वो सर्द रात.... पार्ट -1




रीटा शर्मा की पहचान यूं तो एक तेज़ तर्रार सामाजिक कार्यकत्री की है लेकि उनके व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू भी है। वो बहुत अच्छी लेखिका भी हैं। हाल ही में उन्होंने एक हॉरर स्टोरी हमें भेजी है जिसका पहला भाग आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं। दूसरे भाग के लिए थोड़ी सी प्रतीक्षा कीजिये



वो भयानक सर्द काली रात....रात के 2 बज रहे थे, अचानक से नींद खुल गयी। कुत्तों के भौकने की आवाज़ आ रही थी....बीच बीच पत्तो की सरसराहट...वो घर के पीछे पीपल  का पेड़ था...हवा चलने से पत्ते उड़ रहे थे।
हवा की सनसनाहट..कुत्तों का भौकना... एक अजीब सा डर पैदा कर रहा था। अचानक मैं उठ खड़ी हुई और खिड़की के पास आ गयी और शीशे से जैसे ही बाहर झाँका... मेरी साँस वही की वही थम गयी। सफ़ेद छायाए... वो नाच गा रहे थे..पूरा एक संगीत समारोह जैसा था।
कुछ महिलाएं, कुछ बच्चे और कुछ पुरूष... कुछ बैठे थे...कुछ खड़े और कुछ नाच गा रहे थे, एक तरफ दो महिलाएं कुछ पका रही थी...अचानक हवा से खाने की जोरदार महक मेरे नाक से टकराई, डर के मारे बुरा हाल
था, हलाकि मैं तो घर के अंदर से देख रही थी और पास में ही माँ भी सो रही थी….फिर भी माँ को आवाज़ तक ना दे पा रही थी..धीरे धीरे वे छायाएँ अदृश्य होने लगी और कुत्तों का भौकना भी बंद हो गया..और फिर मुझे अपना गेट , गार्डन, पीपल का पेड सब साफ़ साफ़ दिख रहा था पर डर अभी भी हावी था , मैं चुपचाप दबे पांव आकर लेट गयी। बगल में माँ गहरी नींद में थी और मेरे आँखों के सामने अभी भी वही मंज़र लहरा रहा था...सोचा माँ को जगाऊं पर वो मेरे ऊपर यक़ीन तो करेंगी नहीं और डॉट अलग लगा देंगी

सारा दिन रह रह कर वही मंज़र आँखों के सामने तैर रहा था..कॉलेज में भी..दोस्तों से बात करते हुए भी...टीवी देखते वक्त भी। खैर दिन पूरा निकल गया....अचानक घडी पर नज़र गयी आठ बज रहे थे..माँ ने खाने को बुलाया तो उठते हुए सोचने लगी कि आज कही ऐसा ना दिखाई दे...जब भी वो मंज़र आँखों के सामने आता तो रोंगटे खड़े हो जाते
ग्यारह बजे किताबे बंद करके में बिस्तर पर लेट गयी.....ठीक 2 बजे नींद अपने आप ही खुल गयी, पर ना तो आज कुत्ते ही भौक रहे थे और ना ही पत्तो की सरसराहट...फिर भी उठ कर खिड़की के पास आ गयी...ये क्या आज भी वही छायाएँ... लेकिन सभी एक घेरे में बैठे रो रहे थे...एक महिला अपने गोद में एक बच्चा लिटाये थी औऱ सभी उसे घेरे खड़े रो रहे थे...ऐसा लग रहा था कि सभी उस बच्चे की मौत का विलाप कर रहे थे।
कुछ ही देर में फिर सब कुछ अदृश्य... मैं डर की वजह से माँ को आवाज़ फिर न दे पाई। वैसे तो मैं भूतो में यकीन नहीं करती थी फिर भी...सोच में पड़ गयी। बिस्तर पर लेटी कुछ ही देर में नींद की आगोश में...नींद तब खुली जब माँ झकझोर रही थी...आठ बज रहे है...अब उठ जाओ। मैं उठ गयी...क्योंकि देर तक सोने पर माँ बहुत डांटती थी।

सारा दिन कुछ ज्यादा बिजी रही क्योंकि कॉलेज में सेमीनार था, देर शाम घर लौटी माँ चाय ले कर आई... मैं हाथ मुह धोकर पीने बैठी तभी रात का मंज़र सामने आ गया और सोचा कि आज रात दो बजे तक पढूंगी और देखती हूँ और साथ ही रिकॉर्डिंग भी करुँगी...ये सोच कर अपना कैमरा निकालने लगी और टेबल पर ही रख दिया।
पढ़ते पढ़ते टाइम भी देख रही थे...जैसे ही 1 बजकर 50 मिनट हुए तो कैमरा ऑन करके खिड़की के सामने आ गयी....थोड़ी ही देर वही सारी छायाएँ एक एक करके दिखने लगी आज सभी शांत थे...एक बड़ा बुजुर्ग छाया
बीच में बैठ गया और सभी खड़े थे...वो कुछ कह रहा और सभी हाँ की मुद्रा में सर हिला रहे थे। मेरी रिकॉर्डिंग चल रही थी, हर रोज की तरह थोड़ी देर में सभी अदृश्य। मैंने कैमरे की रिकॉर्डिंग ऑफ की, आँखे नींद से बंद हो रही थी तो सोचा कल चेक करुँगी, कैमरे को टेबल पर रखकर सो गयी।
जैसे ही सुबह उठी तो टेबल की तरफ देखा....पर ये क्या?? कैमरा तो वहाँ नहीं था। मैं एक झटके से बेड से खड़ी हो गयी....ओह्ह लगता है किसी ने गलती से इसे नीचे गिरा दिया है....उठाते हुए शायद डाटा ना डिलीट हो गया हो...ये क्या? रिकॉर्डिंग रिवर्स पर थी...मेरे कैमरे में रिवर्स करने पर डाटा खुद ही डिलीट हो जाता था..ओह्ह गॉड!! पर किसने किया ये सब?? माँ माँ चिल्लाते हुए मैं कमरे से बाहर आई तो माँ ने किचन से ही पूछा क्या बात है? मेरा कैमरा किसने छुआ? माँ-"घर में मेरे और तेरे सिवा है कौन? मैं क्यों छूने लगी तेरा कैमरा? मुझे उसमे कुछ आता भी है क्या? वैसे हुआ क्या क्यों परेशान है? कुछ नहीं कहकर मैं बरामदे में बैठ गयी और सोचने लगी कि मैने तो कैमरा ऑफ किया था , फिर रिवर्स कैसे हुआ? क्रमश:
                                                          प्रस्तुति -पूजा 

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  1. दोस्तों पढ़े इसे एक अहसास के साथ

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