क्योंकि आप लखनऊ में है ....


आज का लखनऊ कभी अवध कहलाता था ।नवाबो का शहर अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ संजोये हुए है। भारत के उत्कृष्टतम शहरों में गिने जाने वाले लखनऊ की संस्कृति में भावनाओं की गर्माहट के साथ उच्च श्रेणी का सौजन्य एवं प्रेम भी है। लखनऊ के समाज में नवाबों के समय से ही पहले आप वाली शैली समायी हुई है।कहते है की पहले आप पहले आप के चक्कर नवाब साहब की गाडी छूट गए थी, हालांकि आज स्वार्थी आधुनिक शैली की पदचाप सुनायी देती है, किंतु फिर भी शहर की जनसंख्या का एक भाग इस तहजीब को संभाले हुए है। यह तहजीब यहां दो विशाल धर्मों के लोगों को एक समान संस्कृति से बांधती है इसलिए इसे गंगा-जमुनी संस्कृति कहते है।
लखनऊ में हिन्दी एवं उर्दु, दोनों ही भाषा बोली जाती हैं, किंतु उर्दु को यहां सदियों से खास महत्त्व प्राप्त रहा है। जब दिल्ली खतरे में पड़ी तब बहुत से शायरो  ने लखनऊ का रुख किया। तब उर्दु शायरी के दो ठिकाने हो गये- दिल्ली  और लखनऊ। जहां दिल्ली

 सूफ़ी शायरी का केन्द्र बनी, वहीं लखनऊ गज़ल विलासिता और इश्क-मुश्क का अभिप्राय बन गया।जैसे नवाबों के काल में उर्दु खूब पनपी एवं भारत की तहजीब वाली भाषा के रूप में उभरी। यहां बहुत से हिन्दू कवि एवं मुस्लिम शायर हुए हैं, जैसे बृजनारायण चकबस्त, ख्वाजा हैदर अली आतिश, विनय कुमार सरोज, आमिर मीनाई, मिर्ज़ा हादी रुसवा, नासिख, दयाशंकर कौल नसीम, मुसाहफ़ी, इनशा, सफ़ी लखनवी और मीर तकी "मीर" तो प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने उर्दु शायरी तथा लखनवी भाषा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।लखनऊ शिया संस्कृति के लिए विश्व के महान शहरों में से एक है। मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर उर्दु शिया गद्य में मर्सिया शैली के लिएप रसिद्ध रहे हैं। मर्सिया इमाम हुसैन की कर्बला के युद्ध में शहादत का बयान करता है, जिसे मुहर्रमके अवसर पर गाया जाता है। काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था, उर्दु शायरी से खासे प्रभावित थे, एवं बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। कई निकटवर्ती कस्बों जैसे काकोरी, दरयाबाद, बाराबंकी, रुदौली एवं मलिहाबाद ने कई उर्दु शायरों को जन्म दिया है। इनमें से कुछ हैं मोहसिन काकोरवी, मजाज़, खुमार बाराबंकवी एवं जोश मलिहाबादी। 

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