अनारकली के हीरामन भैया : इश्तेयाक खान

छम्मक छोरियाँ  से नयनवा लड़ावत वत वत वत  है ... क्या आपको ये गाना याद है ? क्या आपको याद है फिल्म तमाशा का ये गीत किस एक्टर पर फिल्माया गया है ? नहीं पता ? चलिए कोई बात नहीं। अच्छा आपने वर्ष 2014 में सोनी टीवी पर युद्ध सीरियल तो देखा होगा ? उसमे अमिताभ बच्चन जी की अंतरात्मा का किरदार तो याद ही होगा न ? अच्छा वो भी नहीं याद। तो वो याद है आपको फिल्म फंस गए रे ओबामा ? उसमे एक इंग्लिश ट्यूटर था कॉमिक सा। याद आया ? क्या कहा नहीं... कोई बात नहीं। दरअसल हमारी प्रकृति  ऐसी है की अक्सर हम बड़े बड़े नामो को तो याद रखते हैं लेकिन  छोटे छोटे किरदारों को भुला देते हैं। पर मेरा दावा है कि  जिन्होंने हाल ही में प्रदर्शित हुई फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा देखी होगी वो चाह  कर भी इस एक्टर को भुला नहीं पाएंगे। गेस कीजिये कौन है वो? चलिए अच्छा छोड़िये हम ही बता देते हैं उनका नाम।  उनका नाम है इश्तेयाक खान। जी हाँ अनारकली ऑफ़ आरा के हीरामन भैया जिनकी सादगी और सज्जनता पर सिर्फ अनारकली ही नहीं पूरे हिंदुस्तान के दर्शक फ़िदा हैं। संयोग से हमारी भी बात हो गई हीरामन भैया यानि इश्तेयाक साहब से। इश्तेयाक साहब सिर्फ परदे पर ही नहीं असल ज़िन्दगी में भी बेहद सादा मिजाज़ के हैं। उनकी बातचीत में , उनके लहजे में कोई बनावट या सजावट नहीं है। वो बेहद सादा तरीके से अपने बात कहते हैं। सबसे बड़ी बात की हमारे सिर्फ एक बार अनुरोध करने पर वो इंटरव्यू के लिए सहर्ष तैयार हो गए। न कोई नखरा न कोई शोशेबाजी। ज़मीन से जुड़े कलाकारों की यही खासियत होती है। आइये उन्ही की ज़ुबानी जानते हैं उनकी कहानी कुछ सवालो- जवाबों के ज़रिये।

इश्तेयाक जी कुछ अपने बैकग्राउंड के बारे में बताइये। 
मैं बेसिकली पन्ना , मध्य प्रदेश का रहने वाला हूँ। पिता जी की मृत्यु मेरे बचपन में ही हो गई थी। घर का बड़ा बेटा  होने की वजह से मुझ पर घर और परिवार की बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ थी। इसलिए बहुत कम उम्र से ही हम सभी भाई काम करने लगे थे।पैसा कमाने के लिए हमने कई तरह के काम किये।  हम ठण्ड के मौसम में अंडे का
ठेला लगाते थे।गर्मी में आम बेचते थे।  पर मेरी रूचि शुरू से ही थी नाटको में। मैं इप्टा से जुड़ा था काफी काम भी किया वी.बी. कारंत और  अलखनंदन जी के साथ। फिर  मैं दिल्ली आ गया एन एस डी में अभिनय की बारीकियां सीखने। वर्ष  2004  का पास आउट हूँ मैं। 2006 में मैं मुम्बई आ गया। और फिर वही से शुरू हुई फ़िल्मी पर्दे  की मेरी यात्रा।

 आपको पहला ब्रेक कब और कैसे मिला ?
 पहली फिल्म मेरी रामगोपाल वर्मा की अज्ञात थी। ये फिल्म भी मुझे संयोग से मिली। एक दिन निखिल द्विवेदी के साथ मैं बैठा हुआ था। मैंने उनको बोला की मैंने सुना है  की रामू एक फिल्म बना रहे हैं अज्ञात। शायद  उसमे मेरे लायक एक किरदार है। ये सुनते ही निखिल ने तुरंत  रामगोपाल वर्मा को फ़ोन लगा दिया और मेरे बारे में बताया। राम गोपाल  वर्मा ने मुझे तुरंत बुला लिया। मैं पहुंचा , बात हुई और मुझे उनकी फिल्म में
रोल मिल  गया। हालाँकि ये फिल्म चली  नहीं। लेकिन इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक दिलचस्प बात ये हुई की फिल्म साइन करते ही मेरी बहन की शादी तय हो गई। मुझे   फिल्म की शूटिंग के लिए जाना था श्रीलंका और उधर बहन की शादी। बड़े पसोपेश में थे हम। फिर हमारे मोहल्ले वालों ने हमारे दोस्तों ने कहा की  यहाँ हम लोग शादी  निपटा लेंगे तुम जाओ श्रीलंका।  तो फिर हम चले गए फिल्म के शूट पर और यहाँ बहन की शादी भी बढ़िया से निपट गई।

फिर आपका करियर कैसे आगे बढ़ा ?
 उसके बाद मुझे सुभाष कपूर की फिल्म फंस गए रे ओबामा मिली जिसमे एक फनी इंग्लिश ट्यूटर का रोल था। रोल छोटा था लेकिन उसे तारीफ मिली । उसके बाद अनुराग कश्यप ने  बनाया था युद्ध धारावाहिक  जिसमे अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस सीरियल में अमिताभ बच्चन की अंतरात्मा का किरदार मैंने किया था । ये किरदार मेरे लिए चुनॉतीपूर्ण था। इसके लिए मुझे प्रशंसा भी मिली। फिर मैंने जॉली एल एल बी की। फिर फटा पोस्टर निकला हीरो की। मस्तराम की। उसके बाद इम्तियाज़ अली की तमाशा की। तमाशा काछ्म्मक छोरियां से नयनवा लड़ावत।वो करैक्टर काफी फेमस हुआ। मुझ पर एक गाना भी फिल्माया गया।  अभी हाल में मेरी एक फिल्म रूस्तम  भी आई थी लेकिन उसका मुझे कोई बहुत ज़्यादा फायदा हुआ नहीं। फिर मुझे ये रोल मिला अनारकली ऑफ़ आरा में हीरामन का जिसे प्रशंसा और पहचान दोनों मिले।

अभिनय की दुनिया में कैसे आये ?
मैं तबला सीखता था। शास्त्रीय संगीत सीखता था। एक बार ढोलक के लिए इप्टा वालों ने मुझे बुलाया। तो ढोलक बजाते बजाते मुझे नाटक के बारे में बहुत कुछ सीखने  को मिला। एक दिन इतेफ़ाक़ ये हुआ की एक एक्टर  नाटक का कहीं चला गया था तो मुझसे कहा गया की तुम खड़े हो जाओ। फिर वो रोल मैंने किया। उसको करने के बाद मुझे थोड़ा प्रोत्साहन मिला तो मुझमे भी आत्मविश्वास आने लगा की हाँ मैं भी कुछ कर सकता हूँ।

  अपने संघर्ष के बारे में कुछ बताइये। 
मेरे परिवार में मेरी माँ है। तीन बहने और हम दो भाई हैं। जैसा की मैंने पहले भी बताया की पिताजी की मृत्यु जल्दी ही हो गई थी। ज़िंदगी की गाड़ी चलाने के लिए हमने कभी  अंडे का ठेला लगाया ,कभी आम का ठेला लगाया, कभी परचून की दुकान खोली। ऐसे ही काम भी करते रहे और पढाई भी। लोगों का सपोर्ट मिलता रहा । जैसे हमें कभी रिहर्सल पर जाना है तो दोस्त बैठ गए हमारी दूकान पर और कहा की भाई तुम जाओ अपने काम पर। धीरे धीरे नाटकों के ज़रिये ही कमाना शुरू कर दिया। जैसे स्कूलों के एनुअल फंक्शन का पूरा ज़िम्मा हम ले लेते थे। हम नाटक भी सिखाते थे , गाना भी सिखाते थे और उसका कुछ चार्ज ले लेते थे। इस तरह साल में पांच छह स्कूलों का जिम्मा ले लेते थे। इस काम से  घर खर्च चल जाता था।

और फिल्मों में स्ट्रगल ?
देखिये ,फिल्मों में स्ट्रगल सबका एक जैसा ही होता है। जब तक काम नहीं मिलता इंसान यही सोचता है किसी
तरह से कोई काम मिले। और मुझे तो घर भी पैसा भेजना होता था इसलिए मुझ पर ज़्यादा  दबाव था। लेकिन मेरे साथ ये खास बात रही है की मैं जहाँ भी गया हूँ मुझे लोग बहुत अच्छे मिले हैं चाहे वो मेरा मोहल्ला ,मेरा शहर हो या फिर एन एस डी  या ये मुम्बई शहर हो । हर जगह मुझे बहुत पोज़िटिव लोग मिलें हैं। मुझे सपोर्ट किया है। यहाँ मुम्बई में भी बहुत सहयोग बहुत अपनापन मिला। यहाँ कुछ मित्र थे जिनका पास अपना घर था उन्होंने मुझे अपने पास रखा। किराये के नाम पर वो बस इतना कहते थे की जो बचे तुम्हारी कमाई से तुम्हारा खर्च निकलने के बाद बस वो दे देना। ऐसी डील थी हमारी मोहब्बत वाली। तो ऐसे ही अपनी गाडी आगे बढ़ती गई।
 आपके आगे के क्या प्रोजेक्ट हैं?
अभी आगे के प्रोजेक्ट्स हैं  राम भजन ज़िंदाबाद, करोली विध सुमित, और फुकरे टू।  एक  और फिल्म आएगी गौरव द्विवेदी की आपके कमरे में कोई रहता है। इसके अलावा टी.वी भी कर रहा हूँ लेकिन अभी वो चैनल लांच नहीं हुआ है इसलिए अभी उसकी डिटेल मैं आपको बता नहीं सकता हूँ।
 आपके यादगार किरदार कौन कौन से हैं?
 मुझे लगता है जॉली एल एल बी में  ट्यूटर का किरदार, फिर युद्ध में निभाया हुआ किरदार तमाशा का और  ये
 चरित्र।
                तो ये थी हीरामन भैया यानि इश्तेयाक साहब से हमारी पूरी बातचीत। इश्तेयाक साहब को हमारे ब्लॉग की पूरी टीम और सभी दर्शकों की तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनायें।
                                                                                                   पूजा
                             
                

Comments

Popular posts from this blog

विभा रानी: जिन्होंने रोग को ही राग बना लिया

आम्रपाली के नगरवधू से एक बौद्ध भिक्षुणी बनने तक का सफर ....

आह से वाह तक का सफर : अर्चना सतीश