तख्ती पर लटका हिंदी का 'एक शब्द' : नृपेन्द्र बाल्मीकि

भाषा इंसान की सबसे बड़ी खोज है। जिसने इंसान को उसके विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान की है। मानव के छोटे से मस्तिष्क ने अपनी उत्पत्ति के समय से ही अभिव्यक्ति के माध्यमों की खोज शुरू कर दी थी, जिनमें भाषा सबसे खूबसूरत माध्यम मानी गई। इस छोटे मानवीय मस्तिष्क ने भाषा में भी खोज की प्रक्रिया निरंतर जारी रखी। वर्तमान में देखा जाए तो पूरे विश्व में 6909 जीवन्त भाषाएं हैं। जिनमें से 6 प्रतिशत कुछ ऐसी भाषाएं हैं जिन्हें बोलने वाले प्रत्येक के 1 मिलियन से भी ज्यादा स्पीकर्स हैं। अपनी विविधता के लिए मशहूर भारत भी बहुत सी भाषाओं का धनी है। भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। कहा जाता है यहां हर 100 किमी पर बोली व हर 300 किमी पर भाषा बदल जाती है। यानी भारत पूरे विश्व में एक ऐसा देश है जो अपनी भाषाई खजाने के मामले में सबसे अमीर है। यानी हमें गर्व करना चाहिए की हम इतनी सारी भाषाओं के बीच में रहते हैं।
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गहराई से समझें तो भारतीय भाषाएं सिर्फ संपर्क माध्यम ही नहीं है, बल्कि इन भाषाओं, इन बोलियों में भारतीय संस्कृति की सौंधी -सौंधी खूशबू आती है। जिसने हमें प्रेम रूपी बंधन में बांधे रखा है। पर आज यह बंधन मौलिकता को छोड़ आधुनिकता को पकड़ने वालों को जंजीर समान लगने लगा है।
ये बंधन परंपरागत बोझ के रूप गिना जाने लगा है। आज समुद्र पार की भाषाएं भारतीयों की पहचान बनती जा रही है। जिनमें अंग्रेजी को सबसे उपर स्थान मिला है। ये एक मात्र भाषा भारतीयों की मौलिक पहचान पर भारी पड़ती जा रही है। जिसका सबसे बड़ा कारण लोगों द्वारा इसे अनावश्यक रूप से अपने व्यक्तित्व का सबसे बड़ा स्टार मान बैठना। भारत में बढ़ते मर्जिंग प्रोजेक्ट (विदेशी कंपनियों का भारतीय निजी कंपनियों के साथ मिलना) ,'आउटसोर्सिंग' ये कुछ ऐसे कारण हैं जिन्होंने भारत में अंग्रेजी को एक अनिवार्य रूप दिया है। आपको हिंदी आए न आए पर अंग्रेजी जरूर आनी चाहिए।
एक 'हिंदी शब्द'
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चीन के माध्यम से
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दुनिया के अत्यधिक देशों में अंग्रेजी बोली जाती है, इसलिए यह सर्वाधिक प्रयोग की जानी वाली भाषा बन गई है। लेकिन वास्तव में अंग्रेजी को बोलने वाले लोगों की संख्या चीन की मंदारिन भाषा से बहुत कम है। यह बात और है कि वैश्विक स्तर पर केवल चीन, ताइवान, सिंगापुर में प्रयुक्त चायनीज लैंग्वेज अंग्रेजी की तरह बहुराष्ट्रीय नहीं है। कुल आंकडों की बात हो तो चायनीज भाषा 1 अरब से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। जबकि चीन की पूरी आबादी लगभग 131 करोड़ है, यानी चीन में किसी दूसरी भाषा का वजूद नहीं है।
दार्शनिक पहलू
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कहते हैं कि अंधेरे से मुक्ति के लिए ज्ञान का चिराग जलाना जरूरी है, पर ये जानना भी जरूरी है, कि आप अंधेरा कहां का दूर कर रहे हो, अपने अंदर का या बाहर का। ज्ञान एक प्रकाश पुंज है, जिसका सही स्थान इंसान की अतंरात्मा है। ज्ञान का सही स्थान मन के अंधेरे के साथ-साथ बाहर के अंधेरे को भी दूर करता है। ज्ञान हमारे बुद्धी रूपी पात्र को भरने का काम करता है, हमारी बुद्धी सीमित हो सकती है पर ज्ञान नहीं। ज्ञान संस्कृति-परंपराओं के बीच सेतु का काम करता है, किसी खाई या गड्ढ़े का नहीं। आपके चारो तरफ ज्ञान विद्यमान है, जिसे प्राप्त करने के लिए आपको अपनी मौलिकता को कस कर पकड़ना होगा, वरना ज्ञान की अलौकिक उर्जा के सामने आपका बनावटी अस्तित्व ज्यादा देर तक टिक नहीं सकेगा।
भाषाई ज्ञान के लिए अंग्रेजी क्या आप विश्व की सभी भाषा सीखें पर बनावटी अस्तित्व के लिए अपनी असल पहचान से समझौता न करें...वरना ये आधुनिक ज्ञान आपको उस अंधेरे कुंए में धकेल देगा जिसके वापसी मार्ग से आप पहले ही भटक चुके होंगे।
--प्रस्तुति: सुप्रिया श्रीवास्तव
--प्रस्तुति: सुप्रिया श्रीवास्तव
Its great, thanks supriya and puja di for this surprising gift. its really huge for me...thanks again.
ReplyDeletedhanywad nripender
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