तू मेरी परछाई है.....
“ यू आर बॉर्न टू ब्लॉसम” आप पैदा ही खिलने के लिए हुए है। ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपनी पुस्तक के ज़रिये ‘इन्हेरिटेंस’ की उन्ही विशेषताओ की बात की है, जो आपके खून मे होती है। यह विशेषताए आपके माता- पिता से आपमे स्वतः ही चली आती है। इसी बात को अपने क्षेत्रो मे प्रमाणित कर रहे है छोटे दिग्गज जो अपने खेल मे अपने पिता की झलक लेकर आगे बढ रहे है।
खेल वही, खिलाड़ी
नये
क्रिकेट के महान खिलाड़ी लाला अमरनाथ के बेटे
मोहिंदर अमरनाथ और सुरेंद्र अमरनाथ से चली आ रही यह प्रतिभा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तनांतरित
होती चली आ रही है। सुनील गावस्कर भी ऐसे ही महान खिलाड़ियो मे से एक है, जिनको पूरा विश्व लिटिल मास्टर के नाम से जानता है।उनके बेटे रोहन गावस्कर भी इसी क्षेत्र
मे अपनी पहचान बना रहे है। लेकिन अभी और पड़ाव बाकी है। ज़रुरी नही है कि पिता अच्छे
बल्लेबाज़ हो तो बेटा भी बल्लेबाज़ ही बनेगा। अर्जुन तेंदुलकर के लिये यही बात कही जा सकती
है। सचिन तेंदुलकर विश्व के महान बल्लेबाज़ जिनको लोग मास्टर ब्लास्टर के नाम से जानते
है, लेकिन बेटे ने गेंदबाज़ी मे अपना जौहर दिखाया है। पाकिस्तानी
तेज़ गेंदबाज़ वसीम अकरम ने कहा है कि,“ अर्जुन तेंदुलकर एक दिन
सफल फास्ट बॉलर बनेंगे। ये एक उदाहरण नही है। “दी वाल” कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ के
11 वर्षिये बेटे समित द्रविड़ ने भी पिता कि तरह ही छोटी सी उम्र मे बेंगलुरु यूनाइटेड
क्रिकेट क्लब की ओर से खेलना शुरु किया है। अभी से ही इस नन्हे खिलाड़ी मे उसके पिता
की झलक साफ देखने को मिल रही है।
ये बात केवल क्रिकेट मे ही देखने को नही मिल रही। कुश्ती जैसे खेल मे भी परिवार से ही पहलवान निकलकर आ रहे है। फिर ये बात मायने नही रखती की अखाड़े मे लड़की आयेगी या लड़का। अपने समय मे राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रहे महावीर सिंह फोगाट ने अखाड़े मे अपनी बेटियो को उतारा तो लोग देखते रह गये। गीता और बबीता फोगाट ने कुश्ती मे ना सिर्फ अपने पिता के विश्वास को प्रमाणित किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओ मे भी उम्दा प्रदर्शन करके देश का नाम रोशन किया है।

ये बात केवल क्रिकेट मे ही देखने को नही मिल रही। कुश्ती जैसे खेल मे भी परिवार से ही पहलवान निकलकर आ रहे है। फिर ये बात मायने नही रखती की अखाड़े मे लड़की आयेगी या लड़का। अपने समय मे राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रहे महावीर सिंह फोगाट ने अखाड़े मे अपनी बेटियो को उतारा तो लोग देखते रह गये। गीता और बबीता फोगाट ने कुश्ती मे ना सिर्फ अपने पिता के विश्वास को प्रमाणित किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओ मे भी उम्दा प्रदर्शन करके देश का नाम रोशन किया है।
मंज़िले और भी है
ऐसा नही है
कि परिवार की ही राह पर बच्चे चलते है। कुछ अपनी मंज़िल खुद तय करते है। ऐसे ही
खिलाड़ियो का रास्ता सशक्त करते है उनके अभिभावक। हो सकता है जिस खेल को उनके माता पिता
ने खेला हो, वो उनके बच्चो को रास नही आया हो। लेकिन उससे प्रेरणा ज़रूर मिली
होगी। तभी तो उनके अंदर भी एक खिलाड़ी का जज़्बा पैदा हुआ। ये अलग बात है कि उन्होने
खेल दूसरा चुना। प्रकाश पादुकोण बैडमिन्टन के मशहूर खिलाड़ी रह चुके है। उनकी एक बेटी
दीपिका पादुकोण ने जहॉ बॉलीवुड मे अपना नाम कमा रही है, वही उनकी
दूसरी बेटी अनीशा पादुकोण एक गोल्फर है। अनीशा अपने पिता से प्रेरित ज़रुर हुई लेकिन
खेल उन्होने उनसे बिल्कुल अलग चुना। धीरे धीरे ही सही लेकिन वो अपने खेल को निखारने
मे लगी हुई है। वही अपने समय के वॉलीबॉल खिलाड़ी पी. वी. रमन और पी.
विजया की बेटी पी.
वी. सिंधु जिन्होने हाल ही मे ओलम्पिक मे देश के लिये रजत पदक जीता है, उन्होने बैडमिन्टन मे अपना करियर
बनाया है। देश के लिये खेलते हुये सिंधु दिन प्रतिदिन नये मुकाम हासिल करती जा रही
है। ये गिने चुने कुछ नाम नही है, जो खेल मे अपना दम आज़मा रहे
है। ऐसे अनेक खिलाड़ी है, जिनको प्रेरणा उनके घर से ही मिली है।
परिवार का विश्वास
खेल को अपना जीवन समर्पित करने वाले खिलाड़ी ही अपने बच्चो के भीतर छिपी प्रतिभा को अच्छे से समझ सकते है। बच्चे भी परिवार के माहौल को देखते हुये ही इस क्षेत्र मे आगे कदम बढ़ाते है। जिसमे उनको परिवार का पूरा सहयोग मिलता है। परिवार के छोटे से भरोसे पर ये नन्हे खिलाड़ी उज्जवल भविष्य के सपने बुन्ने लगते है। और यही विश्वास ही उनको एक अच्छा खिलाड़ी बनने मे मद्दगार होता है। कोई भी खिलाड़ी एक दिन मे नही बनता है। इस सब के पीछे परिवार का वो सहयोग जिसमे माता-पिता मुख्य भूमिका मे होते है सबसे ज़्यादा महत्व रखता है।
खेल चलता रहता है, बस खिलाड़ी के चेहरे बदलते रहते है। इसी तरह दुनिया मे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने उन्ही के बीच मे से कुछ चमकते सितारे निकल कर आ रहे है। जो निरंतर खेल को आगे लेकर जाते रहेंगे। बस देखना यही है कि जो मुकाम उनके पिता या माता ने हासिल किया है, क्या उनके बच्चे भी वही बुलंदिया पा सकेंगे। कुछ के जवाब मिल गये है। लेकिन कुछ के मिलना बाकी है।
परिवार का विश्वास
खेल को अपना जीवन समर्पित करने वाले खिलाड़ी ही अपने बच्चो के भीतर छिपी प्रतिभा को अच्छे से समझ सकते है। बच्चे भी परिवार के माहौल को देखते हुये ही इस क्षेत्र मे आगे कदम बढ़ाते है। जिसमे उनको परिवार का पूरा सहयोग मिलता है। परिवार के छोटे से भरोसे पर ये नन्हे खिलाड़ी उज्जवल भविष्य के सपने बुन्ने लगते है। और यही विश्वास ही उनको एक अच्छा खिलाड़ी बनने मे मद्दगार होता है। कोई भी खिलाड़ी एक दिन मे नही बनता है। इस सब के पीछे परिवार का वो सहयोग जिसमे माता-पिता मुख्य भूमिका मे होते है सबसे ज़्यादा महत्व रखता है।
खेल चलता रहता है, बस खिलाड़ी के चेहरे बदलते रहते है। इसी तरह दुनिया मे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने उन्ही के बीच मे से कुछ चमकते सितारे निकल कर आ रहे है। जो निरंतर खेल को आगे लेकर जाते रहेंगे। बस देखना यही है कि जो मुकाम उनके पिता या माता ने हासिल किया है, क्या उनके बच्चे भी वही बुलंदिया पा सकेंगे। कुछ के जवाब मिल गये है। लेकिन कुछ के मिलना बाकी है।
खेलोगे, कूदोगे... बनोगे नवाब
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