क्योकि दाग अच्छे नहीं है........
रीतिका शुक्ला
"क्योकि दाग अच्छे है ", ये एड आपने बहुत बार देखा होगा...लेकिन मेरा आप सब से एक ही सवाल है कि क्या सच में दाग अच्छे होते है ????? आज हम यहाँ कपड़ो के दाग की नहीं ,बल्कि राजीनीति में अपराधीकरण की बात रहे है। दागी नेताओं की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। जो आम जनता के साथ -साथ देश के हित में नहीं है। हर राजनितिक दल ने बड़ी संख्या में दागियों को टिकट दिया है, लेकिन आखिर क्यों इन नेताओ को चुनाव लड़ने का मौका मिलता है। शायद मेरी बात सुन कर आपको आश्चर्य हो ,लेकिन इसका कारण भी कही न कही हम ही है।
गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने कई बार यह कोशिश की है , कि राजनीतिक दल कम से कम उन लोगों को प्रत्याशी बनाने से बचें, जिनके खिलाफ दायर आरोप पत्र यह इंगित करता हो कि दोषी पाए जाने की स्थिति में उन्हें पांच साल या इससे अधिक की सजा हो सकती है। लेकिन नेतागण निर्वाचन आयोग की पहल को नाकाम भी करते रहे और देश को यह उपदेश भी देते रहे कि हम राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ हैं।वही जनता भी ऐसे आपराधिक छवि के लोगो को जिताती रही है। शायद यही कारण है कि राजनीतिक दल बाहुबलियो को अपना प्रत्याशी बनाते है। राजनीति का अपराधीकरण जनतंत्र पर कलंक है। अपराधीकरण की निंदा तो सब करते हैं, लेकिन चुनाव आते ही उन्हें प्रत्याशी भी बनाते हैं।यह राजनीति के दोहरे मापदण्ड है । राजनीती में माफिया होना उनका अतिरिक्त गुण होता है। उनका जीतना निश्चित होता है।ऐसे में अनेक प्रबुद्ध जनता को इसके लिए दोष देते हैं कि जनता ही अपराधियों को चुनती है और यह बिलकुल सत्य है। हमारा राष्ट्र अपराधी जन-प्रतिनिधि नहीं चाहता है । न्यायालय ने राष्ट्र की इच्छा और संविधान की भावना को ही अभिव्यक्ति दी है। हर बार हमारे गलत चयन का खामियाजा देश को चुकाना पड़ता है।
हमारे देश में नेताओं और विशेष रूप से बाहुबली नेताओं को सजा मिलना एक कठिन काम है। आमतौर पर उनके खिलाफ लोग शिकायत करने से बहुत डरते हैं और यदि शिकायत हो भी जाती है तो अदालतों में उनके मामले वर्षों तक खिंचते रहते हैं। खैर ये तो हमारे न्यायालय की विशेषता है ,की यहाँ तारीख पे तारीख मिलती है।
खैर इस दौरान आपराधिक प्रवत्ति के राजनीतिज्ञ यह सफाई देते हुए चुनाव लड़ते और जीतते रहते हैं कि उन्हें राजनीतिक बदले की भावना से फंसाया जा रहा है। हालांकि आम जनता जान रही होती है कि ये नेता भ्रष्ट अथवा आपराधिक प्रवृत्ति का है, लेकिन कई बार उसके सामने ऐसे ही नेता प्रत्याशी के रूप में होते हैं। इस स्थिति में जनता को चाहिए कि नेता प्रत्याशी के बारे में पूरी जानकारी करे ,तब वोट दे। क्योकि आपका एक वोट बहुत अमूल्य है, इसपर हमारे देश का भविष्य निर्भर करता है।
जिन नेताओ पर देश और लोगो की बेहतरी का जिम्मा है यदि वही लोग अपराध के दलदल में धंसे हैं तो "हर डाल पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा" वाली बात है। और यह बहुत चिंताजनक बात है। ...ये आखिरी मौका है जब आप सोच सकते है कि कौन आपका वोट पाने का असल हक़दार है।
क्या कहते है 2012 के आपराधिक चुनावी आंकड़े

अलीगंज से सपा विधायक रामेश्वर सिंह पर 27 मामले दर्ज हैं और वे भी इस लिस्ट में हैं। सिरसागंज से सपा विधायक हरि ओम पर कुल 16 संगीन मामले दर्ज हैं। ज्ञानपुर के सपा विधायक विजय कुमार पर कुल 25 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। कौमी एकता दल के मऊ विधायक मुख्तार अंसारी पर भी 15 संगीन मामले दर्ज हैं। लखनऊ सेंट्रल से विधानसभा पहुंचे सपा नेता रविदास मेहरोत्रा पर कुल 17 मामले दर्ज हैं। सपा के ही एक अन्य नेता और अमरोहा से विधायक मेहबूब अली पर 15 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सिराथु से भाजपा विधायक पर कुल 9 संगीन मामले दर्ज हैं।
और ये हम नहीं आंकड़े कहते है किस तरह से हर बार ऐसे नेता जीतते है , और इनको कोई और नहीं..... हम लोग जिताते है।
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