आख़िर कब पास हो पाएगा महिला आरक्षण विधेयक?

 रीतिका शुक्ला


महिला आरक्षण विधेयक भारतीय संसद  में प्रस्तुत किया गया, यह वह विधेयक है जिसके पारित होने से संसद में महिलाओं की भागीदारी 33% सुनिश्चित हो जाएगी।अगर ये विधेयक पारित होता है और कानून का रूप लेता है तो इसे भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में मील का पत्थर माना जा रहा है ,लेकिन इसको पारित होने में बहुत सी मुश्किलो का सामना करना पड़ रहा है। 


       भारतीय समाज शुरू से ही पुरुष प्रधान रहा है। और यहाँ महिलाओं को हमेशा से दूसरे दर्जे का माना जाता है। पहले महिलाओं के पास अपने मन से कुछ करने की सख्त मनाही थी। परिवार और समाज के लिए वे एक आश्रित से ज्यादा कुछ नहीं समझी जाती थीं। ऐसा माना जाता था कि उसे हर कदम पर पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ती है। यही सोच बदलने कि आवश्यकता है। महिलाओ की भगीदारी राजनीति में बढ़ाने के लिए महिला आरक्षण विधेयक लाने की पेशकश की गयी थी, जिस को आज दो दशक बीत चुके है।  ग़ौरतलब है कि राजनीति में महिला भागीदारी कम होने का कारण है कि महिला आरक्षण बिल 20 साल से अधिक समय से अटका हुआ है।महिला आरक्षण विधेयक पहली बार 12 सितंबर 1996 को तत्कालीन एचडी देवगौड़ा सरकार ने सदन में पेश किया था लेकिन विडंबना यह रही कि तब इस विधेयक का सबसे ज्यादा विरोध मुलायम सिंह यादव और लालू यादव ने किया था. लिहाज़ा यह बिल पास नहीं हो पाया। इस बिल को 1997 में एक बार फिर पास कराने की कोशिश की गई, लेकिन इस बार भी कोई नतीजा न निकला। यह बिल 1998, 1999 और 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्धारा सदन में पेश किया, लेकिन हर बार यह विधेयक हंगामो की भेट चढ़ गया और इस दौरान यह महसूस किया गया कि बिल को समर्थन देने वाली पार्टियों के अंदर भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो इस बिल को पास होते नहीं देखना चाहते थे। 2010 में भाजपा, वामदलों और जदयू के समर्थन से यूपीए सरकार ने राज्य सभा से इस बिल तो पारित करा लिया, लेकिन लोकसभा में मामला तब फंस गया जब इस बिल के खिलाफ आवाज़ उठाई. तब से यह बिल आज तक धूल खा रहा है। अब बीजेपी के पास लोकसभा में स्पष्ट बहुमत है और राज्यसभा में दोबारा बिल पास कराने की जरूरत नहीं है तो सरकार इसे पास क्यों नहीं करा रही है ये सवाल उठना लाजिमी है।

 महिला आरक्षण विधेयक पर मोदी सरकार के मंत्रियों में मदभेद दिखता रहा है। जहाँ केन्द्रीय संसदीय मामलों के मंत्री एम वेंकैया नायडू के महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने का आश्वासन दिया था वही केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री वाई एस चौधरी महिलाओं को आरक्षण दिए जाने के पक्ष में नहीं हैं। साथ ही उन्होंने भी यह कहा कि देश में हर क्षेत्र महिलाओं के लिए खुला है और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के पद पर भी पहुंच चुकीं हैं। जहां तक महिलाओं के साथ भेदभाव का सवाल है, अमेरिका जैसे देश में भी उनके साथ भेदभाव होता है। चौधरी ने कहा कि हमारे देश की ऐसी छवि पेश की जाती है कि यहां पर महिलाओं के साथ हिंसा होती है, इससे महिलाओं का आत्मविश्वास कम होता है। भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर है और उनका सम्मान किया जाता है। उन्होंने कहा कि मांए खुद बेटियों के मुकाबले बेटों को वरीयता देती हैं।
आंध्र प्रदेश की निर्माणाधीन राजधानी अमरावती में राष्ट्रीय 'महिला संसद' के दूसरे दिन चौधरी ने अपने संबोधन में कहा कि पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण दिए जाने का अनुभव अच्छा नहीं रहा है क्योंकि परदे के पीछे से आरक्षित पंचायतों को पुरुष ही चला रहे हैं। इसलिए वह संसद एवं विधान सभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक के पक्ष में नहीं हैं। कही न कही बीजेपी के नेताओ में इस विधेयक को ले कर मतभेद साफ़ दिख रहा है। 
उल्लेनीय है कि नायडू ने अपने संबोधन में कहा था कि महिला आरक्षण विधेयक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता है और राज्य सभा में बहुमत मिलने पर भारतीय जनता पार्टी इस विधेयक को पारित करायेगी। नायडू ने सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया था कि महिलाओं को आरक्षण देने पर प्रतिबद्धता व्यक्त करें, लेकिन फिर भी यह विधेयक आज तक अधर में लटका हुआ है। 
       महिलाओं के आरक्षण के प्रसंग में अक्सर यह सवाल किया जाता है कि उनके प्रतिनिधित्व में इजाफे से महिलाओं को आखिर क्या लाभ होगा ? सबसे बड़ी बात तो यह है कि अधिक प्रतिनधित्व अपने-आप में एक लाभ है। जब ग्राम पंचायतों में पहली बार 33 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया तब पंचायतों में 43 प्रतिशत महिलाएं चुन कर आईं थीं. दरअसल, महिलाओं की क्षमता और योग्यता को पुरुष वर्चस्व हमेशा से सन्देह की निगाहों से देखता रहा है और महिलाओं ने जब–जब मौका हासिल किया है (कभी पुरुष उदारता ने उन्हें यह मौका नहीं दिया; या तो उन्होंने यह लड़कर हासिल किया या पितृसत्तात्मक समाज की कमजोरियों ने उन्हें यह अवसर दिया ), तब-तब उन्होंने अपने को साबित ही किया है। 


संसद में महिलाओं को मिले 50 प्रतिशत आरक्षण: कनिमोई

महिला आरक्षण विधेयक को जल्द पारित करने की मांग करते हुए राज्यसभा सदस्य कनिमोई ने कहा कि महिलाओं को न्याय सुनिश्चित करने के लिए उन्हें संसद में 50 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए। कनिमोई ने कहा कि जब तक विधेयक को मंजूरी नहीं मिलती है तब तक वह कई तरीके से इसका विरोध करती रहेंगी। महिला आरक्षण विधेयक में महिलाओं के लिए संसद के साथ ही राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई है।
                                                                                        

Comments

  1. बिलकुल, स्पष्ट बहुमत और बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार को इस बारे में प्रयास करना चाहिए, इससे उनकी छवि सपष्ट होगी।

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    1. सही कहा आपने...वैसे भी हमेशा से औरतो को अपने हक़ की लड़ाई खुद से लड़नी पड़ी है... बस अब जल्द ही ये बिल पास हो जाए .

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