चक दे इंडिया : भारत ने रचा इतिहास 


  रीतिका शुक्ला


अब दुनिया में कोई भी नहीं है , इसरो की टक्कर में। अंतरिक्ष में भारत ने  एक साथ 104 उपग्रह छोडक़र रचा इतिहास।

भारत का अंतरिक्षीय अनुभव बहुत पुराना है, जब रॉकेट को आतिशबाजी के रूप में पहली बार प्रयोग में लाया गया, जो की पडौसी देश चीन का तकनीकी आविष्कार था और तब दोनों देशों में रेशम मार्ग से विचारों एवं वस्तुओं का आदान प्रदान हुआ करता था। जब टीपू सुल्तान द्वारा मैसूर युद्ध में अंग्रेजों को खधेडने में रॉकेट के प्रयोग को देखकर विलियम कंग्रीव प्रभावित हुआ, तो उसने 1804 में कंग्रीव रॉकेट का आविष्कार किया, जो की आज के आधुनिक तोपखानों की देन माना जाता है। 1947 में अंग्रेजों की बेडियों से मुक्त होने के बाद, भारतीय वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ भारत की रॉकेट तकनीक के सुरक्षा क्षेत्र में उपयोग, एवं अनुसंधान एवं विकास की संभाव्यता की वजह से विख्यात हुए। भारत जनसांख्यिकीय दृष्टि से विशाल होने की वजह से, दूरसंचार के क्षेत्र में कृत्रिम उपग्रहों की प्रार्थमिक संभाव्यता को देखते हुए, भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना की गई।
आज दुनिया को भारत के  रिकॉर्ड उपलब्धि पर आश्चर्य है। विदेशी मीडिया उसे ‘सलाम इंडिया’ बोल रही है 
। ये हर भारतीय के लिए ख़ुशी का पल है। मंगलयान की महान कामयाबी के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो ने 15 फरवरी 2017  को सफलता का जो परचम फहराया है उसे पूरी दुनिया आश्चर्य की नज़र से देख रही है। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दी है। बहुत कम खर्च पर मंगलयान छोड़ने के बाद एक साथ 104 उपग्रहों की रिकॉर्ड लांचिंग करने वाले इसरो ने  दुनिया में भारत का नाम रोश न किया  है। लेकिन दुनिया को यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि इसरो ने अपने सफर की शुरूआत साइकल और बैलगाड़ी से की थी।जी है हम कोई मजाक नहीं कर रहे  यह हकीकत है ।
                          गौरतलब है कि  इसरो की स्थापना डॉ. विक्रम साराभाई द्धारा 15 अगस्त 1969 में की  गई थी। तब देश के वैज्ञानिक पहला रॉकेट को साइकिल से प्रक्षेपण स्थल तक ले गए थे। दूसरा रॉकेट काफी भारी और बड़ा था इसलिए उसे बैलगाड़ी पर लादकर प्रक्षेपण स्थल तक ले जाया गया था । उस वक्त नारियल के पेड़ों से लांचिंग पैड बनाया गया था। अमेरिकी मीडिया ने भी  माना कि तब शायद किसी को यह नहीं पता था कि आगे चलकर इसरो का हाथ थामना दुनिया के किसी भी देश के लिए आसान नहीं रह जाएगा। प्रसिद्ध अखबार ‘दि वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने लिखा है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने रूस को भी मात दे दी है।
               वही ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने अंतरिक्ष के इस सफर को ‘सलाम इंडिया’ कहते हुए सराहना की। ‘सीएनएन’ ने तो यहाँ तक कह दिया है कि अब आप अमेरिका वर्सेस रूस को भूल जाइए क्योंकि मैदान में भारत आ चुका है।वही जर्मनी की प्रख्यात रेडियो सेवा ‘दाइचे वेले’ ने भारत द्वारा 104 सेटेलाइटों की लांचिंग के तुरंत बाद अपने समाचारों में कहा कि - ‘भारत ने बड़ा जोखिम उठाया है क्योंकि असफलता आलोचना का तूफान लेकर आती, लेकिन इसरो ने सफलता का इतिहास रचकर दुनिया के ताकतवर देशों को चुनौती दे दी है।’दुनिया के हर कोने में भारत की तारीफ हो रही है,मार्ग में बेहद कठिनाइयां आई लेकिन भारतीय वैज्ञानिको ने हार नहीं मानी।
हर तरफ भारत की जय हो रही है। चीन की समाचार एजेंसी ‘सिन्हुआ’ ने भारत द्वारा रूस का रिकॉर्ड तोड़ने की तारीफ की है।वही  लंदन के ‘टाइम्स’ समाचार पत्र ने कहा है कि दुनिया के अंतरिक्ष क्लब में भारत ने जोरदार ढंग से एंट्री की है। यूके के ‘गार्जियन’ समाचार पत्र ने टिप्पणी की कि भारत अंतरिक्ष में एक साथ रिकॉर्ड उपग्रहों को छोड़कर निजी स्पेस बाजार में गंभीर खिलाड़ी के रूप में आगे बढ़ा है। ‘बीबीसी’ ने कहा कि आज का सफलता इस बात का संकेत है कि भारत अंतरिक्ष बाजार के अरबों डॉलर के बाजार में तेजी से उभरेगा।

 क्या है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ???


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बेंगलुरू कर्नाटक में है। संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।
1969 में स्थापित, इसरो अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके करीबी सहयोगी और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से 1962 में स्थापित किया गया। भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, जो सोवियत संघ द्वारा शुरू किया गया था यह गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था बनाया। 1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारतीय-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी -3 बन गया जिस्से कक्षा में स्थापित किया गया।तब से अब तक इसरो के अनुसंधान से भारत का सर फक्र से ऊपर उठा है ।


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