बहुत बोलती हैं ये लड़कियां

तुम बहुत बोलती हो। ज़रा शांत रहा  करो।
अच्छा नहीं लगता लड़कियों का ऐसे हर मामले में उछल उछल कर बोलना।
चार अक्षर क्या पढ़ लिए किसी के सामने भी मुँह फाड़ कर बोल देती हो।
बोलो मगर ऐसे की किसी को बुरा न लगे और तुम्हारा काम भी बन जाए।



 भारतीय  परिवारों में ये जुमले आम हैं। अक्सर लड़कियों को वो बोलने से रोका जाता है जो बोलना  बहुत ज़रूरी होता है। विशेषकर शादी ब्याह के मामले में। लड़कियों का मैट्रिमोनियल प्रोफाइल तैयार करते वक़्त उसमे वो बातें वो खूबियां लिख दी जाती हैं जो अक्सर उनमे नहीं होती। लड़के वालो के सामने भी ऐसे कितने ही झूठ बोले और लड़की से बोलवाये जाते हैं। जैसे लड़के वालो के ये पूछने पर कि खाना  तो बना लेती हो न ? हमेशा लड़की से हाँ में ही उत्तर देने को कहा जाता है भले ही किचन से वो  दूर ही क्यों न भागती हो। इसी तरह शादी के बाद करियर या पढाई को लेकर भी लड़कियों से हमेशा डिप्लोमेटिक उत्तर देने को ही कहा जाता है। और अगर कोई लड़की इन हिदायतों को दरकिनार करके सच बोलती है तो उसको बदतमीज़ और मुंहफट का तमगा  पकड़ा दिया जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि  परिवार की बात मान कर झूठ बोलने या वक़्त पर  सच नहीं बोलने वाली लड़कियां अक्सर उम्र भर पछताती रह जाती हैं।

झूठ की बुनियाद पर रिश्ते की नींव 
आमतौर पर हम सब को बचपन से ही सच बोलना सिखाया जाता है। लेकिन सच की मात्रा उसका रूप उसका गुण शायद हमारी परिस्थितियां निर्धारित करती हैं। कम से कम लड़कियों के मामले में तो ये बात सौ फीसदी सच है। हर माँ बाप ये चाहते हैं की उनकी लड़की को अच्छा घर परिवार मिले।
इसके लिए कई बार वो लड़के वालो की उन शर्तों को भी मानने को तैयार हो जाते है जिसके लिए उनकी अपनी बेटी भी नहीं तैयार होती।

शायद ऐसा करके उन्हें लगता है की वो अपनी बेटी को एक अच्छा भविष्य दे रहे हैं लेकिन  सच तो ये है की ऐसा करते वक़्त वो अपनी बेटी के जीवन की नींव को उसके व्यक्तित्व को खोखला और कमज़ोर  बना रहे होते हैं। खोखले व्यक्तित्व के साथ एक शांत और सार्थक जीवन की कल्पना कैसे की जाती है। और जिस रिश्ते की नींव में ही ही झूठ घुला हो वो उस रिश्ते में संदेह और  मनमुटाव कभी न कभी ज़रूर सर उठाते हैं।

श....  श.....  श किसी से न कहना 

हमारे समाज की संरचना ऐसी है की यहाँ लड़कियों की इज़्ज़त को यौन शुचिता  से जोड़ के देखा जाता है। अगर दुर्घटनावश कोई लड़की किसी भी प्रकार के यौन उत्पीडन का शिकार हो गई तो सबसे पहले तो उसे चुप रहने को कहा जाता  है। ऐसा माना  जाता है की इससे लड़की और परिवार  की बदनामी होगी और शाद्दी ब्याह में दिक्कत होगी। हालांकि चीज़े बहुत तेजी से बदल रही हैं लेकिन अभी भी ऐसी किसी भी घटना में पहले लड़की को चुप रहने और बात अपने तक सीमित रखने की ही हिदायत दी जाती है। समरीन एक मीडिया प्रोफेशनल हैं। वो देश दुनिया के मसलों को लेकर जागरूक भी हैं। समरीन कहती हैं की हम लड़कियों से हमेशा अच्छी लड़की होने की अपेक्षा की जाती है। और समाज की नज़र में अच्छी लड़की वो होती है जो ख़ामोशी से सब कुछ सहती रहे।बोलने वाली आवाज़ उठाने वाली लड़कियों को समाज अच्छा नहीं मानता। कुल मिलकर इस समाज को अच्छी नहीं फेक लड़कियों की ज़रुरत है।  


तुम्हे जानने की ज़रुरत नहीं 

हर लड़की की ज़िन्दगी में एक ऐसा वक़्त आता है जब अपने शरीर में हो रहे बदलावों को महसूस करती हैं। अपोज़िट सेक्स उसको आकर्षित करने लगता है। मन में बहुत सी जिज्ञासाएं उठने लगती हैं। वो इन सब बातों का जवाब चाहती है। आमतौर पर उसे अपने घर में इन सवालों को उठाने की आज़ादी और स्पेस नहीं मिलता। क्योंकि ऐसा समझ जाता है की ये जानकारियां उसको बिगाड़ सकती हैं। और उसे ये सब जानने की ज़रुरत नहीं है। यह हमारे समाज की कितनी बड़ी विडम्बना है की जो जानकारी एक लड़की को उसके घर में मिलनी चाहिए वो अक्सर उसे स्कूल कॉलेज के दोस्तों के ज़रिये मिलती है।
मधुलिका  इलाहबाद यूनिवर्सिटी से हिंदी में परास्नातक हैं और पिछले पंद्रह वर्षों से बेसिक शिक्षा विभाग में सह समन्वयक के पद पर काम कर रही हैं। अपना अनुभव बताते हुए वो कहती हैं की पढाई के कारण घर में ज़्यादा समय नहीं बीता  लेकिन बाहर निकलने पर  हर कदम पर ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ा।मैं इकोनॉमिक्स पढ़ना चाहती थी लेकिन मुझे ये सलाह दी गई की ये लड़कियों के पढ़ने का विषय नहीं है और वो  भी एक सीनियर टीचर द्वारा। मैंने देखा की कैसे कैंपस में लड़कियां डरी सहमी  सी रहती थी और बड़ी ख़ामोशी से हर तरह की अश्लील फब्तियां सहती थी। क्योंकि लड़कियों को तो  शुरू से ही चुप रहना सिखाया  जाता है। यहाँ तक की अपने साथ हो रहे किसी भी तरह के दुर्व्यवहार का विरोध करने का आत्मविश्वास भी ये समाज उनके अंदर पैदा नहीं होने देता।


 चुप रहने में ही तुम्हारी भलाई है

अपने घर परिवार और अक्सर समाज की किसी बुराई पर जब भी कोई लड़की आवाज़ उठाने की कोशिश की जाती है तो अक्सर ये कह कर चुप करा दिया जाता है की तुम चुप रहो। इन सब चक्करों में न पड़ो। चुप रहने में ही तुम्हारी भलाई है। एक तुम्हारे चिल्लाने से कुछ होने वाला नहीं है।

दहेज़ हो या भ्रूण हत्या हर जगह औरत को चुप करा दिया जाता है। इसी तरह किसी भी सामाजिक या राष्ट्रीय मुद्दे पर अपने विचार रखने उस पर सवाल उठाने के लायक उसे समझा ही नहीं जाता। ऐसा सिर्फ घर की चहरदीवारों के अंदर ही नहीं होता। शिक्षण संस्थानों में और कार्यस्थल पर भी लड़कियों को मूक बने रह कर सब कुछ सहने की सलाह दी जाती
और अगर वो हिम्मत करके कुछ बोलती है तो उसके साथ वैसा ही सुलूक किया जाता है जो आजकल हम गुरमेहर के साथ होता देख रहे हैं और कई बार इससे भी बुरा।


ये तो सिर्फ कुछ ही बिंदु हैं। ऐसे  ही न जाने कितने और पहलू हैं इस मुद्दे के ।ये गंभीर विमर्श का विषय है  लड़कियों का बोलना खुल  के बोलना और सच बोलना समाज में संकट कैसे  पैदा कर देता है? इस आधुनिक और डिजिटल युग में भी हमारा समाज आज भी लड़कियों की मुखरता को खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पा  रहा है।
 पिछले कई दिनों से हाथ में तख्ती लिए इस लड़की की फोटो खूब वायरल  हो रही है। इस एक तस्वीर ने पूरे देश में हंगामा खड़ा कर दिया है। हर तरफ बहसबाज़ी डिसकशन  हो रहे हैं। बहुत से लोग गुरमेहर के समर्थन में आ गए हैं। ख़ास कर युवा लड़कियां इस आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। शायद इसलिए भी की गुरमेहर एक युवती हैं लेकिन मज़े की बात ये है की युवा ही नहीं उम्रदराज़ औरतें भी गुरमेहर के अभिव्यक्ति की स्वन्त्रता पर हुए हमले से नाराज़ हैं और गुरमेहर से सहानुभूति रखती हैं। कई वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी लज्जा। फिल्म में महिमा चौधरी अपने दहेज़ लोभी ससुराल वालो और होने वाले पति को शादी के मंडप से भगा देती है। उसकी हौसलाअफ़ज़ाई करते हुए उसकी दादी उससे कहती हैं की अगर अपने समय में हमने ये बोला होता जो आज तुमने बोला तो शायद आज तुम्हे ये दिन न देखना पड़ता। इसलिए बोलना ज़रूरी है। आज और अभी। जिससे हमारी आने वाली पीढियां वो न झेलें जो आज हमने झेला।
                                              पूजा 






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