वेंटिलेटर पर भारतीय चिकित्सा व्यवस्था: नृपेंद्र बाल्मीकि
नृपेंद्र एक युवा और संभावनाशील पत्रकार व लेखक हैं। वो पहले भी हमारे ब्लॉग के लिए लिख चुके हैं। चिकित्सा जगत की चुनौतियों , विडंबनाओं पर उनका ये लेख बहुत से सच उजागर करता है , बहुत से सवाल उठाता है। आइये पढ़ते हैं चिकित्सा जगत के विभिन पहलुओं पर प्रकाश डालता नृपेंद्र का ये आलेख।
मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में भारत उन देशों में शामिल हैं जहां चिकित्सा संस्थानों की भरमार है, जहां से प्रतिवर्ष हजारों विद्यार्थी डॉक्टर बनकर निकलते हैं। संख्या के आधार भारत को एक अच्छा खासा 'मेडिकल इंस्टिट्यूशन हब' कहा जा सकता है। 2017 में दर्ज शिक्षण सस्थानों की संख्या के अनुसार भारत में 460
टॉप 10 डेस्टिनेशन फॉर मेडिकल एजुकेशन
मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में विश्व के चुनिंदा 10 ऐसे देश हैं जिन्हें बेस्ट डेस्टिनेशन फॉर मेडिकल एजुकेशन के तौर पर चिन्हित किया गया है। जो विश्व को प्रतिवर्ष टॉप क्वालिटी के डॉक्टर्स प्रोवाइड कराते हैं। इन देशों में जर्मनी सबसे ऊपर है और अमेरिका दूसरे स्थान पर, जिसके बाद क्रम अनुसार इजरायल, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, नॉर्वे, स्वीडन, नीदरलैंड, और जापान शामिल हैं। भारत और अमेरिका के बीच अगर इस संबंध में
तुलना की जाए, तो हम पाएंगे कि जहां भारत सालाना 50,000 डॉक्टर पैदा कर रहा है वहीं अमेरिका से 28,000 डॉक्टर बनकर निकल रहे हैं। अमेरिका में मेडिकल शिक्षण संस्थानों की बात की जाए तो वहां 141 ऐसे मेडिकल संस्थान हैं जो एमडी (Doctor of Medicine) की उपाधि देते हैं और 31 डीओ (Doctor of Osteopathic Medicine) की । यानी मेडिकल शिक्षण संस्थानों की संख्या के आधार पर भारत अमेरिका से काफी उपर है लेकिन हैरत की बात है कि उपरोक्त टॉप 10 लिस्ट में भारत का नाम ही शामिल नहीं।
चिकित्सा का गिरता स्तर
मेडिकल शिक्षण संस्थानों की अधिकता होने के बावजूद भारत चिकित्सा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है, जहां डॉक्टरों की किल्लत के साथ अधिक शिक्षण संस्थान खोलने की नौबत आ रही है। 2016, इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 188 देशों की लिस्ट में भारत स्वास्थ के क्षेत्र में 143 स्थान पर है। इस क्षेत्र में भारत पाकिस्तान से आगे है, परन्तु श्रीलंका, चीन, सीरिया जैसे देशों से पीछे।
ऐसी क्या वजह है कि मेडिकल शिक्षण संस्थानों की प्रचुरता व सालाना बन रहे 50,000 डॉक्टरों की संख्या के बावजूद भारत में चिकित्सा का स्तर गिरते जा रहा है। MCI (भारतीय चिकित्सा परिषद ) के अनुसार भारत में
हर 1,681 मरीजों के लिए 1 डॉक्टर उपलब्ध है। सालाना हजारों डॉक्टर पैदा कर रहा भारत डॉक्टरों की किल्लत का सामना कर रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में देश इस कदर दयनीय हाल से गुजर रहा है कि यहां सही समय पर प्राथमिक चिकित्सा तक उपल्बध नहीं । ग्रामीण प्रत्रकारिता के अग्रणी डॉ. पी साईनाथ के अनुसार चिकित्सा मामले में ग्रामीण भारत का बूरा हाल है, यहां चिकित्सा कर्ज में बढ़ोतरी और प्राथमिक उपचार के अभाव में मौते निरंतर बढ़ रही हैं।
'THE HINDU' की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार 2001 में जिन 31 प्रतिशन डॉक्टरों ने खुद ऐलोपैथ का
डॉक्टर क्लेम किया उनकी योग्यता मात्र सैकण्डरी स्तर की थी। और 57 प्रतिशत ऐसे थे जिनके पास अपनी मेडिकल डिग्री तक नहीं थी। यानी उनके पास अपनी योग्यता का कोई प्रमाण नहीं था। जिसके बाद WHO ने अपनी रिपोर्ट में पाया की भारत स्वास्थ्य संबंधी उपचार मामलों में एक गंभीर स्थिति से गुजर रहा है। रिपोर्ट मे यह भी पाया गया कि सबसे दयनीय हालत ग्रामीण भारत की है जहां मात्र 18.8 प्रतिशत डॉक्टरों के पास एलोपैथ की डिग्री है।
भारतीय चिकित्सा परिषद MCI की सेक्रेटरी रीना नायर का कहना है कि कोई भी जो बिना रजिस्टर्ड मेडिकल क्वालिफिकेशन के चिकित्सा क्षेत्र में काम कर रहा है वो मिथ्या चिकित्सक की श्रेणी में गिना जाएगा। आम भाषा में फर्जी डॉक्टर ।
ब्रेन ड्रेन भारत में चिकित्सा के गिरते स्तर के बड़े कारणों में से एक है। मोटी रकम की लालच में देश से सालाना कई डॉक्टर अन्य देशों में पलायन कर जाते हैं। जिससे भारत में चिकित्सकों की कमी गंभीर समस्या बनकर उभरी है। MCI की रिपोर्ट के अनुसार 2013 से 2016 से बीच भारत से अन्य देश पलायन करने वालों
की संख्या 4,701 है जिन्होंने मेडिकल की डिग्री भारत से ही प्राप्त की । Indian Paediatric Neurology Associaltion के अनुसार भारत में सिर्फ 65 ही Paediatric (बाल चिकित्सक) Neurologist हैं।
महंगी चिकित्सा
भारत में चिकित्सा का खर्च दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, जिसकी सबसे बड़ी वजह दवा तथा उपकरण बनाने वाली कई कंपनियां द्वारा मरीजों से मोटी रकम वसूलना। 'आज तक' की रिपोर्ट के अनुसार मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियां दिल के मरीजों के लिए बनने वाले स्टेंट (डीईसी) के लिए 60,000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक वसूल रही हैं। कुछ तो इससे भी ज्यादा वसूलती हैं जबकि दिल में लगाए जाने वाले स्टेंट की कीमत यूरोप और यूके के विकसित देशों में भी 28 से 48 हजार रुपये तक ही होती है। भारत में निजी
अस्पतालों, क्लिनिकों की बढ़ती प्रचरता ने चिकित्सा की गुणवत्ता घटाने के साथ-साथ इसे काफी महंगा बना दिया है। निजी अस्पतालों में चिकित्सा इतनी महंगी हो गई है कि एक गरीब, मध्य वर्ग का परिवार यहां इलाज कराने में असमर्थ है।
अस्पतालों, क्लिनिकों की बढ़ती प्रचरता ने चिकित्सा की गुणवत्ता घटाने के साथ-साथ इसे काफी महंगा बना दिया है। निजी अस्पतालों में चिकित्सा इतनी महंगी हो गई है कि एक गरीब, मध्य वर्ग का परिवार यहां इलाज कराने में असमर्थ है।
भारत में चिकित्सा को आय सृजन का धंधा समझने वाले डॉक्टरों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस क्रम ऐसे भी लोग जुड़ गए हैं जिनका प्राथमिक उद्देश्य उपचार नहीं बल्कि पैसा कमाना है । जिसके लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। मुंबई में अब तक का सबसे बड़ा किडनी रैकेट वहां के हीरानंदानी अस्पताल के नाम दर्ज है। इस मामले में 5 डॉक्टरों को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार डॉक्टरों में अस्पताल के सीईओ और मेडिकल डायरेक्टर भी शामिल थे। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नकली रिश्तेदार बनाकर चल रहे इस किडनी रैकेट में 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। यह रैकट इतना बड़ा था कि इसमें कई राज्य के दलाल काम कर रहे थे। ऐसे कई रैकटों का भंडाफोड़ हो चुका है जिसमें चिकित्सा के नाम पर मानव अंगों की तस्करी करते कई डॉक्टर, दलाल पकड़े गए ।
चिकित्सा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार : व्यापम घोटाला
चिकित्सा के गिरते स्तर का एक बड़ा कारण इससे संबंधित भ्रष्टाचार। मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला देश का अबतक का सबसे बड़ा मेडिकल स्कैम माना जाता है। जिसके पीछे कई नेताओ, वरिष्ठ अधिकारियों, व्यवसायियों का हाथ बताया गया। यह एकमात्र घोटाला कई संदिग्ध मौतों का गवाह बना । जिसपर SIT गठित होने के बावजूद भी सही तरह से राज्य सरकार जांच नहीं करा पाई।
व्यावसायिक परीक्षा मंडल पर आरोप है यहां फर्जी तरीके से साठगांठ कर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में भर्तीयां कराई गईं। इस घोटाले के अंतर्गत सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार कर रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांटी गईं। व्यापमं घोटाले में सरकारी नौकरी में 1000 फर्जी भर्तियां और मेडिकल कॉलेज में 514 फर्जी भर्तियों की गईं । खुद सीएम शिवराज सिंह विधानसभा में स्वीकारा कि 1000 फर्जी भर्तियां की गईं हैं। व्यापमं घोटाले का खुलासा 2013 में तब हुआ, जब पुलिस ने MBBS की भर्ती परीक्षा में बैठे कुछ फर्जी छात्रों को गिरफ्तार किया, ये छात्र दूसरे छात्रों के नाम पर परीक्षा दे रहे थे। बाद में पता चला कि प्रदेश में सालों से एक बड़ा रैकेट चल रहा है, जो फर्जीवाड़ा कर छात्रों को MBBS में इसी तरह एडमिशन दिलाता है।
डीमैट घोटाला
10,000 करोड़ का प्रवेश घोटाला कराने वाला डीमैट (डेंटल और मेडिकल प्रवेश परीक्षा ) जून 2015 में तब सुर्खियों में आया जब डीमैट परीक्षा नियंत्रक, योगेश उपरीत को गिरफ्तार किया गया। योगेश उपरीत ने यह खुलासा SIT और STF के सामने किया कि 2009 से 2014 के बीच 10 हजार करोड़ का लेन-देन डीमैट से हुआ है। योगेश उपरीत 2003-2004 में व्यापमं के निदेशक भी रह चुके हैं । निजी मेडिकल कॉलेजों में
दाखिले में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के खिलाफ पहली बार शिकायत इंदौर निवासी RTI कार्यकर्ता और व्हिसलब्लोअर डॉ आनंद राय ने की। उन्होने 2015 में भारत के उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस कथित घोटाले में CBI जांच की मांग की थी। इस घोटाले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डीमैट घोटाले को व्यापम घोटाले से भी बदतर कहा।
दाखिले में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के खिलाफ पहली बार शिकायत इंदौर निवासी RTI कार्यकर्ता और व्हिसलब्लोअर डॉ आनंद राय ने की। उन्होने 2015 में भारत के उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस कथित घोटाले में CBI जांच की मांग की थी। इस घोटाले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डीमैट घोटाले को व्यापम घोटाले से भी बदतर कहा।
अंत में
उपरोक्त ये वो गंभीर कारण हैं जिसने भारत में हेल्थकेयर को निचे लाकर रख दिया है। भारत में शिक्षण संस्थानों की संख्या तो बढ़ती जा रही है पर हम इनमें गुणवत्ता को हासिल करने में नाकाम सिद्ध हुए हैं। हमारे आस पास ऐसे कई फर्जी डॉक्टर घूम रहे हैं जो उपचार के नाम पर मौत का धंधा कर रहे हैं। मोटी रकम की
लालच में पढ़ा लिखा शिक्षित वर्ग देश में नहीं बल्कि विदेशों में अपनी सेवा दे रहा है। हर साल भारत में मेडिकल की डिग्री लेने वाले कई छात्र विदेश पलायन कर जाते हैं। जिससे देश में योग्य डॉक्टरों की कमी हुई है। भारत में निजी अस्पतालों की बढ़ती संख्या, सरकारी अस्पतालों का गिरता स्तर देश के लिए बड़ी चुनौती है। जिसके विषय में गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। ये चिंतन तब ही सार्थक माना जाएगा जब इसमें व्यक्तिगत हित नहीं राष्ट्रहित को जोड़ा जाए ।
लालच में पढ़ा लिखा शिक्षित वर्ग देश में नहीं बल्कि विदेशों में अपनी सेवा दे रहा है। हर साल भारत में मेडिकल की डिग्री लेने वाले कई छात्र विदेश पलायन कर जाते हैं। जिससे देश में योग्य डॉक्टरों की कमी हुई है। भारत में निजी अस्पतालों की बढ़ती संख्या, सरकारी अस्पतालों का गिरता स्तर देश के लिए बड़ी चुनौती है। जिसके विषय में गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। ये चिंतन तब ही सार्थक माना जाएगा जब इसमें व्यक्तिगत हित नहीं राष्ट्रहित को जोड़ा जाए ।
प्रस्तुति: पूजा
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