय हाथ म...

आख़िर कब पास हो पाएगा महिला आरक्षण विधेयक?

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  रीतिका शुक्ला महिला आरक्षण विधेयक भारतीय संसद  में प्रस्तुत किया गया, यह वह विधेयक है जिसके पारित होने से संसद में महिलाओं की भागीदारी 33% सुनिश्चित हो जाएगी।अगर ये विधेयक पारित होता है और कानून का रूप लेता है तो इसे भारतीय  लोकतांत्रिक इतिहास में मील का पत्थर माना जा रहा है ,लेकिन इसको पारित होने में बहुत सी मुश्किलो का सामना करना पड़ रहा है।         भारतीय समाज शुरू से ही पुरुष प्रधान रहा है। और यहाँ महिलाओं को हमेशा से दूसरे दर्जे का माना जाता है। पहले महिलाओं के पास अपने मन से कुछ करने की सख्त मनाही थी। परिवार और समाज के लिए वे एक आश्रित से ज्यादा कुछ नहीं समझी जाती थीं। ऐसा माना जाता था कि उसे हर कदम पर पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ती है। यही सोच बदलने कि आवश्यकता है। महिलाओ की भगीदारी राजनीति में बढ़ाने के लिए महिला  आरक्षण  विधेयक लाने की पेशकश की गयी थी, जिस को आज दो दशक बीत चुके है।   ग़ौरतलब है कि राजनीति में महिला भागीदारी कम होने का कारण है कि महिला आरक्षण बिल 20 साल से अधिक समय से अटका...