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Showing posts from February, 2017
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बाल विवाह : एक अभिशाप या पाप ????  रीतिका शुक्ला  अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो। प्रेम और ममता की मूरति, पूरी तो गढ़ जाने दो।। हम सबको अपना बचपन बहुत प्यारा है..आज भी अपना बचपन याद करते ही सब यादे ताजा हो जाती है कि कैसे हम मजे किया करते थे ,और शैतानियाँ करने पर कैसे घर पे माँ से डॉट खाते थे। सब कुछ कितना सुहाना सा था लेकिन सबका बचपन ऐसा नहीं होता। गुड्डा -गुड़िया की शादी कराने की उम्र में इन बच्चो की शादी करा दी जाती है। वो बच्चे जिनको शादी का मतलब भी नहीं पता होता है उनको इस बंधन में बाँध दिया जाता है।  अगर आकड़ो पर गौर करे तो तकरीबन हर साल 14 लाख से ज्यादा लड़कियों की शादी किशोरावस्था में कर दी जाती है। उनसे उनका बचपन तो छीना ही जाता हैं, साथ ही उनसे स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार को भी छिन लिया जाता हैं। अगर इस दिशा में कोई कठोर कदम न उठाए गए तो ऐसी लड़कियो की संख्या यो ही बढ़ती ही जाएगी।आज हर क्षेत्र में जहां लड़कियां अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं, वहीं आकड़ो के मुताबिक तो हर सात में से ...

अर्ली प्यूबर्टी समस्या है तो उपचार भी हैं

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वर्चुअ ल वर्ल्ड की दोस्ती : कितनी सच्ची कितनी झूठी

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 बहुत दिनों से मन था की इस पर कुछ लिखूँ। आज बैठ ही गई ये सोच कर की लिख ही डालना है कुछ। इसमें तो कोई शक नहीं कि तकनीकी विकास  ने हमारे जीवन को बाहर  ही नहीं बहुत अंदर तक प्रभावित किया है।  मुझे याद है की बचपन में  सुबह उठते ही  हमें अपनी हथेली देखने को कहा जाता था।  घर के बड़ो का कहना था की सारे ईश्वर हमारी हथेली में ही वास करते हैं इसलिए हमें पहले अपनी हथेली देखनी चाहिए।  फिर दो एक मंत्र थे जिनका जाप भी लगे हाथ हो जाता था। वक़्त बदला और आज हालत ये है की सुबह उठते ही सबसे पहले हम अपना मोबाइल ढूंढने लगते हैं। गुड मॉर्निंग या सुप्रभात से शुरू हुआ ये सिलसिला दिन भर तरह तरह के संदेशों चुटकुलों और रात में गुड नाईट पर जा कर ख़त्म होता है। सन्देशों के आदान प्रदान के बीच बहुत से रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं। वर्चुअल वर्ल्ड के ये रिश्ते कितने सच्चे कितने झूठे हैं इनकी पड़ताल ज़रूरी है।                                                ...
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जॉब इंटरव्यू के लिए कैसे हो आपके परिधान ? "First impression is the last impressio n" ये कहावत तो आप सबने सुनी ही होगी। लेकिन इसका  एक जॉब इंटरव्यू के लिहाज से बहुत ज्यादा महत्व है।  परिधान उस स्थान पर आपकी गंभीरता और विशेषता को व्यक्त करता है. इससे यह भी पता चलता है की वह आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है. साथ ही आपका परिधान उस  व्यक्ति विशेष , जिससे आप   मिलने जा रहे है , उसके साथ आपके संबंधों को भी दर्शाता है . यदि आप अपने किसी दोस्त की पार्टी में जाते है तो आप उसी के मुताबिक परिधानों का चयन  करते है , और दूसरी तरफ यदि आप किसी बिज़नेस मीटिंग में  जाते है तो फॉर्मल क्लोथ्स  पहनते है। जब हम किसी व्यक्ति विशेष से पहली बार मिलते है तो वह थोड़े ही समय में हमारे बारे में कुछ अनुमान लगा लेता है। और यह  हमारे अपीयरेंस , बॉडी लैंग्वेज ,मैंनेरिस्म और हमारे परिधानों के चयन  को देख कर लगा लिया जाता है। ये सही है की हमारा आचरण, हमारी अंतर्वैयक्तिक , बुद्धिमता और हमारी काबिलियत एक  इंटरव्यू के महत्वपूर्ण तत्व है, पर साथ ही हमार...
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कैसे करे अपने बॉडी टाइप के अनुसार परिधान का चयन   रीतिका शुक्ला  कल और आज में बहुत कुछ बदल गया है  और इसमें सबसे ज्यादा बदलाव महिलाओ की सोच में आया है।  अब महिलाये अपने लुक्स को ले कर बहुत सजग हो गयी  है लेकिन आज की तारीख में कई बार अपने बॉडी शेप के हिसाब से कपड़े चूज करना बहुत मुश्किल हो जाता है, लेकिन थोड़ी सी गाइडंस और कुछ टिप्स से  आपकी ये  मुश्किल काफी हद तक आसान हो सकती है। सच तो ये है कि सभी महिलाओ की ये कॉमन प्रॉब्लम है कि उनको यह पता नहीं होता कि उनकी बॉडी टाइप को क्या सूट करेगा। एक और बात सभी महिलाओ में कॉमन है , वो ये  है कि हम सभी एक फैबुलस  वार्डरॉब चाहते हैं और उसके लिए हम एक से एक नई ड्रेस, एक्सेसरीज़ इत्यादि खरीदते हैं। फिर भी कहीं जाने के लिए जब आप तैयार होती हैं तो लगता है कि मेरे पास तो कुछ भी अच्छा नहीं , और आप कंफ्यूज हो जाती है क्या पहनू । इसकी एक वजह आपका अपने बॉडी शेप के हिसाब से कपड़े नहीं पहनना भी हो सकता है।कही न कही हम सब अपने बॉडी शेप से अच्छी तरह वाकिफ नहीं होते है जबकि अच...
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                                                 काश उठें हम भी गुनहगारों के बीच                                         मीर तक़ी "मीर" (   शायर   )   परिचय - ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी   उर्फ   मीर तकी "मीर"   ( 1723   - 20 सितम्बर   1810 )   उर्दू   एवं   फ़ारसी   भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो।   अहमद शाह अब्दाली   और   नादिरशाह   के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी   मीर   ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। )      काश उठें हम भी गुनहगारों के बीच      हों जो रहमत के सज़ा-वारो...
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क्योकि दाग अच्छे नहीं है........   रीतिका शुक्ला  "क्योकि दाग अच्छे  है ", ये एड  आपने बहुत बार देखा होगा...लेकिन मेरा आप सब से एक ही सवाल है कि क्या सच में दाग अच्छे होते है ????? आज हम यहाँ कपड़ो के दाग की नहीं ,बल्कि राजीनीति में अपराधीकरण की बात रहे है।  दागी नेताओं की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। जो आम जनता के साथ -साथ देश के हित में नहीं है। हर राजनितिक दल ने बड़ी संख्या में दागियों को टिकट दिया है, लेकिन आखिर क्यों इन नेताओ को चुनाव लड़ने का मौका मिलता है। शायद मेरी बात सुन कर आपको आश्चर्य हो ,लेकिन  इसका कारण भी  कही न कही  हम ही है।                गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने कई बार यह कोशिश की है , कि राजनीतिक दल कम से कम उन लोगों को प्रत्याशी बनाने से बचें, जिनके खिलाफ दायर आरोप पत्र यह इंगित करता हो कि दोषी पाए जाने की स्थिति में उन्हें पांच साल या इससे अधिक की सजा हो सकती है।  लेकिन नेतागण निर्वाचन आयोग की पहल को नाकाम भी करते रहे और देश को यह उपदेश भी दे...
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चक दे इंडिया : भारत ने रचा इतिहास     रीतिका शुक्ला अब दुनिया में कोई भी नहीं है , इसरो की टक्कर में।   अंतरिक्ष में भारत ने   एक साथ 104 उपग्रह छोडक़र रचा इतिहास। भारत का अंतरिक्षीय अनुभव बहुत पुराना है, जब रॉकेट को आतिशबाजी के रूप में पहली बार प्रयोग में लाया गया, जो की पडौसी देश चीन का तकनीकी आविष्कार था और तब दोनों देशों में रेशम मार्ग से विचारों एवं वस्तुओं का आदान प्रदान हुआ करता था। जब टीपू सुल्तान द्वारा मैसूर युद्ध में अंग्रेजों को खधेडने में रॉकेट के प्रयोग को देखकर विलियम कंग्रीव प्रभावित हुआ, तो उसने 1804 में कंग्रीव रॉकेट का आविष्कार किया, जो की आज के आधुनिक तोपखानों की देन माना जाता है। 1947 में अंग्रेजों की बेडियों से मुक्त होने के बाद, भारतीय वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ भारत की रॉकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र में उपयोग, एवं अनुसंधान एवं विकास की संभाव्यता की वजह से विख्यात हुए। भारत जनसांख्यिकीय दृष्टि से विशाल होने की वजह से, दूरसंचार के क्षेत्र में कृत्रिम उपग्रहों की प्रार्थमिक संभाव्यता को देखते हुए, भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान स...
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ज़िन्दगी ना मिलेंगी दोबारा .....   रीतिका शुक्ला   "सावधानी हटी दुर्घटना घटी।"   आखिर क्यों हमारे लिए सड़क हादसा एक ऐसा खतरा है जिससे कोई भी कभी भी सुरक्षित नहीं।आज सुबह ही मैंने एक रोड एक्सीडेंट देखा। घटनास्थल पर बहुत भीड़ थी , वहाँ पुलिस और एम्बुलेंस भी मौजूद थी ।जिस व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था ,वो सड़क के किनारे पड़ा हुआ था। उस आदमी ने हेलमेट नहीं पहन रखा था। और अब  उसे हेलमेट पहनने के आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी क्योकि बहुत देर हो चुकी थी ।शायद हम में से अधिकांश लोग हेलमेट नहीं पहनते , बस चलान के भय से हेलमेट को हाथ में या साइड मिरर में तांग के चलते है । इस देश की यह सबसे बड़ी विडम्बना है कि यहाँ लोगो को अपने गलतियों का एहसास तो होता है, पर तब तक बहुत देर हो जाते है । हेलमेट का काम आपके सिर को बचाना है और मौत को आने में एक सेकेंड का भी टाइम नहीं लगता । आपने कभी सोचा है कि ऐसा हुआ तो क्या यमराज से बोलेगे..... ''भाई साहब जरा एक मिनट रुक जाइये मैं हेलमेट पहन लूँ ।'' आप भी लोग सोच रहे होंगे कि ये कैसे लड़की है जो मौत का मज़ाक बना ...

देयर इज़ नो ऑनर इन किलिंग

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 कल वैलेंटाइन डे था यानी प्यार का दिन।  सोशल मीडिया से लेकर बाजार तक इसके खुमार में गिरफ्त था। पिछले एक हफ्ते में  फूल चॉक्लेट और टेडी खूब बिके। लोगों ने प्रेम गीत गाये प्यार का इज़हार किया।  हमने भी इस बहती गंगा में हाथ धोये और दूसरे  मुद्दों को किनारे रख  कर केवल प्रेम को अपने ब्लॉग में तरजीह दी।  लेकिन इन सारी शोशेबाजियों के बीच कुछ मूलभूत सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। कुछ ऐसे सवाल जिनसे हम सब कभी कभी न ज़रूर टकराते हैं लेकिन हम उनको अक्सर नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ जाते हैं।                   कुछ दिन पहले मैंने फिल्म NH 10 देखी।  जिन्होंने भी ये फिल्म देखी  होगी  उन्हें याद होगा कि  इस फिल्म की शुरुआत का एक घंटा  कितना डरावना है। इस  एक घंटे में  एक तरह से  ऑनर किलिंग का लाइव टेलीकास्ट होता है। जिसके गवाह भूलवश  फिल्म के नायक नायिका बन जाते हैं। यहीं से उनके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी की शुरुआत हो जाती है जिसका अंत नायक की मृत्यु और फिर नायिका द्वारा लिए ...
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फूलों के रंग से, दिल की कलम से..........   रीतिका शुक्ला   फूलों के रंग से, दिल की कलम से तुझको लिखी रोज़ पाती कैसे बताऊँ, किस किस तरह से पल पल मुझे तू सताती तेरे ही सपने, लेकर के सोया तेरी ही यादों में जागा तेरे खयालों में उलझा रहा यूँ जैसे के माला में धागा .......  हाँ, बादल, बिजली, चंदन, पानी जैसा अपना प्यार   है  लेना होगा जनम हमें कई कई बार.........  ये कुछ ऎसी लाइन्स है , जिनको सुन के मुझे लगता था कि  प्यार कितना अदभुत एहसास है।प्यार खुदगर्ज नहीं होता , बल्कि अपने  प्यार के लिए  इन्सान  किसी  भी हद तक जा सकता है। लैला - मजनू , हीर - राँझा  वो लोग है जिनके प्यार  की मिसाल आज भी दी  जाती है ,और दी भी क्यों न जाए आखिर इन्होंने अपने प्यार के लिए मौत को भी हँसते - हँसते गले लगा लिया। प्यार में पूरे समाज से लड़ने की हिम्मत होती है। ये आज की तरह भौतिक वस्तुओ का मोहताज नहीं है। इसको सिर्फ महसूस किया जा सकता है। पर आज के दौर में मुझे ऐसा प्यार नहीं दिखता । अब प्यार सिर्फ...