कथक के स्वरुप को मरने से बचाना होगा : कांतिका मिश्रा
कांतिका, ये नाम जब पहली बार सुना तो सबसे पहले मन में यही सवाल आया की आखिर इस नाम का मतलब क्या है। ये भी पता चला की ये एक कथक नृत्यांगना हैं। मन में ख्याल आया कि कोई उम्रदराज़ महिला होंगी कुछ पके हुए अनुभवों वाली। लेकिन जब मुलाक़ात हुई तो मेरे ये सारे पूर्वाग्रह धरे के धरे रह गए। वास्तव में कांतिका एक युवा नृत्यांगना हैं जो कत्थक को एक नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। अपने ब्लॉग के सिलसिले में कांतिका से हुई ये मुलाक़ात बेहद रोचक और अर्थपूर्ण रही। अपनी पूरी बातचीत के दौरान हमने पाया की कांतिका ऊर्जा, प्रतिभा और ज्ञान से भरी हुई एक ऐसी युवा नृत्यांगना हैं जो सिर्फ नृत्य ही नहीं करती हैं बल्कि समाज जीवन और कला के विभिन्न पहलुओं के प्रति जागरूक भी हैं-
कांतिका सबसे पहले तो आप हमें अपने नाम का मतलब बताइये।
मुझे अपना नाम हमेशा से ही बिलकुल अलग लगता था। मैं अक्सर सोचती थी की आखिर मेरे नाम का मतलब है क्या। जब मैंने अपने घर में सबसे जाने की कोशिश की तो सबने यही बताया की काँति का मतलब होता है रौनक या रौशनी जैसे कहते हैं की चेहरे पर कांति आ गई बस उसी से सम्बन्ध है मेरे नाम का।
कांतिका अपने बारे में पहले बताओ फिर हम आगे और बात करते हैं।
मेरी बेसिक पढाई लिखाई लखनऊ से ही हुई है। मैंने प्रयाग संगीत समिति से इलाहाबाद से प्रभाकर किया है और खैरागढ़ यूनिवर्सिटी, छत्तीसगढ़ से मास्टर ऑफ म्यूजिक एंड डांस किया है। मैं एक प्रोफेशनल कथक डांसर टीचर और कोरिओग्राफर हूँ। मैं इंडिया के कई सारे शहरों के अलावा फ्रांस
कांतिका कथक में आपकी रुचि कैसे हुई ?
परिवार के माहौल में ही संगीत रचा बसा था तो मैं इससे पीछे कैसे रहती। हमारे परिवार की मैं तेरहवी पीढ़ी हूं और कथक मे दूसरी। पहली पीढ़ी मेरे पिता जी थे जो कथक को आगे बढ़ा रहे थे। इससे पहले हमारे दादा जी तबला वादक थे। उससे पहले जो उनके पिता जी थे वो सितार वादक थे। ऐसे ही हमारी ये तेरहवी पीढ़ी है। सभी शास्त्रीय संगीत मे ही थे।
आपके पिता पं. अर्जुन मिश्रा की कथक में कैसे रुचि हो गई जबकि उनके पिता तो तबला वादक रहे थे ?
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कथक को उसका मुक़ाम दिलाने के लिए सदैव प्रयास रत रहे कांतिका के पिता व गुरु पंडित अर्जुन मिश्रा |
तो सब आता है।" तब मेरे पिता जी ने कहा कि जो "थई तत था" करके नज़र उठाते है। उसकी जो खूबसुरती है मुझे वो सीखना है। तब दो साल उन्होनें वहां सीखा। दो साल बाद महाराज जी के शब्द थे " तू जब आया था यहां तो सूखा पेड़ था। आज दो साल बाद मुझे एक सूखी पत्ती भी तेरे तेरेमे नज़र नही आ रही। तू इतना हरा भरा हो गया है। इसके बाद से उनका कथक डांस का सिलसिला शुरु हो गया।फिर मेरे पिताजी कदम्ब ( अहमदाबाद ) गए वहां कुमुदनी लाख्या जी के सेंटर में टीचर हुए। फिर वहां से पापा कथक केंद्र वापस आये। वहां उन्होंने बिरजू महराज जी के बहुत सारे शोज किये।
उस समय बिरजू महाराज जी के मन में हमेशा ये बात आती रहती थी की उनकी जन्मस्थली लखनऊ में कथक के प्रचार प्रसार के लिए वो कुछ भी नहीं कर पा रहे। चूँकि महराज जी की पहले की पीढ़ी यहीं लखनऊ में ही थी और बिरजू महराज दिल्ली शिफ्ट हो गए थे इसलिए वो चाहते थे की योग्य व्यक्ति लखनऊ में उनकी विरासत को आगे बढ़ाये। फिर उन्होंने मेरे पिताजी से कहा की तुम जाओ लखनऊ और वहां कथक की परंपरा को आगे बढ़ाओ। ये वर्ष 1992 की बात है। पिता जी महराज जी की बात को कैसे टाल सकते थे। वो लखनऊ आ गए यहाँ आ कर उन्होंने बहुत मेहनत की। आज देश विदेश में उनके सिखाये हुए शिष्यों की अलग पहचान है। दो साल पूर्व कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई। अब मैं , मेरी दीदी स्मृति मिश्रा टंडन और मेरे भैया पंडित अनुज मिश्रा जी और मेरी भाभी नेहा सिंह सेंगर उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
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कांतिका अपने भाई और प्रख्यात नर्तक पंडित अनुज मिश्रा के साथ, |
कथक के विषय में कुछ बताओ।
भगवान् शिव से सारी कलाओं की उत्पत्ति हुई है। ऐसा माना जाता है की उनके तांडव से कथक की उत्पत्ति हुई। कथा कहे सो कत्थक कहावे। ऋषि वालमिकी ने ये कला लव कुश को सिखाई थी। लवकुश ने राम की सभा में अपनी कथा सुनाने के लिए इसी विधा का सहारा लिया था फिर हम आते है आज के दौर में जैसा की हम सब जानते है की पहले मंदिरो में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। यहाँ लड़किया पूजा के दौरान भजन जाती थी और नृत्य करती थीं। लोग उनके नृत्य को देखने जाते थे।पर जब मुग़ल आये तो उन्होंने इन देवदासियों को बंदी बनाना शुरू कर दिया और इनको अपने दरबार में मनोरंजन के लिए रखा और अपनी ग़ज़लों और नज़्मों पर नृत्य कराने लगे। इस तरह कथक में मुग़ल शैली का समावेश हुआ।
वर्तमान समय में तुम कथक को कैसे और कहाँ पर देखती हो?
वर्तमान समय में लोग कथक के साथ फ्यूज़न करते हैं। कत्थक ही ऐसी एक नृत्य विधा है जिसके साथ बहुत से प्रयोग किये जा सकते हैं। किसी और नृत्य विधा के साथ इतने प्रयोग नहीं किये जा सकते। आजकल लोग आधुनिक हो गए हैं वो अपने आस पास घट रही चीज़ों से जल्दी रिलेट कर लेते हैं और वही देखना पसंद करते हैं। तो इसमें हम फ्यूज़न करते हैं। मेरे भैया अनुज मिश्रा ने इस पर बहुत काम किया। क्योंकि हम अक्सर विदेशों में भी परफॉर्म करने जाते हैं। तो फारनर्स को क्या समझ आएगा अगर हम टुकड़ा , परन कर रहे हैं। तो उनको समझाने के लिए हमने उनका डांस स्टाइल और अपना डांस स्टाइल मर्ज किया। जैसे हम करते हैं मयूर की गत। अब बारिश हो रही है , मयूर नृत्य कर रहे हैं तो ये तो सभी को समझ में आ सकता है।
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कांतिका एक भाव प्रवण मुद्रा में |
कथक को सरकार की तरफ से कितना सपोर्ट मिलता है ?
यहाँ इतनी संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन सारा स्पोंसरशिप सिर्फ एक संस्था को जा रहा है।हम जैसे लोग जो इस फील्ड में बहुत कुछ करना चाहते हैं सिर्फ इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि हमें सरकार की तरफ से उस तरह का सपोर्ट नहीं मिलता जो किसी भी क्लासिकल आर्ट को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है। ऐसा नहीं है कि सरकार के पास फंड्स नहीं हैं या वो कला को आगे नहीं बढ़ाना चाहती लेकिन जो बीच के लोग हैं जिनके हाथ में ये सब कुछ है वो सही लोगों तक इन फंड्स को पहुंचने नहीं देते। हमने इतने सारे फेस्टिवल्स किये , नृत्य उत्सव किये सब अपनी पॉकेट से किये। हमें कभी कोई सपोर्ट नहीं मिला। कहीं कोई छोटा मोटा योगदान हमें उन लोगों से मिला जिन्होंने हमारी कला को समझा। ये एक बहुत बड़ी वजह है लोगों के क्लासिकल डांस फॉर्म से हटने की। जब इंसान इतनी मेहनत कर रहा है और उसे कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा तो वो सोचता है की हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इसमें नहीं डालेंगे। क्योंकि जब हमें सपोर्ट नहीं मिल रहा तो उन्हें क्या मिलेगा। ये उपेक्षा कलाकार को मार रही हैं। कलाकार जब मरेगा तो कला कहाँ बचेगी। यहाँ तक की जो खानदानी लोग हैं वो भी कह रहे हैं की हम तो अपने नहीं डालेंगे अपने बच्चों को इसमें। ज़्यादातर लोगों को ये लगता है की हम इसमें इतनी मेहनत कर रहे हैं और हमें कुछ नहीं मिल रहा। अगर हम पढाई में इतनी मेहनत कर लेंगे तो हमारा करियर बन जायेगा। इसीलिए लोग आज क्लासिकल डांस फॉर्म से दूर होते जा रहे हैं।
और आम लोग किस तरह से देखते हैं इस कला को ? उनका कितना सपोर्ट मिलता है ?
हमारे यहाँ जो बच्चे सीखते हैं लोग 500 रुपये भी खर्च करने में हिचकिचाते हैं। हमारे यहाँ आधे बच्चे गुरु शिष्य परंपरा के हैं। आधे बच्चे हमारे यहाँ फ्री में सीखते हैं जो झोपड़पट्टी वाले हैं या जो बिलकुल भी पैसे नहीं दे सकते। पर हम सबको सीखाते एक जैसा हैं। अगर हम खाना एक को खिलाते हैं तो हम दूसरे को भी खिलाते हैं। हमें बस बच्चों की मेहनत चाहिए , अगर उसमे भी पेरेंट्स बच्चों को प्रेशराइज़ नहीं करेंगे सीखने के लिए तो बच्चे कैसे सीखेंगे। बच्चे तो चिकनी मिटटी की तरह होते हैं उन्हें शेप देने के लिए उनके साथ थोड़ी सख्ती तो करनी पड़ती है। उन्हें कर्व देना ही होगा तभी उनकी ख़ूबसूरती निखरेगी। हम एडमिशन भी उन्ही को देते हैं जो वास्तव में सीखना चाहते हैं। हम बच्चे को सिखाने से पहले देखते हैं की उसमे कितना टैलेंट और सीखने की लगन है। आजकल पेरेंट्स अपने बच्चो को जैज़ , हिप हॉप या गिटार सिखाने के लिए तो अच्छे खासे पैसे देने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन किसी क्लासिकल आर्ट को सिखाने के लिए थोड़े भी पैसे खर्च करने में उन्हें दिक्कत महसूस होती है।
तुम्हे क्या लगता है , ऐसा क्यों हो रहा है ?
मुझे लगता है की आज जिस तरह हम सब वेस्टर्नाइज़ होते जा रहे हैं वो खतरनाक है। हम अपनी संस्कृति को अपनी कला को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे। जबकि वेस्टर्न कंट्रीज़ में लोग हमारी संस्कृति और आर्ट की तरफ दौड़ रहे हैं। जिस तरह का माहौल बना हुआ है उससे लगता है की आने वाली पीढ़ी को ये पता ही नहीं होगा की हमारे क्लासिकल डांस फॉर्म हैं क्या। कत्थक क्या है। जैसे हम संस्कृत भाषा को भूल चुके हैं वैसे ही हम इसको भी भूल जायेंगे। फिर बाहर से कोई आएगा हमें ये बताने कि हमारी वास्तविक संस्कृति और कला थी क्या।
आज कल जो रियलिटी शोज़ आ रहे हैं डांस के सिंगिंग के उसको ले कर क्या सोचती हो तुम?
कहीं कहीं पर अच्छा भी है। कहीं कहीं पर बहुत ख़राब है क्योंकि जो सीखने की उम्र होती है उसी उम्र में बच्चे परफॉर्म करने लगते हैं। कम से कम पांच साल से लेकर बीस साल तक बच्चों की सीखने की उम्र होती है। बीस साल के बाद वो परफॉर्म करने लायक बनता है। लेकिन आजकल दस साल की उम्र से ही बच्चे परफॉर्म करना शुरू कर देते हैं। दस साल की उम्र में ही उन्हें लगता है की वो स्टार बन गए तो उनकी सीखने की लगन ख़त्म हो जाती है। भविष्य में अगर उसे किसी और को सीखाना पड़ा तो वो क्या सिखाएगा। ये सोचने वाली बात है। हम अपने यहाँ उन्ही बच्चों को एडमिशन देते हैं जो नृत्य को ले कर सीरियस हैं। जो ये आ कर कहते हैं की हमें तीन चार स्टेप्स सिखा दीजिये हम उन्हें लेते ही नहीं हैं। रियलिटी शोज के आने से लोगों में नृत्य सीखने की ललक जाएगी है बस वही एक अच्छी बात है।
अच्छा अभी तुमने बताया कि तुमने एक भोजपुरी मूवी में काम किया है , उसके बारे में कुछ बताओ।
मैंने एक भोजपुरी मूवी बबुआ में काम किया है। ये फिल्म पिछले साल रिलीज़ भी हो गई है। इसमे मैं लीड एक्ट्रेस हूँ और जो लीड एक्ट्रेस है जो कथक डांसर है। ये करते हुए बड़ी ख़ुशी थी की शायद अब भोजपुरी मूवी के प्रति लोगों की सोच बदलेगी क्योंकि मूवी बहुत अच्छी और साफ़ सुथरी बनी है। आमतौर पर भोजपुरी मूवी के प्रति लोगों की सोच है की भोजपुरी का मतलब है वल्गर। लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद बहुत लोगों ने ये कहा की बहुत दिनों बाद भोजपुरी में कोई अच्छी फिल्म बनी है।
सफलता को लेकर तुम्हारा नजरिया क्या है ?
मैं सफलता की तरफ स्टेप बाई स्टेप जाना चाहती हूँ न की एरोप्लेन से बिना कोई संघर्ष किये बिना कुछ सीखे पहुँच जाना। क्योंकि जो स्टेप बाई स्टेप चलते हैं उन्हें भले ही सफलता देर से मिलती है लेकिन कम से कम सफलता मिलने के बाद वो अपना चेहरा आईने में गर्व से देख तो सकते हैं। जैसे मेरे पिता जी ने भी बहुत संघर्ष किया उनके साथ बहुत राजनीती भी हुई लेकिन आज उनके शिष्य पूरे लखनऊ या इंडिया ही नहीं पूरे विश्व में फैले हुए हैं। आज लखनऊ में कथक सिर्फ मेरे पिता जी की वजह से है। अच्छा भी लगता है और बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी लगती है की अब इस हेरिटेज को आगे बढ़ाना है।
चलते चलते हमारे पाठकों से कुछ और कहना चाहती होगी ? अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में , या और कुछ भी।
फिलहाल मैं एक फ्री लांसर डांसर हूँ और अपने घर में गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत कथक सिखाती हूँ । मेरे भैया यहाँ क्लास लेते हैं मैं बिगनर्स की क्लास लेती हूँ। बाकी हमारे फॉरेन टूअर्स होते रहते हैं। अभी कुछ दिनों में मैं चाइना जा रही हूँ। चाइना में मैं ऐज़ अ स्ट्रांग लेडी इंडिया को रिप्रेजेंट कर रही हूँ। इस में छह मेल डांसर्स हैं और तीन फीमेल डांसर्स हैं जिसमे दो भरतनाट्यम की हैं और कथक की अकेली मैं हूँ। जो मेल डांसर्स हैं वो मिलिट्री के डांसर्स हैं। मुझे उनके साथ डांस करना है। बाकी छोटे मोटे इवेंट्स तो होते ही रहते हैं।
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कांतिका के साथ उसके अभ्यास और प्रशिक्षण कक्ष में हम |
Nice one..... I think "Khidki" is a good platform to know more about the people those are contributing their lives for a Reason.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी वाला इंटरव्यू है । बधाई । धन्यवाद ।
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