क्योकि आप लखनऊ में है.........

जानकारों की माने तो इसके निर्माण में जितनी भी लकड़ी लगी उसके लिए गोमती नदी के किनारे लगे पेड़ को काटा गया था। कहा जाता है कि छतर मंजिल में मार्टिन 1800 तक आखिरी सांस तक इसी में रहे। लोगों का कहना है कि उनको कांस्टेंटिया में सुपुर्द-ए-खाक किया गया जो जिसे आज लामार्टीनियर ब्वायज कॉलेज के नाम से जानते हैं।
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छतर मंज़िल का अंडरग्राउंड रास्ता |
इसके अलावा नवाब सआदत अली खान ने बारादरी को कोर्ट (न्यायालय) और चीना बाजार के रूप में विकसित किया जो फरहत बख्स से काफी नजदीक थी। इनके पुत्र गाजीउद्दीन हैदर को अवध का पहले राजा के रूप में राज्याभिषेक किया गया।फरहत बख्स के किनारे मूर्तियों और फूलों की क्यारियां उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती थी जिसे गुलिस्तान-ए-इरम (गार्डेन ऑफ पैराडाइज) के नाम से जाना जाता था। इसी फूल के बगीचे के सामने कोठी का निर्माण कराया गया था जिसे दर्शन बिलास के नाम से जाना जाता था।फरहत बख्स पैलेस या छतर मंजिल का निर्माण इंडो इटैलियन स्टाइल में बना है। गोमती नदी के किनारे बसे इस भवन पर प्राकृतिक छाया इसको और सुंदर बनाती है।
रहस्यमयी छतर मंजिल के संरक्षण का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। इंडो-इटालियन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना कही जाने वाली इस छतर मंजिल को अवध विरासत और परंपराओं पर केद्रिंत एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया जा रहा है। गौरतलब है कि इसकी मरम्मत और रखरखाव का काम जब शुरु हुआ तो छतर मंजिल में शानदार दीवानखाना, कई तहखाने, सुरंग और मेहराब आदि के बाद कुछ अनजाने निर्माण भी सामने आने लगे हैं। यह एक अजूबे की बात है कि इस इमारत के नीचे बहुत से रहस्य दबे हुए थे जो अब धीरे-धीरे सामने आ रहे है।यहाँ लगभग एक 350 फ़ीट लंबा भूमिगत टनल मिला जो हो सकता है गोमती नदी और छत्तर मंज़िल को जोड़ता हो । कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि हो सकता है कि यहाँ कभी नौकाएं चलती हो। कौन कहेगा कि इस इमारत में 200 के करीब सुरंग मिलेगी। कुछ भी कहो यह इमारत नवाबो के वक़्त में गर्मियों में खासी आरामदेह थी। तभी तो बादशाह अमजद अली शाह की बेगम खास तौर पर इस इमारत में गर्मियों के दिन में आती थीं । आप भी चाहे तो यहाँ जा कर नवाबो की तरह इस जगह का जुफ्त उठा सकते है और मुस्कुराइए क्योकि आप लखनऊ में है।
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खुदाई करने के बाद मिला अंडरग्राउंड टनल |
Nice article on glorious past history of Lucknow. Keep up the good work.
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