बाल विवाह : एक अभिशाप या पाप ???? 


रीतिका शुक्ला 



अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।

प्रेम और ममता की मूरति, पूरी तो गढ़ जाने दो।।

हम सबको अपना बचपन बहुत प्यारा है..आज भी अपना बचपन याद करते ही सब यादे ताजा हो जाती है कि कैसे हम मजे किया करते थे ,और शैतानियाँ करने पर कैसे घर पे माँ से डॉट खाते थे। सब कुछ कितना सुहाना सा था लेकिन सबका बचपन ऐसा नहीं होता। गुड्डा-गुड़िया की शादी कराने की उम्र में इन बच्चो की शादी करा दी जाती है। वो बच्चे जिनको शादी का मतलब भी नहीं पता होता है उनको इस बंधन में बाँध दिया जाता है। 

अगर आकड़ो पर गौर करे तो तकरीबन हर साल 14 लाख से ज्यादा लड़कियों की शादी किशोरावस्था में कर दी जाती है। उनसे उनका बचपन तो छीना ही जाता हैं, साथ ही उनसे स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार को भी छिन लिया जाता हैं। अगर इस दिशा में कोई कठोर कदम न उठाए गए तो ऐसी लड़कियो की संख्या यो ही बढ़ती ही जाएगी।आज हर क्षेत्र में जहां लड़कियां अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं, वहीं आकड़ो के मुताबिक तो हर सात में से एक लड़की की शादी पन्द्रह की उम्र पूरी होने से पहले ही कर दी जाती हैं। इनमें से कुछ लड़कियों की शादी तो आठ व नौ साल की उम्र में भी कर दी जाती है। हमारे समाज का नजरिया बेटियों को लेकर हमेशा संकीर्ण रहा हैं। उनके लिए बेटियां बस एक जिम्मेदारी और बोझ के सिवा कुछ नहीं हैं, जिससे पूरा परिवार जल्द से जल्द मुक्ति चाहता हैं। ऐसा नहीं है कि इस कुप्रथा का विरोध न हुआ हो, पर इतने विरोध के बाद भी यह कुप्रथा जड़े जमाए हुए हैं। अशिक्षित और कम आय वाले परिवार के लिए बेटियां हमेशा एक बोझ बन कर रहती हैं।

यूनिसेफ की रिपोर्ट की बात करें, तो रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 50 साल तक भी भारत को बाल-विवाह जैसी कुप्रथा से छुटकारा नहीं मिलने वाला है। उम्र से कच्ची लड़कियां मानसिक और शारीरिक रूप से न तो पत्नी बनने लायक होती है और न ही मां बनने योग्य। शादी के बाद कम उम्र में मां बनने का खतरा तो होता ही है। कई बार कच्ची उम्र में माँ बनने के कारण उनकी मौत भी हो जाती है। ये कैसी विडम्बना है कि जिस उम्र में बच्ची को माता- पिता के प्रेम और स्नेह की जरूरत होती है, उस उम्र में वो खुद एक छोटी बच्ची की माँ बन जाती है। इससे भी बुरा तो तब होता है जब घर वाले अपनी बेटी की शादी दुगनी उम्र से ज्यादा के आदमी से करा देते है। आखिर कोई माँ-बाप अपने बच्चे के साथ इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सकते है??? कई लड़कियां तो घरेलू हिंसा और एचआईवी( एड्स )जैसी बीमारियों की भी शिकार हो जाती हैं। छोटी बच्चियां जब कम उम्र में शादी के बंधन में बंधती हैं, तो शायद उनके अपने मां-बाप को भी इस बात का अंदाजा नहीं होता कि आने वाले समय में उनका जीवन कितना कष्टमय हो सकता हैं। 

भारत विश्व में बालिका वधू के मामले में सबसे आगे  हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 20-24 साल की लगभग 47 फीसद महिलाएं ऐसी हैं, जिनकी शादी 18 साल से पहले हो गई थी।दूर-दूराज के गांवों में या छोटे-बड़े शहरों में आज भी लोग इस कुप्रथा के प्रभाव में है। ऐसी महिलाएं जिनकी खुद की शादी बचपन में हुई थी वह भी अपनी बच्ची की शादी कम उम्र में कर के खुश होती हैं जबकि छोटी उम्र में गृहस्थी की जिम्मेदारी उठाने की परेशानी वह झेल चुकी होती हैं। सब कुछ समझते हुए भी एक मां अपनी बेटी के लिए अपने जैसा ही जीवन चुनती है। पिछले दिनों कलर्स पर प्रसारित बालिका वधू की आनंदी की कहानी हमारे देश की बालिका वधुओं से काफी मिलती हैं। 

छोटी सी उम्र में उनसे शिक्षा का अधिकार छीन कर विवाह की वेदी पर बैठा दिया जाता हैं। कई बार तो लड़कों की उम्र बड़ी होती हैं पर कई बार लड़कों की उम्र लड़की की उम्र से चार गुना बड़ी होती हैं। ग़ौरतलब है कि भारत के अलावा यह बांग्लादेश, नेपाल, जांबिया, इथोपिया, सोमालिया, गुआना, और चाड जैसे कई देशों में बाल-विवाह आज भी एक अभिशाप है। छोटी-छोटी बच्चियां ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं जिनके लिए वे तैयार भी नहीं होती। ऐसी कुरीतियों के कारण उनकी सेहत और शिक्षा दोनों पर बुरा असर पड़ता हैं और आने वाली कई पीढि़यां इस कुप्रथा की शिकार होती रहती हैं। कही सामाजिक दबाव, कहीं सुरक्षा का डर, तो कही निरक्षरता इसकी वजह बनती है।
            केरल में साक्षरता दर बहुत ज्यादा हैं- इसलिए वहां बाल-विवाह जैसी कुप्रथा लगभग खत्म होने को है। अगर राजस्थान की बात करें तो तमाम रोक के बावजूद बाल-विवाह आज भी बेधड़क होते हैं। बाल-विवाह का सबसे मुख्य कारण हैं लोगों में शिक्षा और जागरूकता की कमी।बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है।जब वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उस स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व सम्बन्धी एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती हैं। इस कुप्रथा को रोकने की पहल हमें खुद करनी होगी। इससे जुड़े कानूनों के नियम का पालन करना होगा और सबसे बड़ी बात ये कि इसे जड़ से खत्म करने के लिए हमें बेटियों को शिक्षित करना होगा।


बाल विवाहः तथ्य व आँकड़े



विभिन्न राज्यों में अठारह वर्ष से कम आयु में विवाहित हो रही लड़कियों का प्रतिशत खतरनाक है-
मध्य प्रदेश – 73 प्रतिशत
राजस्थान – 68 प्रतिशत
उत्तर प्रदेश – 64 प्रतिशत
आन्ध्र प्रदेश – 71 प्रतिशत
बिहार – 67 प्रतिशत


बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006

बाल विवाह रोकने हेतु सबसे पहला अधिनियम 1929 में बना था जिसे बाल विवाह अधिनियम 1929 के नाम से जाना जाता है ,यह अधिनियम 1 अप्रैल 1930 में लागू हुआ। गौरतलब है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के अनुसार एक लडकी का विवाह जो 18 साल से कम की है या ऐेसे लडके का विवाह जो 21 साल से कम का है । तो ऐसी शादी बाल विवाह कहलाती है ।


बाल विवाह के लिए कौन दोषी -

  • 18 साल से अधिक लेकिन 21 साल से कम उम्र का बालक जो विवाह करता है । जिस बालक या बालिका का विवाह हो उसके माता पिता संरक्षक अथवा वे व्यक्ति जिनके देखरेख में बालक/बालिका है। वह व्यक्ति जो बाल विवाह को सम्पन्न संचालित करे अथवा दुष्प्रेरित करे । जैसे बाल विवाह कराने वाला पंडित या काजी। 
  • वह व्यक्ति जो बाल विवाह कराने में शामिल हो या ऐसे विवाह करने के लिए प्रोत्साहित करे निर्देश दे या बाल विवाह को रोकने में असफल रहे अथवा उसमें सम्मिलित हो ।
  • जैसे बाल विवाह में शामिल बाराती, रिश्तेदार आदि या वह व्यक्ति जो मजिस्ट्रेट के विवाह निषेध संबंधी आदेश की अवहेलना करे ।

दण्ड का क्या है प्रावधान -


  • बाल विवाह के आरोपियों को 2 साल तक का कठोर कारावास  या 1 लाख रूपये तक का जुर्माना या  दोनो एक साथ हो सकते हैं ।
  • बाल विवाह कराने वाले माता पिता, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी आदि भी हो सकता है । जिसको तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है ।

अधिनियम के तहत महिला के लिए निर्धारित सजा क्या है  -

  • इस कानून के तहत किसी महिला को कारावास की सजा नहीं दी जा सकती।
  • माता पालक को भी इस जुर्म में कैद नहीं किया जा सकता केवल जुर्माना भरना पडेगा ।
  • बालक या बालिका जिसका विवाह हुआ हो और चाहे इसमें उसकी सहमति हो या न हो ।

बाल विवाह की शिकायत किससे करे  -

  • जिस व्यक्ति का बाल विवाह करवाया जा रहा हो उसका कोई रिश्तेदार, दोस्त या जानकार थाने जाकर पूरी जानकारी दे सकता है।
  •  इस पर पुलिस पूछताछ करके मजिस्टे्रट के पास रिपोर्ट भेजेगी । मजिस्टे्रट के कोर्ट में केस चलेगा औरबाल विवाह साबित होने पर अपराधी व्यक्तियों को सजा दी जाएगी ।

बाल विवाह के बंधन से मुक्ति कैसे पाए -

  • विवाह बंधन में आने के बाद किसी भी बालक या बालिका की आनिच्छा होने पर उस बाल विवाह को न्यायालय द्वारा अवैध घोषित करवाया जा सकता है ।
  • बाल विवाह के बंधन में बालक बालिका वयस्क होने के दो साल के अंदर जिला न्यायालय में अर्जीदायर कर सकते हैं ।

बाल विवाह से संबंधित मामलो में याचिका की अर्ज़ी कैसे दे -

बाल विवाह कानून के तहत किसी भी राहत के लिए संबधित निम्नलिखित जिला न्यायालय में अर्जी दी जा सकती है-
प्रतिवादी के निवास स्थान से संबंधित जिला न्यायालय । बाल विवाह के स्थान पर । जिस  जगह पर दोनो पक्ष पहले एक साथ रह रहे थे। याचिकाकर्ता वर्तमान मे जहां रह रहा हो उससे संबंधित जिला न्यायालय।
                       सही वक़्त रहते शिकायत स्वयं करने या रिश्तेदार, दोस्त आदि द्वारा मजिस्ट्रेट के पास दर्ज करने पर आदेश मिलने पर पुलिस ऐसे विवाह को रोकने की कार्यवाही करेगी और दोषी को सजा या जुर्माना हेतु केस दर्ज किया जाएगा । थोड़ी सावधानी से आप किसी बच्चे का जीवन बर्बाद होने से बचा सकते है। बाल विवाह करा के लोग हमारे देश के भविष्य से खिड़वाड़ करते है। अगर हम मिलकर प्रयास करे तो शायद एक दिन ये कुप्रथा जड़ से खत्म हो जाएगे जाएगी।




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