गाथा अजरक प्रिंट की .....
रीतिका शुक्ला
फैशन वक़्त के साथ बदलता है ,लेकिन क्या कभी आपके जेहन में आता है कि मेरे वार्डरोब में वो परिधान जो मुझे कॉम्पलिमेंट तो करे ही ,साथ ही जिसका फैशन कभी आउट न हो। इस ब्लॉक प्रिंट को अजरक प्रिंट के नाम से जाना जाता है, जो गुजरात के कच्छ में बसे अज्रखपुर नामक के छोटे से गांव में की जाती है। इसकी खासियत इसके प्राकृतिक चटख रंगों से रंगे ब्लॉक प्रिट के कपड़ें है। अज्रख को अरबी भाषा में इंडिगो कहा जाता है, जिसका अर्थ नील का पौधा होता है। यह पौधा 1956 में कच्छ में आए भूकंप से पहले तक इलाके में हर तरफ दिखता था। लेकिन, कुछ शिल्पकारों की मानें तो अज्रख शब्द 'आज रख' से आया है।
इस प्रिंट को अज्रख के नाम से देश - विदेश में जाना जाता है, इसे बनाने में काफी समय व परिश्रम लगता है और यह एक लंबी प्रक्रिया है। गांव के सौ से अधिक परिवार इस शिल्प से जुड़े हुए हैं, जिसके बाद उच्चतम कोटि का कपड़ा तैयार होता है, और फिर इस पर फैशन की शीर्ष कंपनी का लेबल लगता है।
यह गांव बहुत पुराना नहीं है, लेकिन यह शिल्प 400 वर्षो से अधिक पुराना है। अज्रख प्रिंटर पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम कर रहे हैं ,उन्होंने अपने पूर्वजों की उस कला को आज तक संजो कर रखा है, जिसे उनके पूर्वज सिंध से लेकर यहां आए थे।
जहाँगीर जो अजरक प्रिंट के थोक व्यापारी है ,उन्होंने अजरक प्रिंट के बारे में बताया कि "प्राकृतिक रंगों के माध्यम से की जाने वाली पारंपरिक अज्रख प्रिटिंग 16 चरणों की प्रक्रिया है। इसमें 14 से 21 दिनों का समय लगता है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इसमें कितने रंग होंगे और ब्लॉक प्रिंट के कितने स्तरों का इस्तेमाल किया जाएगा।"
कपड़ों को डाई करने से पहले उन्हें पानी में पूरी रात भिगोया जाता है, ताकि उनमें से अतिरिक्त स्टार्च निकल जाए। इसके बाद उन्हें धूप में सुखाया जाता है। सूखने के बाद उन्हें मयोब्रालम रंग से रंगा जाता है, जिसके बाद फिर से उन्हें धूप में सूखने के लिए रख दिया जाता है।
इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद शिल्पकार पारंपरिक डिजाइनों वाले लकड़ी के ब्लॉक को चुनते हैं और फिर उन्हें गोंद की सहायता से सावधानीपूर्वक कपड़ों पर चिपकाया जाता है।अज्रख प्रिंटिग में कपड़े पर ब्लॉक रखने के बाद उसे दबाकर रखना होता है। इसी प्रकार शिल्पकार ब्लॉक्स को चुनते हैं, उन्हें रंगते हैं और सावधानीपूर्वक उन्हें कपड़ों पर रखकर दबाया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद कपड़ों को धोकर धूप में सुखाया जाता है।कपड़ों मे इस्तेमाल होने वाली सभी रंग प्राकृतिक तरीके से बनाए जाते हैं।
आज हमारी हस्तकला का हर तरफ बोलबाला है। बड़े - बड़े डिज़ाइनर भी अपनी डिज़ाइन में भारतीय हस्तकला का प्रयोग करते है। इस कला में से एक है अजरक प्रिंट। आज मै आपको इस प्रिंट से रूबरू कराऊंगी, जिसको देख कर आप भी मेरी तरह अजरक प्रिंट के दीवाने हो जाएगे।
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जब मैंने की अजरक प्रिंट की साड़ी के लिए मॉडलिंग , यह एक अलग अनुभव था जब मुझे ये मौका मिला |
इस प्रिंट को अज्रख के नाम से देश - विदेश में जाना जाता है, इसे बनाने में काफी समय व परिश्रम लगता है और यह एक लंबी प्रक्रिया है। गांव के सौ से अधिक परिवार इस शिल्प से जुड़े हुए हैं, जिसके बाद उच्चतम कोटि का कपड़ा तैयार होता है, और फिर इस पर फैशन की शीर्ष कंपनी का लेबल लगता है।
यह गांव बहुत पुराना नहीं है, लेकिन यह शिल्प 400 वर्षो से अधिक पुराना है। अज्रख प्रिंटर पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम कर रहे हैं ,उन्होंने अपने पूर्वजों की उस कला को आज तक संजो कर रखा है, जिसे उनके पूर्वज सिंध से लेकर यहां आए थे।
जहाँगीर जो अजरक प्रिंट के थोक व्यापारी है ,उन्होंने अजरक प्रिंट के बारे में बताया कि "प्राकृतिक रंगों के माध्यम से की जाने वाली पारंपरिक अज्रख प्रिटिंग 16 चरणों की प्रक्रिया है। इसमें 14 से 21 दिनों का समय लगता है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इसमें कितने रंग होंगे और ब्लॉक प्रिंट के कितने स्तरों का इस्तेमाल किया जाएगा।"
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अजरक प्रिंट के दुपट्टे |
इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद शिल्पकार पारंपरिक डिजाइनों वाले लकड़ी के ब्लॉक को चुनते हैं और फिर उन्हें गोंद की सहायता से सावधानीपूर्वक कपड़ों पर चिपकाया जाता है।अज्रख प्रिंटिग में कपड़े पर ब्लॉक रखने के बाद उसे दबाकर रखना होता है। इसी प्रकार शिल्पकार ब्लॉक्स को चुनते हैं, उन्हें रंगते हैं और सावधानीपूर्वक उन्हें कपड़ों पर रखकर दबाया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद कपड़ों को धोकर धूप में सुखाया जाता है।कपड़ों मे इस्तेमाल होने वाली सभी रंग प्राकृतिक तरीके से बनाए जाते हैं।
कैसे बनाई जाती है यह प्राकृतिक डाई -
अजरक प्रिंट में प्रयोग किये जाने वाले रंग प्राकृतिक होते है। लोहे के चूरे में गुड़ और बेसन मिलाकर काला रंग बनाया जाता है। गांव के एक अन्य शिल्पकार इस्माइल अनवर ने बताया कि इस रंग को बनाने में कम से कम 15 दिनों का समय लगता है। इमली के बीज और फिटकरी से लाल रंग बनाया जाता है।हल्दी से पीला रंग बनाया जाता है। और चूने का इस्तेमाल सफेद रंग बनाने के लिए किया जाता है।![]() |
दिल को लुभाने वाले ब्लॉक प्रिंट्स |
गौरतलब है कि अज्रख की गाथा हमेशा से इतनी रंगीन नहीं थी। इन शिल्पकारों के जीवन में भी एक बुरा समय आया था, जब सभी शिल्पकारों को अपना सब कुछ छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा और जीवन जीने के लिए फिरसे संसाधनों को जुटाना पड़ा।
जहाँगीर जी ने बताया, "आज हमारे शिल्प की बाजार में बहुत मांग है। आज दुनिया के बड़े-बड़े डिजाइनर हमारी कला के बारे में जानना चाहते हैं। डिजाइनर इंस्टीट्यूट से बहुत से बच्चे उनकी कला को सीखने के लिए आते हैं। दुनियाभर के सभी कारीगर उनकी प्रदर्शनी देखने आते हैं। "उन्होंने कहा कि उनका यह काम किसी भी मौसम में रुकता नहीं है, चाहे सर्दी हो या गर्मी। उनका यह काम अप्रैल महीने की तेज गर्मी में भी चलता रहता है, क्योंकि काम करने के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है।पूरी मेहनत और लगन से ये ब्लॉक प्रिंटेड फैब्रिक तैयार होते है। और ये मेहनत तब सफल होती है और आप इन प्रिंट्स के परिधानों को अपने वार्डरोब में शामिल करते है।
अगर आप भी ऐसा कुछ आर्डर करना चाहती है तो ज्यादा सोचिये नहीं क्योकि ये प्रिंट आपकी ख़ूबसूरती को और ज्यादा निखारेंगे।
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