मेरे धर्म में शोर नहीं है:डॉ जय नारायण



 धर्म के बढ़ते  शोर और धार्मिकता के  उन्माद के बीच पढ़िए  , डॉ जय नारायण बुधवार की ये  कविता। वरिष्ठ पत्रकार, आलोचक, लेखक और कल के लिए पत्रिका के संपादक डॉ जय नारायण समय समय पर अपनी प्रखर  टिप्पणियों से समाज और राजनीती के विभिन्न मुद्दों पर सवाल उठाते रहे हैं। प्रस्तुत है उनकी कविता





मेरे धर्म में शोर नहीं है

 मेरे धर्म में शोर नहीं है
मेरी पूजा में शब्द नहीं हैं
मेरी अर्चना में अक्षत नहीं है
मेरी प्रार्थना में आरती नहीं है
मेरे यज्ञ में मंत्र नहीं है

मेरी आस्था में मूर्ति नहीं है
मेरे मार्ग में मंदिर नहीं है
मेरे ध्यान में गुरु नहीं है
मेरे विश्वास में देवता नहीं हैं
अकेला हूँ अपनी आत्मा के साथ
अपने एकांत में
अपने साथ होना मेरा धर्म है
जो अपने साथ है
वह सबके साथ है।
                          प्रस्तुति :पूजा 

Comments

Popular posts from this blog

विभा रानी: जिन्होंने रोग को ही राग बना लिया

आम्रपाली के नगरवधू से एक बौद्ध भिक्षुणी बनने तक का सफर ....

आह से वाह तक का सफर : अर्चना सतीश