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Showing posts from March, 2017

अनारकली ऑफ़ आरा:हाशिये की औरत का विद्रोह

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 ऐसा बहुत कम होता है की आप कोई फिल्म देख कर निकले और बहुत देर तक अपने साथ के लोगों से ये भी पूछना भूल जाएँ की कैसी लगी फिल्म? अनारकली ऑफ़ आरा देख कर कुछ ऐसा ही हुआ। फिल्म हमारी चेतना पर इस कदर हावी हो गई थी की थिएटर से निकले के बहुत देर बाद तक हम मौन रहे। इस फिल्म का असर वाकई  बहुत गहरा और दूरगामी है। फिल्मों से प्यार करने वालों के साथ साथ फिल्म क्रिटिक्स के लिए भी इस फिल्म को भुला पाना आसान नहीं होगा। अपनी बहुत सारी खूबियों के चलते इस फिल्म ने हिंदी फिल्मों के इतिहास में अपना नाम एक उम्दा फिल्म के रूप में दर्ज करा लिया है।                                                 पिछले कुछ समय से फिल्मों में स्त्री विमर्श की बहुत सी कहानियां देखने को मिल रही  हैं। पिंक , पार्च्ड से लेकर हाल फिलहाल रिलीज़ हुई एक बेहद कमर्शियल फिल्म बद्रीनाथ की दुल्हनियां भी कमोबेश इसी  मुद्दे को भुनाती हुई दिखाई देती है। लेकिन अनारकली... इन सबसे अलग है। ये एक ऐसी स्त्री ...

कौन होगा अगला शिकार??- रीता शर्मा

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रीता शर्मा ने हमारे आग्रह पर यह आलेख हमें भेजा है। रीता कई वर्षों से समाज सेवा के कार्य में लगी हुई हैं। इनका अपना एक एन  जी ओ है जिसका नाम है शक्तिस्वरूपा। इस  एन    जी ओ के ज़रिये वो महिलाओं के  मुद्दों को उठाने उन्हें न्याय दिलाने और उनमे जागरूकता जगाने का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। हाल में शीरोज हैंगआउट की कर्मी के साथ हुई घटना को भी रीता सभी मंचों पर ज़ोर शोर से उठा रही हैं। प्रस्तुत हैं उनका ये आलेख - कौन होगा अगला शिकार?? जानकारी के मुताबिक रोक के बावजूद चोरी छिपे बिक रही एसिड और हालिया जबरन गुंडों द्वारा एक पिलाई गयी एसिड, अब ये सोचने को मजबूर कर रही है कि अब अगला शिकार होगा कौन? समाज में खुले आम घूम रहे ये दरिंदे की कब, किस पर नज़र पड़ जाए और उसका तन मन जलाकर ये विकृत लोग किसी अनहोनी घटना को अंजाम दे दे, कोई कुछ नहीं सकता। बेख़ौफ़ घूम रहे ये भेड़िये सख्त कानून के बावजूद ऐसी घटना को अंजाम दे रहे हैं, क्योंकि इन पर कोई सख्त कार्यवाही नहीं हो रही है। हमारे सर्वे के मुताबिक कोई 9 साल से तो कोई उससे भी ज्यादा समय से न्यायालय दौड़ रहा है और अ...

सबीहा के हुनर को मिले पंख

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हुनर ही जिनकी पहचान है.....   रीतिका शुक्ला  हुनर हर इंसान को समाज में जीने का नया मुकाम दिलाता है।  ऐसा ही हुनर है सबीहा का। सबीहा लखनऊ के डालीगंज की निवासी है। देखने में ये आम महिला की तरह दिखती है लेकिन इनके हाथो में जादू है।  आज मैं आप सबको सबीहा के हुनर से रूबरू कराने जा रही हूं , जिनके पास न तो कोई  डिग्री है, न ही किसी प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट का टैग, पर फिर भी उनकी काबिलियत उनको सबसे अलग बनाती है। सबीहा ने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना किया है और आज भी उनकी परेशानियॉ कम नहीं हुई, फिर भी सबीहा ने हिम्मत नहीं हारी। सबीहा घर के  बेकार सामान का प्रयोग करके उसे एक जीवंत रूप देती है।         कठिनाइयों से भरा अतीत  बहुत कुछ बोलती ये गुड़िया हमसे... आदिवासी महिला  के जीवन को दिखने का जीवंत प्रयास ।  सबीहा का जीवन बहुत कठिनाइयों से भरा रहा है लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। सबीहा का निक़ाह 1999 में हुआ था और जुलाई 2007 को लगातार घरेलू हिंसा के चलते वो अपने प...

हो गई है पीर पर्वत सी......

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हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए मुझे नहीं पता की दुष्यंत कुमार ने ये पंक्तियाँ किस सन्दर्भ में लिखी थी लेकिन आज जो परिस्थितियां हैं उन्हें देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा की आज हमारी पीर वाकई पर्वत सी हो गई है  और अब इसका पिघलना बेहद ज़रूरी है। आज ये पीर बहुत गहराई से उठी है। एक औरत जो सिर्फ अपने हक़ की लड़ाई  लड़ रही थी , आज तेज़ाब पी कर अस्पताल के एक बिस्तर पर पड़ी है। ये पीर तब भी उठी थी जब दिल्ली में एक लड़की के साथ  भयावह तरीके से गैंगरेप हुआ था। ये पीर लगभग  रोज़ उठती है। आप अखबार उठा कर देखिये शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब औरतों से जुड़े किसी अपराध की खबर न हो। लेकिन हम भुल्लकड़ लोग , कहाँ याद रख पाते हैं देर तक इन खबरों को। कितनी अजीब सी बात हैं न की जिस खबर को पढ़ कर सुबह तक हमारा खून ख़ौल रहा था शाम तक वही खबर बेमानी हो जाती है।                                        शायद इसलिए की  हमें और भी बहुत से काम करने ...

बेटों की भूखी औरतें: और हमारा जीना हराम : भारती गौड़

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भारती गौड़  एक युवा लेखिका हैं। उदयपुर में जन्मी भारती वर्तमान में जयपुर में रह रही हैं। मनोविज्ञान से परास्नातक भारती फिलहाल भारत सेवक  समाज में परिवार परामर्शक के रूप में कार्यरत हैं। साथ ही वे राजस्थान लेखिका साहित्य संसथान में मीडिया प्रभारी भी हैं। इनका एक उपन्यास जान्हवी वर्ष 2014 में प्रकाशित हो चुका है। इस उपन्यास के लिए वर्ष 2016 में इन्हें  युवा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित  भी किया जा चुका है। इसके अलावा इनकी कई कहानियों को भी  पुरुस्कारों से नवाज़ा जा चुका हैं। आइये पढ़ते हैं  इस युवा और प्रतिभाशाली लेखिका का एक आलेख।   बेटों की भूखी औरतें: और हमारा जीना हराम  चेतावनी: कमज़ोर दिल वाली और दोगली महिलायें इस पोस्ट से दूर रहें। मेरा नारीवाद के वर्तमान और मुद्दों से हटे हुए स्वरुप से कोई लेना देना नहीं है। मैं व्यक्तिवादी हूँ। पुरुष या नारीवादी नहीं। धन्यवाद। हमारे भारत देश में महिलाओं की दो तरह की समस्याएं हैं। एक उनकी स्वयं की जिसमे अलग अलग तरह की पचासों समस्याएं हो सकती हैं जिनमें से कुछ एकदम सच और कुछ सच से भी ...

क्योकि आप लखनऊ में है.........

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इंडो-इटालियन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना छतर मंजिल  रीतिका शुक्ला   आज हम आपको लखनऊ की एक मशहूर जगह से रूबरू कराएगे। ये   लखनऊ का   ऐतिहासिक भवन   छतर मंजिल   है। छतर   मंजिल को छाता पैलेस भी कहा जाता है   ‍ क्योकि   इसकी गुंबद छातानुमा आकार की है। इस पैलेस का इतिहास चारों तरफ फैला हुआ है , इसकी एक   और खासियत यह है कि   इस महल को कई शासकों ने अलग - अलग समय पर बनवाया। इसे सबसे पहले जनरल क् ‍ लाउड मार्टिन के   द्धारा 1781 में उनके निवास   स्थान   के रूप में बनवाया गया था , जो गोमती नदी के तट पर स्थित था। बाद में इसे नवाब सादत अली खान   ने  खरीद लिया   था।   इसके पश्चात    नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने   छतर   मंजिल   के     निर्माण प्रारंभ   किया और उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी नवाब नासिरुद्दीन हैदर ने इसका कार्य   पूरा करवाया। इस   इमारत का...