बेटों की भूखी औरतें: और हमारा जीना हराम : भारती गौड़
प्रकाशित हो चुका है। इस उपन्यास के लिए वर्ष 2016 में इन्हें युवा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है। इसके अलावा इनकी कई कहानियों को भी पुरुस्कारों से नवाज़ा जा चुका हैं।
आइये पढ़ते हैं इस युवा और प्रतिभाशाली लेखिका का एक आलेख।
बेटों की भूखी औरतें: और हमारा जीना हराम
चेतावनी: कमज़ोर दिल वाली और दोगली महिलायें इस पोस्ट से दूर रहें। मेरा नारीवाद के वर्तमान और मुद्दों से हटे हुए स्वरुप से कोई लेना देना नहीं है। मैं व्यक्तिवादी हूँ। पुरुष या नारीवादी नहीं। धन्यवाद।
हमारे भारत देश में महिलाओं की दो तरह की समस्याएं हैं। एक उनकी स्वयं की जिसमे अलग अलग तरह की पचासों समस्याएं हो सकती हैं जिनमें से कुछ एकदम सच और कुछ सच से भी बढ़कर हो सकती हैं जिनको हमको सहना ही हैं क्योंकि वो प्राकृतिक हैं और हमेशा रहेंगी। उस प्रकार की महिलाओं में मैं भी आती हूँ। लगभग हर महिला इस पहले प्रकार की समस्या से पीड़ित है ही। अब इसकी व्याख्या करनी ज़रूरी नहीं क्योंकि इन समस्याओं से पुरुष और महिला दोनों ही हर तरह से वाकिफ़ है। ये शारीरिक, मानसिक या और भी तरह की हो सकती हैं और ये वाकई में होती हैं और हम महिलाएं इनको सहती भी हैं। ये हमारी प्रतिभा है हमारा साहस है। इसके लिए पुरुषों को हमें धन्यवाद देते रहना चाहिए। कुछ पुरुष देतें भी हैं कुछ नहीं भी देतें। खैर...
महिलाओं की दूसरी तरह की समस्या। यानी कि ये विशुद्ध रूप से छद्म समस्या है। इसमें भी कुछ नौ या दस तरह की इनकी भारी दिक्कतें हैं जिनसे ये मरते दम तक जूझती रहती हैं या यूँ कहूँ कि दूसरी महिलाओं का जीना हराम कर देती हैं।
इनकी पैनी नज़र या कह लें कि इनके पास एक छुपा हुआ कैमरा होता है जिससे ये हर वक़्त लड़कियों पर और दूसरी औरतों पर बाज जैसी नज़रें जमाये बैठी रहती है। ये इनकी ही प्रतिभा है कि इनकी ये वाली नज़रें हर जगह अपना मकसद पूरा करने में सफल भी हो जाती हैं।
इनकी पैनी नज़र या कह लें कि इनके पास एक छुपा हुआ कैमरा होता है जिससे ये हर वक़्त लड़कियों पर और दूसरी औरतों पर बाज जैसी नज़रें जमाये बैठी रहती है। ये इनकी ही प्रतिभा है कि इनकी ये वाली नज़रें हर जगह अपना मकसद पूरा करने में सफल भी हो जाती हैं।
सबसे पहले ये छोटी बच्चियों को अपना निशाना बनाती हैं। पहले उन पर गुर्राती रहेंगी कि ये करो वो मत करो ऐसे बैठो वैसे उठो इस बात की तमीज़ रखो उस बात का ख्याल करो। तुमको आगे घर जाना है नाक कटवाओगी क्या! माने किसी की भी बच्ची कुछ भी करें नाक इनकी कट जाएगी!
फिर दूसरों की बच्चियों पर भी इनका नैसर्गिक अधिकार तो होता ही है उनकी पढ़ाई लिखाई से लेकर सड़क पर चलना फिरना खाना पीना पहनना ओढ़ना सब इनके दायरे में आता है। कैसे और क्यों ये मुझे भी नहीं मालूम।
खैर ये तो इनकी मामूली समस्याएं हैं। इनकी वास्तविक और गंभीर समस्या तो ये है कि इनके मुहँ से आप कभी भी सपने में भी किसी भी दूसरी महिला को ये आशीर्वाद देते हुए नहीं सुन सकते कि तुम्हें बेटी हो! ये उठते बैठते जीते मरते अपने आप को भगवान् का दूसरा अवतार मानते हुए यही कहती मिलेंगी कि पुत्रवती भव। ये बात सिर्फ और सिर्फ चिढ़ ही पैदा करती है। मैंने मेरे आस पास से लगाकर दूर दूर तक की औरतों की ये एक सामान समस्या देखी है। मुझे नहीं मालूम इन औरतों को इस चीज़ की इतनी भूख आखिर क्यों है। क्यों ये बदलना नहीं चाहती! क्यों ये खुदसे प्यार नहीं कर सकती! और ये समस्या एक रेंगने वाले कीड़े की तरह इन औरतों के अंदर बस चुकी है कि ये खुलेआम भी इसका प्रदर्शन करती हैं।
बच्चा बच्चा होता है फिर चाहे बेटा हो या बेटी हो माता पिता को वो हर हाल में प्यारा होता है| कोई सांप या शेर तो पैदा होने से रहा|
मैंने कभी किसी पुरुष को किसी बेटी बहन या बहु को ये कहते नहीं सुना कि भगवान् तुम्हें पुत्र दे। कभी भी नहीं| अगर ऐसा है भी तब भी मैं ठोक बजा कर कहती हूँ कि ऐसे पुरुषों का अनुपात बहुत ही कम निकलेगा। कर लीजिये सर्वे। जो समस्या औरतों ने खड़ी करी है उसके लिए सुधार भी इनको ही करना होगा। खुद की दबी छुपी इच्छाओं का इल्ज़ाम ये बड़ी चालाकी से पुरुषों के माथे मढ़ देती हैं|
सबसे पहले आशीर्वाद देंगी बेटा हो। बेटी हो गयी तो ये मातम मनाएंगी। फिर ये दूसरी बार बेटा पैदा होने का आशीर्वाद भी हॉस्पिटल में ही दे देंगी। घर आने तक का इंतजार ये नहीं कर सकती| इन गंवार औरतों को ये भी तो नहीं समझाया जा सकता कि थोडा आशीवार्द तुम्हारें लड़कों को भी दे दो क्योंकि बेटा या बेटी तो उन्हीं की वजह से होना है। खैर अगर ऐसा आप इनको समझाने गए तो आपकी शामत है और आप ज्यादा पढ़े लिखें हैं।
बहुत भारी समस्या है और भारी चिढ़ है मेरे अन्दर ऐसी औरतों को लेकर जिनकी वजह से कन्या भ्रूण हत्या अपने स्वर्ण युग में पहुँच चुकी है।
'तथाकथित नारीवादी नारियों' से मेरी विनम्र अपील है कि सुना है आप नारीवाद के क्षेत्र में बहुत कुछ कर रही हैं तो कृपया करके इस बारे में भी कुछ आख्यान व्याख्यान करिए मंच वंच सजाइए। अपने अहम पर लेने की ज़रूरत बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि जब आप दूसरी महिलाओं के बेडरूम में घुसकर उनको सलाह दे आती हैं तब उनके अहम् को भी ठेस पहुँचती है। खैर... भगवान् आपको बेटा दे!
प्रस्तुति : पूजा
प्रस्तुति : पूजा
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