नज़्म - यादों के बादल

 देश की पहली महिला कार्टूनिस्ट (राजनैतिक) मीता रॉय एक अच्छी लेखिका और कवियत्री भी हैं। प्रस्तुत है उनकी एक नज़्म -यादों के बादल।


उमड़ घुमड़ रहे हैं साँझ से यादों के बादल आज फिर रात भर जमकर बरसात होगी।
नींद न जाने कब से हड़ताल पर है आज फिर भरपूर रतजगाई होगी।
हौले हौले कटेगी रात तग़ाफ़ुल के साथ सिर्फ़ तारीख़ ही बदलेगी जब अलसाई सुबह की दस्तक होगी ।
कोहरे में घिरी तेरी यादों ने खूबसूरत पहाड़ों पर रात बेसाख़्ता ही कोई धुन गुनगुनाई होगी ।
तुम्हारी ख़ामोशियों ने मचाया है शोर बहुत अब तो खुद की खुद से ही गुफ़तगूं होगी।
दर्द की चाशनी में पक रहा है पीला-पीला चाँद मिरी रातों में भला कितनी रौशनी होगी ?
तुमसे तो अच्छी ये तन्हाईयाँ हैं ज़िन्दगी जवानी से ही इनकी आग़ोश में होगी।
सांसों का मिरी उफ़ान थम चुका है पहले बीमारी फिर मौत मेरी तलाश में होगी।
आखिरी धड़कन भी डूब रही सबको ख़बर है मगर कानों तक उसके ये बात न पहुँची होगी ।
दिल का बेशुमार दर्द अब छलकनें लगा है जबकि पैबन्द लगा-लगा कर करीने से रखी होंगी।
ये दिले-तबाही का मंज़र भी देख लो चाहने वालों अब किसी और से यारी -न -दोस्ती होगी ।
सदियों बाद मिरी तन्हाइयों ने क़लम उठाई है देखना फिर वहीं करिश्माई बातें होंगी ।
तुम तो छोड़ गए तन्हाइयों के साथ मुझे तुमसे अब क्या ख़ाक मुलाक़ात होगी।
मीता रॉय




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