कहता ये पल, ख़ुद से निकल ..
रीतिका शुक्ला
lअर्थात इस संसार में कोई भी मनुष्य जन्म या जाति से न तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होता है और न शूद्र ही। जाति, जन्म की दृष्टि से सब समान हैं। किन्तु गुण, कर्म के आधार पर अवश्य विभेद तथा अलग - अलग वर्ण हो जाता है। जो जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही वर्ण प्राप्त होगा।

जब संसार में सभी साथी मनुष्य का साथ छोड़ दें, पराजय और पीड़ाओं के दंश मनुष्य को घायल कर दें, पैरों के नीचे से सभी आधार खिसक जायें, जीवन के किसी मोड़ पे आप अकेले हो जाय तो भी क्या वह जीवित रह सकता है? कुछ कर सकता है? अपने लक्ष्य को पा सकते है? और इसका जवाब भी खुद हमारे पास है । यदि आप स्वयं अपने साथ है तो कोई शक्ति आपकी गति को नहीं रोक सकती। कोई भी अभाव आपको सफल होने से नहीं रोक सकता। मनुष्य का अपना आत्म-विश्वास ही अकेला इतना शक्तिशाली साधन है जो उसे मंजिल पर पहुँचा सकता है।

दुनियाभर में नेतृत्व और शासन वही करते हैं जिन्हें खुदपर पर पूरा विश्वास होता है। अपने ऊपर अपार विश्वास रखकर ही वे संसार को प्रभावित करते हैं। आत्म- विश्वास के बल पर एक मनुष्य अफ्रीका के जंगलों में से भी भयंकर जंगली शेर को पकड़ लाता है। हिंसक जन्तुओं के बीच खड़ा होकर उन्हें नचाता है। लेकिन आत्म-विश्वासहीन व्यक्ति शहर के बीच एक कुत्ते से भी डर जाता है। बन्दर भी उसे भयभीत कर देता है। वस्तुतः सभी मनुष्यों का शरीर एक - सा ही होता है किन्तु जिस व्यक्ति के चेहरे से, आँखों से आत्म- विश्वास का अपार तेज प्रवाहित होता है, जिसके हृदय में आत्म-विश्वास का सम्बन्ध है, उसके समक्ष हिंसक जन्तु भी पालतू - सा बनकर दुम हिलाने लगता है। उसका वह तेज ही दूसरों पर जादू का सा असर डाल देता है।

भगवान राम अपने अजेय आत्म-विश्वास के बल पर ही वनवास की विपत्तियों को सह सके, रावण को सके। महात्मा गाँधी के अथाह आत्म - विश्वास ने विशाल ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंका। इसके विपरीत ऐसे भी लोग हैं जो अपने ऊपर होने वाले सामाजिक राजनैतिक जुल्मों को चुपचाप सहन कर लेते हैं।महर्षि दयानन्द ने उस समय जबकि सारा देश रूढ़िवाद, अन्ध-विश्वास, कुरीतियों, आडम्बरों में डूबा हुआ था, इनके विरुद्ध क्रान्ति की आवाज उठाई। उस समय अपने मिशन के लिए वे अकेले ही थे लेकिन उनके अपार आत्म-विश्वास ने राष्ट्र को नया मार्ग दिखाया। संसार का एक भी महापुरुष, यदि उसके जीवन से आत्म -विश्वास की सामर्थ्य निकाल दी जाय तो वह कुछ भी नहीं बचता।

आत्म-विश्वास मनुष्य के कार्यकलाप, उसके जीवन, व्यवहार, गति आदि में एक प्रकार की चैतन्यता, जीवट भर देता है। उसके समस्त जीवन को प्राणवान बना देता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों को देखने मात्र से अपना प्रभाव डालता है और लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं। उसमें एक प्रकार की दिव्यता महानता सी मालूम पड़ती है। यह और कुछ नहीं, उसका अपना अपार आत्म-विश्वास ही होता है। जो अपने पर विश्वास नहीं रख सकता, उस पर दूसरे भी विश्वास नहीं करते, न उसे कोई महत्व देते हैं।
एक सी परिस्थितियों, एक-से साधन सम्पत्ति, शिक्षा शक्ति होने पर भी कुछ व्यक्ति महान् बन जाते हैं और उनके दूसरे साथी जीवन की सामान्य आवश्यकताओं को भी पूरी नहीं कर पाते, उन्हें दर-दर भटकना पड़ता है, पराधीनता, तिरस्कार का जीवन बिताना पड़ता है। इसका कारण आत्म-विश्वास का अभाव ही है। जब कि पहले प्रकार के व्यक्तियों में यही शक्ति प्रधान होती है। आत्म-विश्वास वह ज्योति है जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व उसके गुण, कर्म, स्वभाव, जीवन सब प्रकाशयुक्त बन जाते हैं और सर्वत्र अपनी आभा छिटकाते हैं जब कि आत्म- विश्वास हीन व्यक्ति जीवन काटता है।

निस्सन्देह आत्म-विश्वास अपने उद्धार का एक महान् सम्बल हैं। निराशा में ही आशा का संचार करने वाला, दुःख को भी सुख में बदल डालने वाला, विपत्तियों में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाला, असफलताओं में भी सफलता की ओर अग्रसर करने वाला, तुच्छ से महान्, सामान्य से असामान्य बनाने वाला कौन - सा तत्व है? वह है -- मनुष्य का अपने ऊपर भरोसा, अपनी आत्म- शक्ति पर अटूट विश्वास?
आत्म-विश्वास मनुष्य की शक्तियों को संगठित करके उन्हें सही दिशा में लगाता है। वो लोग कभी हार नहीं मानते , जिनके अंदर आत्मविश्वास होता है। आपकी सभी शारीरिक व मानसिक शक्तियाँ आपके आत्म-विश्वास पर निर्भर करती हैं। जो अपनी शक्तियों का स्वामी है, नियन्त्रण कर्ता है उसे संसार में कभी भी कोई कमी नहीं रहती।
ये दुनिया कमजोर लोगो के लिए नहीं है ,बल्कि जो खुद को असहाय, दीनहीन , दुःखी समझता है कही न कही उसमे आत्म- विश्वास की कमी है। भाग्यहीन कौन? जिसका अपने विश्वास ने साथ छोड़ दिया हो । आत्म - विश्वासहीन व्यक्ति जीवित होते हुए भी जीवित नहीं होता। क्योंकि उत्साह, तेज, शक्ति, साहस, स्फूर्ति, आशा, उमंग के साथ जीना ही जीवन और ये सब वहीं रहते हैं, जहाँ आत्म-विश्वास होता है।
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
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