सबीहा के हुनर को मिले पंख
हुनर ही जिनकी पहचान है.....
रीतिका शुक्ला
हुनर हर इंसान को समाज में जीने का नया मुकाम दिलाता है। ऐसा ही हुनर है सबीहा का। सबीहा लखनऊ के डालीगंज की निवासी है। देखने में ये आम महिला की तरह दिखती है लेकिन इनके हाथो में जादू है। आज मैं आप सबको सबीहा के हुनर से रूबरू कराने जा रही हूं , जिनके पास न तो कोई डिग्री है, न ही किसी प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट का टैग, पर फिर भी उनकी काबिलियत उनको सबसे अलग बनाती है। सबीहा ने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना किया है और आज भी उनकी परेशानियॉ कम नहीं हुई, फिर भी सबीहा ने हिम्मत नहीं हारी। सबीहा घर के बेकार सामान का प्रयोग करके उसे एक जीवंत रूप देती है।
कठिनाइयों से भरा अतीत
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बहुत कुछ बोलती ये गुड़िया हमसे...आदिवासी महिला के जीवन को दिखने का जीवंत प्रयास । |
आखिर क्या है ये हुनर
हम सबके घर में बहुत सारा सामान ऐसा होता है, जिसे हम बेकार समझ कर कबाड़ में फैंक देते हैं लेकिन शायद आप नहीं जानते कि घर में प्लास्टिक की बोतलों से लेकर मैगजीन तक का सामान किसी न किसी काम में दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। बस इसके लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है। आज हम आपको ऐसी क्रिएटिव आर्ट से वाकिफ़ कराएगे , जिसके बाद आप घर का वेस्ट सामन फेकने से पहले दो बार जरूर सोचेंगे।
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बेकार सामान से बनी एक छोटी बच्ची कैंडी फ्लॉस खा रही है। |
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अपनी रचना से आम आदमी के जीवन को दिखाने का प्रयास |
बचपन से ही सबीहा को छोटी -छोटी चीजे बनाने का शौक था। जब वो कक्षा पाँच में थे तो पहली पर छोटी गुड़िया के लिए जूतियां बनायीं थी। धीरे - धीरे उम्र बढ़ने के साथ उनकी कला में भी इजाफा हुआ। अब वो उन बेकार के सामान से गुड़िया बनाती है जो हम बेकार समझ कर फेंक देते है। सबीहा ने बताया कि उन्होंने स्कूलों में भी बच्चो को यह कला सिखाई है। सबीहा प्लग से फ्लावर पॉट बनाती है। और धागे ,कपड़े ,डोरी ,सुतली, सीको और ऐसे ही बेकार पड़े सामान से ये गुड़िया बनाती है। और इनके कपडे भी ये खुद से बनाती है। वो हर छोटी डिटेल का ख्याल रखती है ,अपनी डॉल को तैयार करने में।फिर चाहे वो गुड़िया की पर्स हो या उसका हेयर स्टाइल क्यों न हो। एक डाल तैयार करने में कभी - कभी दो दिन से अधिक समय भी लग जाता है ,क्योकि इन डॉल का साइज बहुत छोटा होता है। जिसे बनाने में बहुत मेहनत लगती है।
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पतंग की डंडी ,ढकन ,डोरी ,धागे और घर के बेकार पड़े सामान से बनी गुड़िया |
जिनके सपनो में जान होती है;
पंख से कुछ नहीं होता;
हौंसलों से ही उड़ान होती है।
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