न मानो, न मानो खुद से, खुद की हार को

कहते हैं संगीत में इतनी ताक़त है की वो सृष्टि के नियमों को भी बदल दे। कभी तानसेन बादल राग गाकर बारिश करा देते थे तो कभी दीपक राग गा कर दिए जला दिया करते थे। संगीत की तासीर ही कुछ ऐसी है। ये न केवल हमारा मनोरंजन करता है बल्कि हमारे विचारों  का परिष्कार भी  करता है।
कभी कभी कुछ लोग संगीत की इस ताक़त, इस तासीर को पहचान लेते हैं। और फिर संगीत उनके लिए सिर्फ मन को बहलाने या अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का जरिया न रह कर किसी बड़े और महान उद्देश्य को पूरा करने का ज़रिया बन जाता है। लखनऊ शहर का एक बैंड  कुछ ऐसा ही कर रहा है। ये बैंड इस मायने में भी खास है की इस बैंड में केवल लड़कियां हैं। इसमें लड़कियां ही सारे इंस्ट्रूमेंट्स बजाती हैं और गाती भी हैं।
             मज़े की बात ये है की ये खुद अपने गीत लिखती हैं खुद ही उनका संगीत तैयार करती हैं। नोबल कॉज के लिए काम करने वाले ग्रुप के सभी मेंबर्स लखनऊ की  युवा लड़कियां हैं। इनमे से कोई पढाई कर रहा है तो कोई जॉब। अपनी सारी ज़िम्मेदारियों को निभाने के साथ साथ ये लड़कियां अपने इस अनूठे बैंड को भी वक़्त देती हैं। क्योंकि ये  बैंड इनके लिए इनका पैशन है, अपनी ज़िन्दगी को मायने देने का एक जरिया है।
मन में तमाम कौतुहल और सवाल लिए हमने बात की इस बैंड की फाउंडर जया तिवारी से। जया एक खुशमिजाज़ और प्रतिभाशाली  महिला हैं। फिलहाल  वो लखनऊ की  बाबू बनारसी दास यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं। बॉलीवुड गानों से इतर इनका हर गीत समाज के  किसी ज़रूरी मुद्दे को उठाता है। यानि मनोरंजन से ज़्यादा इनका फोकस है लोगों में जागरूकता लाना। उनके विचारों को एक दिशा देना। साथ ही वीमेन एम्पावरमेंट की परिकल्पना को ज़मीन पर उतारना।इतना ही नहीं ये बैंड उन लड़कियों की एजूकेशन का ज़िम्मा भी उठा रहा है जो किसी वजह से स्कूल की फीस नहीं दे पा रही  हैं।एक

जया हमें अपने बैंड  के बारे में कुछ बताइये। 
जब हमने ये बेंड शुरू किया तो ऐसा कुछ  नहीं सोचा था की ये इंडिया का पहला ऐसा बैंड  होगा। बस मन में एक ख्याल था की एक ऐसा  बैंड हो जिसमे हम ही बजाएं हम ही गायें क्योंकि इंडिया में वैसे तो सभी बाई बर्थ सिंगर होते हैं  लेकिन जब ड्रम या गिटार बजाने की बात होती है तो लड़के ही दिखाई देते हैं। लड़कियों की ऐसी कोई ट्रेनिंग भी नहीं होती। इसलिए हमने जब अपना बैंड शुरू किया तो  किचन की ही चीज़ों से म्यूजिक बजाना शुरू किया। कटोरी चम्मच, ऊखल वगैरह हमारे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स थे।
बल्कि हम अभी एक ऐसा इंस्ट्रूमेंट बनवा रहे हैं जिसमे सारे किचन की ही चीज़ों से ही बना होगा।
आपका बैंड और दूसरे बैंड्स से अलग कैसे है ?
हमारे सभी मेमबर्स इस बैंड  के प्रति बहुत डेडिकेटेड हैं। यहाँ कोई अपनी एम्बिशन् पूरी करने नहीं आया है बल्कि एक कॉज के लिए है। ये एक मिशन की तरह है सबके लिए।हमारे बैंड  का एक ही मिशन है सेव  द ,एजुकेट द  गर्ल।  हम कोई बॉलीवुड सांग नहीं गाते कोई लाख सर पटक दे। आमतौर पर फीमेल बैंड का
मतलब होता है ग्लैमर। हमारा बैंड बहुत सोबर है। मैं खुद साडी पहन कर परफॉर्म करती हूँ। और बहुत मन से पहनती हूँ।  वैसे भी आज की महिलाएं खासकर भारतीय महिलाएं हर फील्ड  में अपने झंडे गाड़ रही हैं। अगर वो साडी पहन कर  हमारे देश का नाम अंतरिक्ष तक पहुंचा  सकती हैं तो हम भी साडी पहन कर परफॉर्म क्यों नहीं कर सकते।

बैंड शुरू करने के पीछे कोई प्रेरणा ?

( हँसते हुए ) सच कहूँ पूजा तो ऐसा लगता है की जैसे  कोई शक्ति पीछे थी। जब मैं दूसरे बैंड्स  देखती थी तो देखती थी की लड़को के बैंड  में लड़कियां सिर्फ ग्लैमर के लिए रखी जाती थी। इसके अलावा कोई और रोल नहीं होता था। तो फिर हमने सोचा की एक ऐसा बैंड  हो जिसमे सिर्फ लड़कियां हो। ये 2010  से शुरू किया। पहले से कुछ नहीं सोचा था की ये कैसा होगा लेकिन सब अपने आप होता गया। मेरे घर के पास एक अनाथाश्रम है।  मैंने देखा की वहां लड़को को गोद लेने वालों की तो लाइन लगी रहती थी लेकिन लड़कियों को गोद लेने वाला कोई नहीं था। मेरे देखते देखते वो लड़कियां दस बारह साल की हो गई हैं अब खुद वहां आने वाले  बच्चो की देखभाल कर रही हैं।
हमने शुरुआत उन्ही लड़कियों से की। उनमे कुछ म्यूजिक सेंस डाला। लेकिन फिर कुछ वजहों से उनके साथ काम आगे नहीं बढ़ पाया। फिर कुछ और लड़कियां जुडी। लोग आते गए जाते गए।
 किसी की शादी हो गई कोई जॉब के लिए बाहर निकल गया लेकिन हमारा सफर चलता रहा। अभी तक अलग अलग जगहों पर  हम पचास से ज़्यादा शो कर चुके हैं। हमने लखनऊ के अलावा  भोपाल बनारस और  दिल्ली में भी  शोज किए  है।

आपने बताया की बैंड के लिए गाने भी आप ही लिखती हैं और संगीत भी देती हैं इतना सब कुछ कैसे ?
मैंने संगीत की विधिवत ट्रेनिंग ली है तो वो बहुत मुश्किल नहीं रहा कभी भी मेरे लिए। जहाँ तक गीत लिखने की बात है तो मैंने कभी बहुत सोच विचार करके कोई गीत नहीं लिखा। ये पूरी प्रोसेस बहुत नेचुरल होती है। अक्सर किचन में रोटी बेलते हुए मेरे गीत बनते हैं। मैंने लगभग साठ सत्तर गाने लिखे हैं। इनमे से ज़्यादार गाने मेरे किचन में ही बने हैं। वहीँ कभी कागज़ पर लिख लिया कभी मोबाइल पर रिकॉर्ड कर लिया। कभी कभी मुझे खुद लगता है की ये गाने मैंने कैसे लिख लिए। मैं कोई बड़ी गीतकार नहीं हूँ। जो मेरी आपकी ज़िन्दगी की छोटी छोटी कॉमन सी बातें हैं मैं वही से अपने शब्द उठाती हूँ।

अपने गीतों के बारे में कुछ बताइये। 

 हमारे सारे गाने फीमेल सेंट्रिक हैं। हम कोई रोने धोने वाले गाने बनाते नहीं। हम मोटिवेशन की बात करते हैं। हम ब्लैक की बात नहीं करते। हम हमेशा कलर्स की बात करते हैं। हम पोज़िटिव सांग्स  बनाते हैं। लोग हमारे गाने बहुत ध्यान से लोग सुनते हैं। उन्होंने पहले कहीं सुने नहीं होते हैं इसलिए लोगों को हमारे गांनो  को लेकर उत्सुकता होती है।पिछले साल हमारे गानो  की एक सीडी भी लांच हुई है जिसका नाम है परवाज़। हमारा सिग्नेचर सांग है देश बचाना है तो बेटियां  बचा लो।

अभी हम. बीबीसी मीडिया  के प्रोग्राम नीडिल में गए थे। इस बार इनका टॉपिक था जेंडर इक्वलिटी। वहां हमने परफॉर्म किया। मसान फिल्म के डायरेक्टर भी वहां मौजूद थे। उन्हें हमारे गाने बहुत पसंद आये।  हमारा एक सांग था  पुष्पा आई हेट टीयर्स जो उन्हें बहुत पसंद आया। ऐसे ही हमारा एक सांग है पानी के बताशे जिसमे लाइफ की फिलोसॉफी को डिस्क्राइब किया है ऐसे ही वर्किंग वीमेन को डेडिकेट करता हुआ एक सांग है चली चली रोड रोड मैं चली करती शोर शोर मैं। अभी इस साल की थीम बी बोल्ड फॉर चेंज पर एक गीत है न मानो, न मानो खुद से, खुद की हार को।
 हमारे गाने बहुत बैलेंस्ड होते हैं। हमारा मोटीव्  कभी ये नहीं रहा की हम पुरुष को पीछे कर दें , या उनकी जान ले लें। हम एक संतुलन और समानता की बात करते हैं। कभी कभी लगता है की कुछ लोग ज़बरदस्ती  की प्रॉब्लम क्रिएट करते हैं।आज  लोगों की मानसिकता बदली है खास कर पुरुषों की। वो महिलायों को बराबरी का अधिकार दे रहे हैं उनको प्रमोट कर रहे हैं। मेरे घर में मेरे पति मेरे पिता सभी ने आगे बढ़ने में मेरा सहयोग किया तो मैं कैसे मान लू की समाज नहीं बदला है। कुछ जगहों पर है अभी भी शोषण। वहां महिलाओं को आवाज़ उठानी चाहिए।

अपने ग्रुप मेंबर्स और शोज के बारे में कुछ बताइये। 

ग्रुप में मेरे अलावा तीन मेंबर्स और हैं। मुझे तो आप जानती ही हैं फिर भी बता देती हूँ। मैं जया तिवारी ग्रुप की  फाउंडर ,लीड सिंगर, लिरिसिस्ट और  कंपोजर, फिर सिन्थीसाईज़र पर निहारिका दुबे  ,पूर्वी मालवीय गिटार प्ले करती हैं  और सौभाग्या , ये गाती भी और ओखल से म्यूजिक भी देती हैं।  हमें दूसरों से ज़्यादा मेहनत करनी  पड़ती है क्योंकि हमारे गाने नए होते हैं। उसके लिए सबको साथ में प्रैक्टिस करने की ज़रुरत होती है। हमारे ग्रुप में कोई पढाई कर रहा है तो कोई जॉब , सब अपना अपना काम निपटा कर शाम को इकठ्ठा होते हैं। फिर सब साथ में दो ढाई घंटे प्रैक्टिस करते हैं। हम जो भी शो करते हैं वो ज़्यादातर  गोवेर्मेंट या एन जी
ओ के होते हैं। वहां से हमें जो थोड़ी बहुत फंडिंग होती है उसमे हम सबसे पहले अपनी जैमिंग कॉस्ट निकलते हैं क्योंकि सभी का पेट्रोल वैगरह लगता है फिर बाकी पैसों से हम पांच छह लड़कियों की पढाई की फंडिंग करते हैं। मेरा मानना है की ये छोटे छोटे स्टेप्स ही बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। हम जहाँ हैं वही कुछ अच्छा कर सकते हैं। आज अगर मैं चार लड़कियों को पढ़ाऊंगी तो कल वो चार , आठ  को पढ़ाएंगी और इस तरह से पूरी एक चेन बन जाएगी।

चलते चलते हमारे रीडर्स से कुछ कहना  चाहेंगी?

हमारा मिशन बहुत प्योर है। हम प्रोफेशनल नहीं हैं। हमारी यूनिकनेस ही हमारी पहचान है। शायद इसीलिए हमें सभी बहुत सपोर्ट  और प्यार मिला है। हम जो कर रहे हैं उससे हमें सटिस्फैक्शन मिलता है। अपने संगीत के ज़रिये अगर हम किसी की ज़िन्दगी में थोड़ी सी ख़ुशी और बदलाव ला सके तो यही हमारा सबसे बड़ा अचीवमेंट और अवार्ड होगा।


हमारी तरफ से जया जी और उनकी पूरी टीम को बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनायें।

                                                                                                       पूजा 









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