
पिछले कई वर्षों से सामाजिक विसंगतियों सत्ता की निरंकुशता और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले सोशल एक्टिविस्ट संजीबा अब जन जन में नोटा के प्रति जागरूकता फ़ैलाने की अपनी मुहिम पर निकले हैं. कानपुर के संजीबा एक बेहतरीन नाटककर पेंटर और कवि तो हैं ही एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो समाज के हर बदलाव पर अपनी पैनी नज़र रखता है और कभी कविता कभी नुक्कड़ नाटक तो कभी लघु फिल्मो के ज़रिये लोगों को जागरूक करने का भी काम करता है।इस बार कानपुर की सड़कों पर संजीबा साइकिल से निकले हैं नोटा के प्रति जागरूकता फ़ैलाने। वो कानपुर की गलियों और चौराहों पर ये सन्देश देते घूम रहे हैं कि अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें। प्रत्याशी का चयन जाति धर्म या निजी स्वार्थों पर नहीं बल्कि उसकी योग्यता और ईमानदारी के आधार पर करें। यदि इस कसौटी पर कोई प्रत्याशी खरा नहीं उतरता है तो अपने नोटा के अधिकार का भी प्रयोग करने से हिचकें नहीं।
हमने संजीबा से विस्तृत रूप से बात की। जिनके कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं।
संजीबा आपकी इस मुहिम का क्या उद्देशय है ?
लोगों में जागरूकता पैदा करना। लोग अपने वोट के महत्व को जान सकें और उसका सही उपयोग कर सकें। क्योंकि जनता के जागे बिना कोई परिवर्तन होने वाला नही है। मैं चाहता हूं की इस देश की जनता एकजुट होकर हर अन्याय और भ्रष्ट्राचार के खिलाफ आवाज़ उठाये।और इसके लिए नोटा एक सशक्त हथियार है। यह चुनाव आयोग द्वारा प्रदान किया गया वो अधिकार है जिसके द्वारा हम बटन दबा कर कह सकते हैं की मेरा वोट किसी को भी नहीं।
आप नोटा का इतना समर्थन क्यों कर रहे हैं ? आपको ऐसा क्यों लगता है की नोटा एक सही विकल्प है ?

देखिये कहने को हम सब एक प्रजातान्त्रिक देश में रहते हैं। लेकिन ये प्रजातंत्र कब लूटतंत्र और गुंडातंत्र में तब्दील हो गया हमें पता ही नहीं चला। नोटा एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये हम सभी पार्टियों को इस बात का अहसास दिला सकते हैं की अब उनकी तानशाही उनकी गुंडागर्दी को स्वीकार नहीं किया जायेगा। नोटा एक प्रतीकात्मक विरोध है सच्चे ईमानदार लोगों को जिसका लोगों को इस्तेमाल करना चाहिए। आज की राजनीती में नोटा भविष्य के लिए ज़रूरी है।
लेकिन इन सबके बीच कुछ प्रत्याशी भी तो होते हैं ?
इस प्रजातंत्र में अच्छे प्रत्याशी की उम्मीद की ही नहीं जा सकती। भारत का प्रजातंत्र फेल हो गया। प्रजातंत्र सौ प्रतिशत पढ़े लिखे लोगों की व्यवस्था है जबकि अपना देश आज भी बहुत पिछड़ा हुआ है साक्षरता और शिक्षा के मामले में। यहाँ आप एक स्वस्थ प्रजातंत्र की कल्पना कैसे कर सकते हैं। यहाँ तो सरकार और नेता बदलने का मतलब सिर्फ जुल्मी का चेहरा बदलना है और कुछ नहीं। व्यवस्था बदलनी होगी।
नोटा जैसी व्यवस्था से आप क्या उम्मीद रखते हैं ?
नोटा मतलब प्रजातंत्र एक कदम और आगे बढ़ा। भविष्य में नोटा मजबूत बनेगा प्रत्याशी डरेगा राजनैतिक पार्टियां अच्छे लोगों को टिकट देंगी मैं ये उम्मीद रखता हूँ।
चलते चलते कोई और सन्देश ?

मैं सिर्फ जनता से इतना कहना चाहता हूँ कि अपने बच्चो के भविष्य के लिए अच्छे भारत का निर्माण करें। छोटे छोटे प्रयास शुरू करें अपने स्तर से। आगामी चुनाव में जाती धर्म से दूर होकर अपनी अंतरात्मा की बात सुने। और नोटा का बटन दबाएं जिससे हमें खुद तसल्ली मिले की हमने किसी गलत प्रत्याशी को वोट नहीं दिया।
जय हिन्द जय भारत।
Nice
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