वो सर्द रात पार्ट -2
रीटा शर्मा की पहचान यूं तो एक तेज़ तर्रार सामाजिक कार्यकत्री की है लेकिन उनके व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू भी है। वो बहुत अच्छी लेखिका भी हैं। हाल ही में उन्होंने एक हॉरर स्टोरी हमें भेजी है जिसका पहला भाग आप पढ़ चुके हैं। आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं इसी कहानी का दूसरा और अंतिम भाग।
अब तक आपने पढ़ा -एक लड़की जो अपने घर में अपनी माँ के साथ अकेली रहती है , उसे रात में कुछ रहस्यमय साये दिखाए देते हैं। वो उनकी गतिविधि को अपने कैमरे में क़ैद करने की कोशिश करती है , तो होता है उसके साथ कुछ अजीब।अब आगे की कहानी -
रिवर्स मोड में कैमरा लिए बहुत देर तक सोचती फिर सोचा कि आज तुरंत ही रिकॉर्ड करके लैपटॉप में सेव कर लूंगी और कैमरा ऑफ करके रख दिया।
सारा दिन काम करने के बाद मैं बहुत थक चुकी थी और बिस्तर पर लेटते ही मैं गहरी नींद में सो गयी...अचानक मुझे लगा कि मुझे कोई जोरो से हिला रहा है...आँखे खोली तो देखा कि उनमें से एक साया मेरी आँखों के सामने खड़ा था और मुझे जगाने की कोशिश कर रहा था, इससे पहले की मैं चिल्ला पाती उसने अपना विशालकाय हाथ मेरे मुँह पर रख दिया और मुझे एक हाथ से ऐसे उठा लिया की मुझे लगा कि मैं फूल से भी हलकी हूं और हवा में तैरते हुए वो वही आ गया जहाँ सभी साये रोज एकत्रित हो गए...उसने मुझे खड़ा कर दिया, मुझे तो जोरों के चक्कर आ रहे थे थोड़ी देर में सभी साये भी नज़र आने लगे और वे सभी मेरे चारों ओर गोल गोल चक्कर लगाते हुए " बचाओ बचाओ" चिल्ला रहे थे, मुझे लगा कि जैसे मेरा सर फट जायेगा।
मैं अचानक चिल्ला पड़ी-"चुप रहो तुम सब" और सब अचानक शांत हो गए अचानक से मुझे लगा कि मैं किसी बड़े सिंहासन पर बैठी हूं और सभी साये नीचे मेरे पांव के पास बैठ गए, मैंने देखा कि सभी रो रहे थे तो मैं जोर से बोल पड़ी-" कौन हो तुम लोग? क्यों रोते गाते हो? मुझसे क्या चाहते हो? यहाँ क्यों आते?
इस पर वो बुजुर्ग साये ने बोला कि "तुम नाराज़ मत हो, हम तुम्हे नुकसान नहीं पहुचायेंगे, बस हमारी मदद कर दो हम सभी को मुक्त कर दो यहाँ से और डरो भी मत हमसे।"
मैंने पूछा-" मुक्त कर दो से मतलब तुम्हे किसी ने कैद किया है क्या? पर क्यों और ये तुम सिर्फ रात 2 बजे ही क्यों दिखते हो और फिर गायब कहाँ हो जाते हो?
अब बुजुर्ग साये ने मुझे अपनी कहानी बताना शुरू किया--" जिस हवेली में तुम रहती हो, वहाँ बहुत समय पहले हम रहते थे..हमारा भरा पूरा परिवार था सब हंसी ख़ुशी से थे...हम यहाँ पर सबसे समृद्ध और मजबूत हुआ करते थे दूर दूर से लोग अपनी शिकायत लेकर आते थे और फिर हँसी ख़ुशी जाते थे। एक बार की बात है कुछ परिवार हमारे पास आये वो सब किसी एक डाकू के दल से बहुत परेशान थे, पूरा गांव त्राहि त्राहि कर रहे थे वे लूटपाट, चोरी डकैती करते थे। उन्होंने हमसे मदद की गुहार लगाई तो मैं अपने दल बल के साथ उस गांव पहुच गया और वही रहने लगा और उनके आने का इंतज़ार करने लगा क्योंकि वे सब रहते कहाँ थे किसी को
नहीं पता था। शायद उन्हें हमारे आने की भनक गांव से ही किसी ने दे दी थी। एक रात वे हमारी इस हवेली में पहुँच गए और साथ ही उस गांव पर हमला एक साथ किया, उस गांव में भयंकर लड़ाई हुई जिसमें मैं खुद और उनका मुखिया दोनों ही मारे गए
इधर उनके गिरोह पूरे परिवार को मारा पीटा और उन्हें ऊपर के एक कमरे में बंद कर दिया शायद तुमने देखा हो कि उसमें अभी भी ताला पड़ा है और यहाँ जो भी हमारे परिवार को बचाने आया उन सब की हत्या कर दी और भयंकर लूटपाट के साथ वो सबको धमकी देते हुए कि ख़बरदार इन्हें किसी ने बाहर किया तो उनके परिवार को तबाह कर देंगे कहते हुए चले गए
पूरे एक महीने तक पूरा परिवार सभी बच्चे भूख प्यास से रोते बिलखते रहे और चिल्लाते रहे मगर किसी ने आकर उन्हें मुक्त नहीं किया क्योंकि सबके अपने परिवार की फिक्र थी शायद वे भूल गए थे कि अब तक उन्हें सुरक्षा और सहारा देने वाला जा चूका है और उनका परिवार संकट में हैं। रोते बिलखते भूख से तड़पते और दरवाजा तोड़ने की कोशिश करते करते सभी एक एक करके मरने लगे...अगर ये पता होता कि सुरक्षा के लिए बनवाया गया दरवाजा अपने परिवार का काल बनेगा तो मैं शायद घर में कहीं दरवाजा ही नहीं लगवाता। और इस तरह पूरा परिवार काल के मुंह में चला गया...धीरे धीरे अरसा बीतने लगा और बदलते समय के साथ उस हवेली पर किसी बिल्डर की नज़र पड़ी तो उसने आसपास पूछताछ की तो शायद किसी ने उसे ये सब किस्सा सुनाया...उसने हवेली पर रंग रोगन करा कर बेच दी मगर वो कमरा खुलवाने की हिम्मत ना कर पाया और तब से अब तक कई लोग उस हवेली को खरीद और बेच चुके है...क्योंकि जब भी कोई आता है तो हम इसी
तरह मदद की गुहार लगाते है मगर लोग हमें मुक्त करने के बजाय डर से इसे बेच काट भाग जाते है। रात 2 बजे हमें कुछ शक्तियां मिलती है तो सभी किसी तरह यहाँ निकल कर एकत्र होते है। मैं सारा दिन और रात परेशान होकर उस कमरे के चक्कर लगाता रहता हूं और कब रात के 2 बजे और सभी बाहर आये...तभी अचानक एक चिल्ला पड़ा और उसी बुजुर्ग साये ने फिर से मुझे उठाकर उड़ते हुए कमरे में पंहुचा दिया और तेजी से निकल गया, थोड़ी देर तो मैं सर पकडे खड़ी रही बहुत तेज़ सर घूम रहा था और नार्मल होने पर खिड़की से देखा तो वहाँ कोई ना था।
मैं धीरे से आकर बिस्तर पर लेट गयी और सोचने लगी कि ये सपना था या सच?? डर से रोंगटे भी खड़े हो रहे थे फिर भी मैंने निश्चय किया कि कल सुबह मैं वो बंद कमरा खोलूंगी कई बार माँ से पूछा तो था मगर उन्होंने कोई जवाब ना दिया था। अपना डर कम करने के लिए मैं बजरंग बली का पाठ करते हुए कब सोई पता ही नहीं चला?
सुबह उठी तो रात का सारा मंज़र आँखों के सामने घूम गया.. सोचा माँ को बोलू लेकिन फिर वो शायद मुझे वो कमरे में जाने ही ना दे ये सोचकर कुछ नहीं बोली। चाय नाश्ता करके चुपचाप छत पर गयी तो देखा जिक्र किये गए कमरे में ताला पड़ा था, झीरी से अंदर देखने की कोशिश की तो सिर्फ लंबे लंबे, बड़े बड़े जाले दिखे...ताला और दरवाजा वाकई बहुत मज़बूत लग रहे थे । उसे तोडा ही जा सकता था क्योंकि ताले में भयंकर जंग लगी थी।
पर आवाज़ सुन अगर माँ आ गयी तो वो तोड़ने नहीं देंगी...ये सोच चुपचाप नीचे चली आयी और वो कही बाहर जाए इस बात का इंतज़ार करने लगी...दो दिन मुझे मौका मिल गया जब उन्होंने कहा कि वो दो घंटे के लिए कथा सुनने मंदिर जाएँगी।
इन दो दिनों में ना तो मेरी नींद 2 बजे खुली और ना ही कोई डर लगा...आज सुबह से इंतज़ार में थी कि माँ कब जाए? इतेफाक था कि घर में कोई और था भी नहीं उस समय। जैसे ही माँ बाहर गयी ...मैं हथौड़ी लेकर ऊपर कमरे के पास पहुँच गयी और ताले हर तरफ से घुमा कर देखा कि किधर से चोट करु कि जल्दी खुल जाए ताले और फिर हथौड़ी से ताले तोड़ने की कोशिश करने लगी....उफ्फ ये क्या हथौड़ी की चोट हाथ पर लग गयी और खून निकलने लगा...मैं हाथ को देख ही रही थी कि मुझे लगा कि कोई मेरी चोट को हलके हलके सहला रहा है। एक बार फिर ताला तोड़ने में लग गयी..WOW! ताला टूट गया था मैंने जल्दी से ताला हटाते ही दरवाजे की
कुण्डी खुली...ओह्ह दरवाजा काफी भारी था....बहुत जोरो से धकेल रही थी मगर खुल रहा था तभी एक बार फिर लगा कि कोई और भी धक्का दे रहा है और फिर वो भारी दरवाजा चरमराते हुए खुल ही गया, खुलते ही मेरे मुँह से जोर की चीख निकली....
मैं डर से पूरी अंदर से हिल गयी, वहाँ बहुत सारे नर कंकाल थे...अचानक वे सारे कंकाल जोर जोर से हिलने लगे और फिर मुझे लगा कि एक एक साये बाहर निकल रहे है...वे सभी मुस्करा रहे है
हाँ मैं तो बताना ही भूल गई थी उस बुजुर्ग साये ने मुझसे कहाँ था कि सभी अस्थियां में पास ही लगे नीम के पेड़ के नीचे दफ़न कर दू क्योंकि एक वक्त वहाँ सभी एकाट्ठे होकर बैठते थे वो उनकी पसंदीदा जगह थी...मैंने सोचा कि इन्हें दफ़न कैसे करूँ। मैं नीचे गयी और ढूढ़ कर फावड़ा निकाला और उस नीम के पेड़ के नीचे गड्ढा खोदने लगी, मिटटी बहुत सख्त थी मैं पसीना पसीना हो गयी...आखिरकार एक गढ्ढा खुद ही गया अब जल्दी जल्दी ऊपर गयी एक सीमेंट की बारी लेकर....उसमे नरकंकाल भरने लगी वहाँ बहुत ही सारे जाले लगे हुए थे और हर तरफ मिटटी की मोटी परत...हड्डियां उठाते हुए डर भी बहुत लग रहा था। बोरी भरकर उठाया वो बहुत भारी थी किसी तरह सीढ़ियों से घसीटती हुए उस नीम के पेड़ तक ले गयी और उस गढ्ढे में डाल दिया...इस तरह मुझे 5 चक्कर लगे सभी अस्थियां उठाकर गढ्ढे में डालने में। फिर जल्दी जल्दी उस पर मिटटी डाल कर ढक दिया और उसे अच्छे से पैरों से दबा दिया और कुछ घास आसपास से तोड़कर उस पर फैला दी ताकिं किसी को पता ना चले। मेरा काम हो गया था..मैं फावड़ा उठाकर घर की तरफ चली तो सभी साये हाथ जोड़ कर खड़े हुए है मैं मुस्कराते हुए बाय बाय करते हुए चल दी।
घर के अंदर आयी तो बोरी घसीटने की वजह से सब तरफ मिटटी ही मिटटी दिख रही थी....फाड़वा उसी जगह पर रखकर पोछा उठाया क्योंकि माँ आ गयी तो इतने सवाल करेगी कि जवाब देना और समझाना मुश्किल हो जायेगा।
पोछा से मिटटी साफ़ करने लगी जल्दी जल्दी...मैं थक कर चूर हो गयी थी...घर से होते हुए सीढ़ियों से छत तक पूरा साफ़ करके फिर से वो कमरा बंद कर टुटा हुआ ताला उसी में लटकाकर मैं नीचे आ गयी ...मैं अपने हाथ पैर धुलने लग गयी ठण्ड में भी मैं पसीने से तर बतर और हाफ भी रही थी...और थोड़ा थोड़ा डर भी लग रहा था तभी लगा कि किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा है...मैं बहुत ज़ोर से चीखी और तेजी से पलटी... ओह्ह माँ क्या है? डरा दिया तुमने, तूने मुझे डरा दिया इतनी जोर से चीखी है और ये दरवाजा क्यों खुला है?? डांटते हुए बंद करने लगी , फिर मेरी ओर देखते हुए...ये क्या तू इतनी सर्दी में पसीने में क्यों भीगी है?
ओह्ह माँ तुम कितने सवाल करती हो, मुझे चाय दे दो सफाई कर रही थी इसलिए पसीने आ गए और मन ही मन ये सोचते हुए कि अच्छा हुआ सब काम हो गया माँ के आने से पहले, वरना वो करने ही नहीं देती वैसे ही इतने सवाल कर रही है??
चाय पीते हुए मैंने माँ से कहा कि माँ मुझे उपर जो कमरा बंद पड़ा है उसे साफ़ कराकर उसमे रहना है...माँ मुझे घूरने लगी " तुझे मेरे साथ रहना अच्छा नहीं लगता? क्या दिक्कत है नीचे? ऊपर वो कमरा में तो ताला पड़ा है और पड़ोस वाली भाभी कह रही थी कि उसमें कभी जाना मत भूत रहते है..ओह्ह माँ ऐसा कुछ नहीं है...आज मैंने उसका ताला तोड़ दिया, माँ..क्या??? उनका मुँह आश्चर्य से खुला रह गया और जोर जोर से डांटने लगी कि तुझे कितनी बार मना किया है इधर उधर के काम मत किया कर मानती ही नहीं है चल हाथ मुँह धुल कर हनुमान जी पाठ कर, ओह्ह माँ तुम कितनी धार्मिक हो...वो भूत लोग गए अब डरने की जरुरत नहीं...माँ.."पागल हो गयी है क्या? क्या अनापशनाप बके जा रही है, और फिर वो जोर जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगी और मैं मुस्कराते हुए अपने कमरे में आ गयी।
आज रात बहुत सुकून से सोई और सुबह उठते ही चाय नाश्ता करके मैं लग अपने अभियान में...ऊपर कमरे को साफ़ किया माँ के साथ मिलकर और माँ ने सबसे पहले वहाँ बजरंग बली की तस्वीर लगा दी और बोली रात को मैं भी तेरे साथ यही सोऊंगी...अरे माँ...यहाँ भी...हर जगह साथ साथ ...प्राइवेसी भी कोई चीज होती है...माँ ने प्यार से हँसते हुए एक चपत लगा दी और हम दोनों जोर से हंस पड़े।
प्रस्तुति : पूजा
Madad krne ka dil.hona chaiye fhir koi fark nhi padta ki madad kiski krni h
ReplyDeleteNice story with nice msg
God bless u dear
थैंक्स
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